खुर्शीद रब्बानी
हमारे देश भारत में देशभक्ती के नारे अक्सर सुनने के लिये मिलते रहते हैं। फिज़ाओं में गूंजते ये नारे एक सवाल भी पैदा करते हैं कि क्या हम देश और उसके संसाधनों से उतनी ही मौहब्बत करते हैं जितना हम नारों में दिखाते हैं ? जवाब है… नहीं, अगर सर्वे किया जाए तो कानून तोड़ने में हम भारतीयों को बड़ा पुरुस्कार मिल सकता है। विशेषकर ट्रेफिक नियम तो हम अक्सर तोड़ते रहते हैं, फिर सड़क पर गंदगी फैलाना मानो जैसे हम अपना अधिकार समझते हों।
मैं इन दिनों एक पत्रकारों के डेलीगेशन के साथ इस्लामिक लोकतांत्रिक देश ईरान आया हुआ हूं, यहां जो मैंने देखा उसे आप पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं। ईरान की राजधानी तेहरान की सड़कों पर भी दिल्ली, मुम्बई और बड़े शहरों की तरह ख़ासा ट्रेफ़िक मिलेगा, कई बार कारें, बसें और दीगर व्हीकल सड़क पर रेंग्ते हुए भी नज़र आ जाएंगे लेकिन मजाल है जो किसी भी गाड़ी से होर्न बजने की आवाज़ आजाए, एक हफ़्ते के दौरान एक बार भी होर्न की आवाज़ और सड़कों पर होने वाले शोर शराबे को सुनने का मौक़ा नहीं मिला।
इतना ही नहीं किसी कार, बाइक या गाड़ी पर जात, धर्म, फिर्क़े, पीर-फ़क़ीर या गुरु के नाम के स्टीकर लगे दिखे और ना ही किसी गाड़ी पर प्रेस, पुलिस, आर्मी या डॉक्टर लिखा हुआ देखा गया, सड़क के किनारे या बीच में कोई मस्जिद या दरगाह भी नहीं मिलेगी, हर तरफ़ हरियाली, साफ़ सफ़ाई और ख़ूबसूरती ज़रूर दिखती है, ट्रैफ़िक पुलिस के जवान किसी पेड़ या दीवार के पीछे छुपने के बजाए आपको सिर्फ़ मेन रोड़ पर ही खड़े मिलेंगे।
कुल मिला कर यहां के बाशिंदे अपने अधिकारों के साथ साथ राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को भी बखूबी निभाना जानते हैं, मेरा भी यही मानना है कि सरकारें क़ानून तो बना सकती हैं लेकिन आपकी ज़ेहनियत और आपका अमल नहीं बदल सकतीं, बेहतर है कि हम भी अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में छोटे छोटे सुधार लायें ताकि दूसरे मुल्कों से आने वाले पर्यटक भी मेरी तरह वापस अपने मुल्क जाकर हिंदुस्तान के ट्रैफ़िक सिस्टम और क्लीन इंडिया मिशन की तारीफ़ करने पर मजबूर हो जाएं।
(लेखक मशहूर टीवी पत्रकार हैं, और इन दिनों ईरान की यात्रा पर हैं)
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