रवीश कुमार की जीत हुई
(अशरफ हुसैनी)
एनडीटीवी से रवीश कुमार के इस्तीफे के साथ ही भारतीय पत्रकारिता का एक और अध्याय यहीं बंद हो गया। वैसे तो अब तक रवीश कुमार ने अपनी अनूठी रिपोर्टिंग और अपनी बेबाक राय और सरकार की आंखों में आंखें डालकर सवाल पूछने की हिम्मत से देश भर में खूब नाम कमाया है। पत्रकारिता की दुनिया में रवीश कुमार एक ऐसा नाम है जिसने शायद सरकार को आग की नज़्र कर दिया हो। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में बहादुर और साहसी पत्रकारों की एक लंबी सूची है, जिन्होंने अपने समय की सरकार को आईना दिखाने का साहस किया और इसके लिए कई अत्याचारों का सामना किया। वहीं, कई प्रेस और मीडिया हाउस सरकार के निशाने पर आ गए। लेकिन इन सबके बावजूद इन साहसी पत्रकारों ने सरकार की फटकार का बहादुरी से सामना किया, इनमें से कुछ ने जेल की सलाखों में भी जीवन बिताया, लेकिन उन्होंने सरकार के सामने घुटने टेकने से बिल्कुल इनकार कर दिया। अब इस लिस्ट में रवीश कुमार का नाम भी शामिल हो गया है।
रवीश कुमार के इस्तीफे की चर्चा काफी दिनों से चल रही थी। लेकिन अब तक ये बातें सोशल मीडिया तक ही सीमित थीं। लेकिन अब जब खुद रवीश कुमार ने इस्तीफे का ऐलान कर ही दिया है तो उन्हें दौलत और ताकत के आगे कलम की अहमियत का यकीन हो गया है। वक्त के नमरूद से अगर कोई निपट सकता है तो वो है कलम और क़ल्मकार ही हैं। क़लम और क़ल्मकारों के डर से सत्ता भी डरती है। लेकिन अंत में कलम की जीत और कलम के लोगों की जीत तय है। रवीश कुमार का इस्तीफा और एक करोड़पति द्वारा NDTV का अधिग्रहण इसका एक प्रमुख उदाहरण है। अपनी दौलत और ताक़त के नशे में कलम को सच लिखने से या कलम के लोगों को सच बोलने से रोकने की औकात अगर किसी में होती तो रवीश कुमार कभी इस्तीफ़ा नहीं देत। सच बोलने और लिखने के लिए साहस की आवश्यकता होती है, धन और शक्ति की नहीं और वह साहस बहुत कम लोगों में होता है। नहीं तो दौलत के लालच और सत्ता के डर से की जाने वाली पत्रकारिता की मिसाल आप हर जगह आसानी से देख सकते हैं। देश भर में लाखों चैनल हैं जो दौलत के लालच और सत्ता के डर से दिन रात सरकार की महिमा बयां करते नज़र आते हैं।
इसे रवीश कुमारी की एक और जीत भी कहा जा सकता है क्योंकि भारतीय पत्रकारिता में आज कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। नतीजतन, ऐसे अनगिनत YouTube चैनल और वेबसाइट्स हैं जो बोल्ड तरीके से बोलते हैं। सच दिखाने की हिम्मत रखते हैं। चैनलों द्वारा देश में फैलाई जा रही नफरत को कम करने की कोशिश की जा रही है। कई लोग इस सिलसिले में रवीश कुमार को अपना आदर्श मानते हैं और यह देश के लिए अच्छा है। एनडीटीवी से रवीश कुमार के इस्तीफे के बाद पत्रकारिता का एक अध्याय बंद हुआ है तो एक और नया अध्याय शुरू हुआ है। देश भर में लोग कम से कम यह समझने लगे हैं कि समाचार क्या है और टीवी चैनलों पर क्या दिखाया जा रहा है और किसके इशारे पर दिखाया जा रहा है और इससे किसे फायदा होता है? लोग अपने खुले दिमाग या खुले दिमाग के सबूत ज्यादा दिखाएंगे तो जो लोग और टीवी चैनल देश को नफरत की आग में झोंक रहे हैं उनका और पर्दाफाश होगा और लोगों को पत्रकारिता से जुड़े अच्छे-अच्छे लोग मिलेंगे। जो उन्हें बेहतर भविष्य, बेहतर समाज और लोगों के हित की खबरें मुहैया कराएगा।
रवीश कुमार के बारे में आखिरी बात यह है कि भले ही उन्होंने एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं, और हमारे देश में बहुत अच्छे लोग हैं, इसलिए संभव है कि वे स्वतंत्र रूप से और अधिक साहस के साथ अपनी यात्रा जारी रखेंगे और किसी से जुड़े नहीं होंगे। ऐसा उनके चाहने वालों का मानना है। ताकि उन्हें अपना आदर्श मानने वाले पत्रकारों को भी प्रोत्साहन मिले और अधिक से अधिक ईमानदार, निडर, सच्चे और ईमानदार लोग इस पेशे से जुड़ें।