शमशाद रज़ा अंसारी
सभी का ख़ून शामिल है यहाँ की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।
विश्व विख्यात शायर राहत इंदौरी की यह पंक्तियाँ उन सबके लिए अचूक जवाब होती हैं जो मुसलमानों को बाहरी व्यक्ति बताते हैं। देश के हालात पर आगाह करते हुये भी राहत इंदौरी ने कहा था
“लगेगी आग, तो आयेंगे घर कई ज़द में,
यहाँ पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।”
राहत इंदौरी कहा करते थे कि अगर मेरा शहर जल रहा है और मैं कोई रोमांटिक गजल गा रहा हूं तो अपने फन, देश, वक़्त सभी से दगा कर रहा हूं।
अपनी शायरी से दुनिया में अलग पहचान बनाने वाले इंदौरी का मंगलवार की शाम को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वो 70 साल के थे। सोमवार को ही उन्हें इलाज के लिए अरविंदो अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। राहत इंदौरी की शायरी के बारे में तो सभी जानते हैं और उस पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। आज हम आपको बताएंगे राहत कुरैशी के राहत इंदौरी बनने और देश दुनिया में नाम कमाने की पूरी कहानी। साथ ही राहत इंदौरी के जीवन से जुड़ी हर खास जानकारी।
जीवन का आरम्भ
राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था। उनका पूरा नाम राहत कुरैशी था। उनके पिता का नाम रफतुल्लाह कुरैशी और माँ का नाम मकबूल उन्निशा बेगम है। उनके पिता कपड़ा मिल में कर्मचारी थे। राहत इनकी चौथी संतान थे। उनकी 2 बड़ी बहनें हैं जिनका नाम तकरीब और तहज़ीब है। उनके एक बड़े भाई का नाम आकिल और छोटे भाई का नाम आदिल है। उनकी तालीम की बात करें तो उन्होंने आरंभिक शिक्षा देवास और इंदौर के नूतन स्कूल से प्राप्त की।
उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया। तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। उनके छात्रों के मुताबिक वह कॉलेज के अच्छे व्याख्याता थे। उन्होने सोलह वर्षों तक इंदौर विश्विद्यालय में उर्दू साहित्य के अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। शायरी के रंग में रंगने से पहले वह चित्रकार बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने व्यावसायिक स्तर पर पेंटिंग करना भी शुरू कर दिया था। वह बॉलीवुड फिल्म के पोस्टर और बैनर को चित्रित करते थे। वह पुस्तकों के कवर को डिजाइन करते थे।
परिवार
परिवार की बात करें तो राहत इंदौरी के बारे में बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि राहत इंदौरी उर्फ राहत कुरैशी ने दो शादियां की थीं। उन्होंने पहली शादी 27 मई 1986 को सीमा रहत से की। सीमा से उनको एक बेटी शिबिल और दो बेटे फैज़ल और सतलज राहत हैं। उन्होंने 1988 में दूसरी शादी अंजुम रहबर से की। अंजुम से उनको एक पुत्र हुआ। कुछ सालों के बाद इन दोनों में तलाक हो गया था। जां निसार अख़्तर ने अख़्तर ने कहा पाँच हज़ार शेर याद करो
एक मुशायरे के दौरान राहत इंदौरी की मुलाकात मशहूर शायर जां निसार अख़्तर से हुई। ऑटोग्राफ लेते वक्त राहत इंदौरी ने जां निसार अख़्तर के सामने शायर बनने की इच्छा जाहिर की।
उनकी इच्छा को सुनकर जां निसार अख़्तर ने कहा कि पहले पांच हजार शेर जुबानी याद कर लो। फिर खुद ब खुद शायरी लिखने लगोगे। तब राहत इंदौरी ने जवाब दिया कि पाँच हजार शेर तो मुझे पहले से ही याद हैं। इस पर अख्तर साहब ने जवाब दिया कि फिर तो तुम पहले से ही शायर हो, देर किस बात की है, स्टेज संभाला करो। उसके बाद राहत इंदौरी इंदौर के आस पास के इलाकों की महफिलों में अपनी शायरी का जलवा बिखेरने लगे। राहत इंदौरी की शायरी का अंदाज़ ए बयां और अल्फ़ाज़ों का तालमेल कुछ इस तरह हुआ कि धीरे-धीरे वो एक ऐसे शायर बन गए जिन्हें हर जगह पसन्द किया जाने लगा। राहत इंदौरी की कलम ने जीवन के हर पहलू पर अपनी अलग छाप छोड़ी। बात चाहे दोस्ती की हो या प्रेम की या फिर रिश्तों की, राहत इंदौरी की कलम हर क्षेत्र में जमकर चली। उनकी हाल की रचना “बुलाती है मगर जाने का नई” सबकी ज़बान पर रट गयी थी।
हालाँकि वो सबसे कहते रहे “बुलाती है मगर जाने का नई”,
लेकिन ख़ुद हम सबको छोड़ कर चले गये।
अलविदा राहत इंदौरी
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