जितेंद्र चौधरी
जनता के अधिकारों के लिए सत्ता से लोहा लेने वाले हबीब जालिब बहुत याद आते हैं। पाकिस्तान के इस शायर ने गांव-देहात को अपने पांव से बांध लिया था और उसी पांव के ज़ख़्म पर खड़े होकर सत्ता को आईना दिखाने का काम किया था। उनके एक शेर से अपनी बात शुरू करता हूं;
हुक्मरां हो गए कमीने लोग।
ख़ाक में मिल गए नगीने लोग।
हर मुहिब्ब-ए-वतन (देशभक्त) ज़लील हुआ।
रात का फ़ासला तवील (लंबा) हुआ।
आमिरों (हुक्मरानों) के जो गीत गाते रहे।
वही नाम-ओ-दाद (प्रसिद्धि) पाते रहे।
रहज़नों (डाकुओं) ने रहज़नी (डाका डालना) की थी।
रहबरों (राह दिखाने वाले) ने भी क्या कमी की थी।
चालाक हवाबाजों और प्रवक्ताओं ने नेहरू और 1962 के साये के पीछे अपनी सारी खामियों और कायरता को छिपा लिया है।
1962 में भारत चीन के इरादों और परिस्थितियों का आकलन करने में विफल रहा था, पराजय हुई जिससे उपजे विषाद को नेहरू झेल नहीं पाए और प्राण त्याग दिए।
इसके बाद भारत ने 1965 में पाकिस्तान को हराया ।
1967 में चीन को भी सबक़ सिखाया कि 1962 को भूल जाओ जिसकी तासीर इधर ढीली होती दिख रही है।
1971 में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बाँट दिया। उस समय इंदिरा गांधी का राष्ट्रवाद भी अपने चरम पर था।
1975 में सिक्किम, जिसपे चीन की नज़र थी, उसको भारत के नक़्शे में मिला लिया गया।
1984 में चीन और पाकिस्तान के देखते देखते भारत ने सियाचिन ले लिया। यह सब तब हुआ जब इंदिरा गांधी खुद एक वजूद बन चुकी थीं। ऑपरेशन ब्लू स्टार का खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।
फिर चीन ने 1980 के बाद आर्थिक क्षेत्र में दूसरी अंगड़ाई लेना शुरू किया और 1993 के बाद से सीमा पर धूल धूसरित हो चुके पुराने दावों को छेड़ना शुरू किया। कुछ नये समझौते किये गए।
यह वह समय था जब इंदिरा गांधी आतंकवाद की भेंट चढ़ चुकी थीं और कांग्रेस का पतन शुरू हो चुका था। फिर राजीव गांधी भी आतंकवाद की बलिबेदी पर क़ुर्बान हो गए। राजीव गांधी के एक अदूरदर्शी निर्णय की वजह से हजारों शांति सैनिकों का बलिदान भारत को झेलना पड़ा। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस का पतन शुरू हो गया।
बीच की कुछ प्रयोगधर्मिता के बाद उपजे राजनैतिक शून्य में बीजेपी को अपने को स्थापित करने का अवसर मिला। एनडीए की सरकार बनी। पाकिस्तान ने इंडियन एयरलाइंस का जहाज़ अपहृत कराया, आतंकी छुड़वाए और चीन ने अटल बिहारी बाजपेयी से तिब्बत पर मुहर लगवा ली !
यहां यह ध्यान दिलाना समीचीन होगा कि जिस तिब्बत के सवाल पर इंद्रकुमार गुजराल जैसे बिना किसी आधार के प्रधानमंत्री ने घुटने नहीं टेके थे उसको बीजेपी और दक्षिणी खेमे के सबसे बड़े इतिहास पुरुष अटल बिहारी बाजपेयी ने चीन का क्षेत्र मानकर हाथ मिला लिया था।
बीजेपी को राजनैतिक गुलाटियों में इतनी महारत हासिल है कि वह विपक्ष में रहकर तथाकथित देशभक्त घराना और इसके स्टार देशभक्ति की दुकान चमकाए रखने के लिये पाकिस्तान और चीन के ख़िलाफ़ वातावरण एकदम “लाल” रखते हैं। और दिल्ली में जो भी सत्ता में होता है उसको कमजोर बताते रहे हैं। पर जब बीजेपी खुद सत्ता में आती है तो सबसे पहला काम पाकिस्तान और चीन से संबंध सुधारने के लिये किसी भी स्तर तक गिर जाती है। अटल जी बस लेकर लाहौर गये थे और मोदीजी ने नवाज़ शरीफ़ की अम्मा में अपनी माताजी की तस्वीर देख ली थी और उसकी नातिन की शादी में बिन बुलाए मेहमान बन कर पहुँच गये थे।
पर वक्त ने इनकी अंतराष्ट्रीय कूटनीति और विदेश नीति पर हर बार बहुत कड़वे सबक़ दिये हैं। न ख़ुदा ही मिला और न विसाले सनम।
चीन के मामले में तो मोदी जी ने चापलूसी का हर रिकार्ड तोड़ डाला। बस रिश्तेदारी घोषित करना भर बाकी रह गया था। भारत के किसी प्रधानमंत्री ने इतनी बार चीन का दौरा नहीं किया जितनी बार मोदी जी कर आये हैं।
1962 में जो गलतियां नेहरू ने की थी 2020 में उन्हीं गलतियों को प्रधान सेवक ने दोहरा दिया।
नेहरू को दोष देकर कितनी देर तक सत्ता चला पाएंगे यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। यह 1962 वाला भारत नहीं है। यह 2020 वाला भारत है जहां हर बात पर सवाल खड़े किए जाएंगे? विकास पर भी सवाल करेंगे, गरीबी पर भी सवाल करेंगे, भूखमरी पर भी सवाल करेंगे, बेरोजगारी पर भी सवाल करेंगे, तुम्हारी कूट नीतियों पर भी सवाल करेंगे, मजदूरों के पैरों से रिसते खून पर भी सवाल करेंगे।
देश की युवा पीढ़ी ने कांग्रेस को भी सिरे से नकारा और भाजपा को नकारने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। गूगल के जमाने में झूठ लंबा नहीं चलेगा। आईटी सेल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी बंद कर, सही शिक्षा पर ध्यान दीजिए। शिक्षा में बुनियादी बदलाव की जरूरत है उस पर काम कीजिए। चिकित्सा में बहुत परिवर्तन चाहिए उस पर काम कीजिए। लोगों की तरक्की के लिए काम कीजिए। अगर आपको लगता है कि भाषणबाजी से आपका काम चल रहा है तो मैं आपको स्पष्ट बताना चाहूंगा कि न तो काम चल रहा है और न ही चलेगा। आप प्रधान सेवक हैं तो आपको सकारात्मक रिजल्ट देना ही होगा अन्यथा चौकीदारों की कोई कमी नहीं है, अगली बार हम कोई नया रख लेंगे।