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अंतर्मन की सदा!

मंजू राय

क्या तुमने कभी मेरे अंतर्मन की सदा सुनी है? क्या तभी मेरी हंसी के पीछे का दर्द जानने की कोशिश की है? मैं वही हूं जिसकी हंसी की आवाज कभी हुआ ही नहीं करती थी। और आज इतना हंसती हूं कि मेरा कमरा गूंज उठता है, क्या कभी मेरी हंसी की आवाज में छुपे दर्द की चीखे सुनी है… नहीं ना जानती हूं, किसी ने नहीं सुनी और शायद कोई सुनेगा भी नहीं और कोई सुनना चाहता भी नहीं,

मेरा मन हर रिश्ते से विरक्ति की ओर चल पड़ा है, हर रिश्ते में मतलब दिखाई देने लगा हैं मानो सबको बस अपनी पड़ी है किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझ पर क्या बीत रही है, इस टूटे हुए दिल में सिवाय दरारों के अब कुछ बचा नहीं, गलती किसी की है भी नहीं,  सारी गलती मेरी है, मैं ही हर वक्त मेरा मेरा करती रहती हूं ना, यह उसी की सजा है 

हकीकत में कौन है मेरा आखिर है कौन …?

जब भी किसी से कुछ कहने की कोशिश करती हूं,

 हर रिश्ता मुझे रोता बिलखता छोड़ देता है ।

और फिर मुझसे मेरे रोने की वजह भी पूछी जाती है और खामोश रहने पर ताने भी खूब सुनाए जाते हैं और फिर बड़े प्यार से कहते हैं हम तेरे ही तो हैं  क्या हुआ जो थोड़ा सा कुछ कह दिया, 

अगर मेरे हो तो मुझे क्यों नहीं समझ पाते हो

क्यों नहीं मेरी खामोशी को सुन पाते हो 

बताओ क्यों नहीं…..?

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