कोरोना महामारी के इस प्रलयंकारी काल मे जब देश मे 5 लाख से अधिक कोरोना संक्रमित हैं, 18,000 से ज़्यादा लोग मृत हो चुके हैं और सुखद यह भी कि ठीक होने वाले मरीज़ों का प्रतिशत 68 है लेकिन फिर भी सार्स कोरोना विषाणु की सक्रियता बहुत तेज़ी से अपना पांव पसार रही है जिस से आम जन के संक्रमण का ख़तरा बहुत अधिक है उसके साथ ही अगली क़तार में लोहा ले रहे डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिस कर्मी, स्वास्थ्य कर्मी सबसे अधिक इस से संक्रमित होने के खतरे से जूझ रहे हैं।

कई बार बुनियादी बचाव किट की कमी, उसकी गुणवत्ता निम्न स्तर होने के कारण 30 मई 2020 के दक्कन हेराल्ड के अनुसार 33 चिकित्सको की डॉक्टर्स की देश भर में अकाल मृत्यु हुई है जिसमे सर्वाधिक इंदौर, मुम्बई, अहमदाबाद जैसे शहरों में है।इन 6 महीनों में ऐसा नही है कि चिकित्सक समाज के आचरण को शत प्रतिशत मानवीय या मानव सेवा को समर्पित माना जा सकता है। जिस तरह की समाज ने कहानियां सुनाई हैं वो कई बार अंदर तक हिला देने वाली है और सिहरन पैदा करने वाली है, जहां डॉक्टर्स ने अपने शपथ के अनुकूल अपेक्षित व्यवहार नही किया है फिर भी उन शहीद फ्रंट लाइन वारियर्स और हमारे डॉक्टर्स जिनकी संक्रमण से मृत्यु हो गई वो शहीद हुए उनको श्रद्धांजलि देते हुए 1 जुलाई को चिकित्सक दिवस की शुभकामनाएं।

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पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्य मंत्री, बिधान चंद्र राय BC Roy जो कि एक विख्यात चिकित्सक भी थे उनके सम्मान और मानव सेवा में दिए गए योगदान को स्मृत रखने के लिए 1 जुलाई को हर वर्ष डॉक्टर दिवस मनाया जाता है।

चिकित्सा विज्ञान के निजीकरण के कारण हां अवश्य ही इस व्यवसाय में काफ़ी हद तक भ्र्ष्टाचार धन लोलुपता आई है और चिकित्सा, निदान और रोग के समाधान का पूर्णतः बाज़ारीकरण हुआ क्योंकि एक mbbs बनने के लिए कम से कम 70 से 100 लाख रुपये खर्च करना पड़ रहा है तो ऐसे चिकित्सक धर्मार्थ तो डॉक्टर बन नही रहे हैं बल्कि इस पेशे से अपने निवेश को शीघ्र ही वापस लेने के लिए नैतिक और व्यवसायिक असूलों का क़त्ल करते देखे जा रहे हैं उसके बाद भी।

डॉक्टर की ज़िंदगी जिस अंदाज में तनाव, काम के बोझ और उपचार के संभावित प्रतिफल की चिंता से दबाव में रहती है, उसका अंदाज़ा आम लोग नही लगा सकते।डॉक्टर के काम करने का कोई 8 घण्टे वाला मीटर नही होता बल्कि वो हमेशा ड्यूटी पर तत्परता, उत्तरदायित्व और श्रेष्ठ तम निदान के रास्ते ढूढता मिल जाएगा। कभी किसी बहुत बिज़ी नर्सिंग होम में रात के समय डॉक्टर की ज़िंदगी के जैसा 10 मिनिट जीने की कोशिश करिएगा ,शायद आप नही जी पाएंगे। Burn Ward में दर्द से चीखते और असह्य पीड़ा से कराहते मरीज़ के बीच शांत चित्त से सेवा करने का जज़्बा सिर्फ़ इनमे ही है।

उसके बाद भी मैं कह सकता हूँ कि इस पेशे में जितना पतन दिखा है कुछ वर्षों में उसकी अपेक्षा तो नही थी मुझे।लेकिन फिर भी। Hippocrates की क़सम खाने वाले सबसे मुहतरम, सबसे कठिनतम और सबसे संतोषजनक पेशे से जुड़े लोगों को “डॉक्टर्स डे” की शुभकामनाओ सहित और उम्मीद के साथ कि उनके पतन की दर ईश्वर करे थोड़ा सुस्त हो जाय।

लेखक: डॉ ख़ुर्शीद अहमद अंसारी, एसोसिएट प्रोफ़ेसर यूनानी चिकित्सक, जामिया हमदर्द, नई दिल्ली

#Happy_Doctors_Day

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