इरफ़ान के जाने को अगर पूरी दुनिया अपने व्यक्तिगत नुकसान के तौर पर देख रही हैं तो मैं उसके बारे में उसके परिवार के तौर पर कोई बयान कैसे लिख सकती हूं। जब लाखों लोग इस घड़ी में हमारे साथ हैं तो मैं भला अकेला महसूस करना कैसे शुरू कर सकती हूं? मैं आप सभी को आश्वस्त करना चाहती हूं कि इस खोने में भी मैंने कुछ पाया है। मैंने वो चीज़ें पाई हैं जो उसने हमें सिखाई थीं। और अब आखिरकार हम उन चीज़ों को जीवन में लागू करना और विकसित करना शुरू करेंगे। इस मौके पर मैं कुछ ऐसी बातें साझा करना चाहूंगी जिनके बारे में लोग पहले से नहीं जानते।
हालांकि इस पर यकीन करना मुश्किल है लेकिन अगर मैं इरफान के शब्दों में कहूँ तो, “यह जादुई है” चाहे वह अब आसपास है या नहीं, वह बस भरपूर प्यार करना जानता था, वह किसी भी वास्तविकता के किसी अकेले आयाम से प्यार नहीं करता था। मुझे इरफ़ान से सिर्फ एक शिकायत है; उसने मुझे जिंदगी भर के लिए बिगाड़ दिया। उत्कृष्टता के प्रति उसकी दीवानगी ने मुझे भी असाधारण बना दिया।
उसे हर ध्वनि में सरगम सुनाई देती थी, बेशक कोई कोलाहल अथवा हंगामा ही क्यों न चल रहा हो। इसलिए मैं भी किसी भी किस्म के शोरगुल में अपनी बेसुरी आवाज़ के साथ गाना और टेढ़ा-मेढ़ा नाचना सीख गई। हमारी जिंदगी अभिनय की ‘मास्टर-क्लास’ थी। इसलिए जब कभी कुछ अनामंत्रित मेहमान घर पर टपक पड़ते तो मैंने उनके कोलाहल से स्वर-संगति बैठाना भी सीख लिया।
डॉक्टरों की रिपोर्टें मेरे लिए किसी फिल्म की स्क्रिप्ट की तरह थीं। और इनके बारे मैं सब कुछ जानना समझना चाहती थी कि कहीं कुछ ऐसा न छूट जाए जो उसे अपने अभिनय के लिए चाहिए। इस सफ़र में कुछ अद्भुत लोग मिले, हालांकि ऐसे लोगों की सूची अंतहीन है, लेकिन उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनका मुझे ज़िक्र करना है: हमारे ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ नितेश रोहतगी (मैक्स अस्पताल, साकेत) जिन्होंने शुरुआत में हमारा हाथ थामा। डॉ डेन क्रेल (यूके), डॉ शिद्रवी (यूके), और मेरे दिल की धड़कन और अँधेरे दौर में मेरी लालटेन डॉ सेवंती लिमये (कोकिलाबेन अस्पताल)।
यह बता पाना बेहद मुश्किल है कि यह सफर कितना, शानदार, खूबसूरत, दर्दनाक और रोमांचक रहा है। मुझे लगता है कि अढ़ाई साल का यह सफ़र 35 वर्ष लम्बी हमारी जिंदगी की फिल्म के बीच घटित उस अंतराल की तरह रहा जिसमें आरम्भ, मध्यांतर और परिणति सब थे। इरफ़ान इसमें एक ‘ओर्केस्ट्रा-कंडक्टर’ की भूमिका में थे। यह अंतराल हमारे 35 साल के साथ से कुछ अलग था। हमारी शादी नहीं हुई थी….हम एक हुए थे।
मैं अपने परिवार को एक नाव में बैठा देख रही हूँ। मेरे पुत्र बाबिल और अयान चप्पुओं से इस नाव को आगे की ओर खे रहे हैं और इरफ़ान उन्हें समझा रहे हैं, ”वहां नहीं, यहाँ से मोड़ो।” पर ज़िन्दगी सिनेमा नहीं है। ज़िन्दगी में रीटेक नहीं होते। मेरी दिली इच्छा है कि मेरे बच्चे अपने पिता के मार्गदर्शन में इस नाव पर सुरक्षित सफर करें और हर तूफ़ान से लड़-भिड़ कर हर दरिया को पार करें। मैंने अपने बच्चों से पूछा कि अगर संभव हो तो क्या वे एक दो पंक्तियों में कोई सबक बता सकते हैं जो उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला है:
बाबिल ने कहा: “अनिश्चितता के नृत्य के समक्ष समर्पण करना सीखो और कायनात के प्रति अपनी आस्था में भरोसा रखो।”
अयान: “अपने मन पर नियंत्रण करना सीखो। मन को स्वयं पर नियन्त्रण न करने देना।”
आँखों से आंसू तो ज़रूर झरेंगे, जब अभी हम उसके पसंदीदा रात की रानी के पौधे को उस जगह लगायेंगे जहाँ आप उसे एक कामयाब सफ़र के बाद आराम फरमाने के लिए छोड़ कर आये हैं। वक़्त तो लगेगा लेकिन रात की रानी खिलेगी और अपनी खुशबू से उन सबकी रूह को महकाएगी, जिन्हें मैं उसके फैन नहीं उसका परिवार कहूँगी…हमेशा के लिए।
-सुतपा सिकदर