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अमेरिका : बोले जज- ‘ट्रंप ने एजेंडे के तहत H-1B वीजा संबंधित निर्णय लिए’

नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से पहले ट्रंप ने H-1B वीजा से संबंधित अनेक विवादास्पद निर्णय लिए थे, जो इमीग्रेशन के सभी रूपों पर अंकुश लगाने के व्यापक एजेंडे का हिस्सा थे.

इन निर्णयों को लेने का उद्देश्य भारतीयों सहित विदेशी श्रमिकों को वीजा मिलने में मुश्किलें पैदा और वीजा की संख्या में कटौती करना करना था.

कैलिफोर्निया के उत्तरी जिले के अमेरिकी जिला न्यायाधीश जेफरी एस, व्हाइट ने वीजा के संबंध में यह फैसला सुनाया कि ये बदलाव जल्दीबाजी में लिए गए थे, इन्हें लेते समय पारदर्शिता के नियमों का पालन नहीं किया गया था और सार्वजानिक टिप्पणियों के लिए नोटिस और पर्याप्त समय भी नहीं दिया गया था.

अक्टूबर में घोषित H-1B वीजा कार्यक्रम पर लागू होने वाले बदलावों में कुशल विदेशी श्रमिकों को रोजगार देने वाली कंपनियों पर वेतन संबंधी नियम थोपने और विशेष व्यवसायों पर कटौती करना शामिल है.

होमलैंड सुरक्षा अधिकारियों के विभाग ने कोरोनोवायरस के कारण नौकरियों के जाने के चलते इन नियमों को महत्वपूर्ण माना और अनुमान लगाया गया है कि हाल के वर्षों में H-1B के लिए आवेदन करने वालों में से एक-तिहाई को इन नए नियमों के तहत इंकार कर दिया गया होगा.

जज जेफ्री वाइट ने अपने निर्णय में कहा कि इन निर्णयों को लेते समय पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया था और ट्रम्प सरकार का यह तर्क है कि ये निर्णय कोरोना महामारी में आम अमेरीकियों की नौकरी जाने के चलते लिए गए थे.

सरसर झूठ और आधारहीन है क्योंकि इस तरह के विचार बहुत पहले से लेने की बात चल रही थी लेकिन इन्हें चुनावों से कुछ समय पहले ही लिया गया.

जज वाइट ने यह भी कहा कि कोरोना महामारी प्रतिवादियों के नियंत्रण से परे की घटना है लेकिन यह प्रतिवादियों के नियंत्रण में था कि वे समय से कार्यवाही करते, जज का साफ़ अर्थ यह था कि कोरोना को केवल बहाना बनाया जा रहा था.

चुनाव से हफ्तों पहले घोषित किए गए H-1B नियम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इमीग्रेशन के सभी रूपों पर अंकुश लगाने के व्यापक एजेंडे का हिस्सा थे, जून में उन्होंने अस्थायी रूप से वर्ष के अंत तक एच-1 बी कार्यक्रम को निलंबित करने का आदेश भी जारी किया था.

यूएस चम्बर ऑफ़ कॉमर्स और कई विश्वविद्यालय जैसे कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ने कैलिफोर्निया में मुकदमा कर दिया, उनका तर्क था कि इन बदलावों पर किसी तरह का कमेंट या विचार करने के लिए जनता को पर्याप्त समय नहीं दिया गया.

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