नई दिल्ली : आतिशी ने कहा कि एयर क्वालिटी कमीशन के अध्यादेश का समय समाप्त हो गया है, लेकिन भाजपा संसद में इसका बिल नहीं लेकर आई। जबकि केंद्र सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए एकमात्र कदम एयर क्वालिटी कमीशन का गठन करके उठाया था।

इससे साफ हो गया है कि केंद्र सरकार दिल्ली वालों के स्वास्थ्य को लेकर कितनी गंभीर है? केंद्र सरकार ने सिर्फ सुप्रीम कोर्ट को जवाब देने के लिए कागजों में एयर क्वालिटी कमीशन बना दिया था, लेकिन उसे कभी गंभीरता से नहीं लिया।

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उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को 6 हफ्ते के अंदर इस बिल को संसद के पलट पर रख कर पास कराना था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उन्होंने केंद्र सरकार पूछा कि कमीशन को वापस लेने के बाद अब पराली, थर्मल पाॅवर प्लांट, ईंट की भट्ठियों और पेट कोक से चल रहे उद्योगों से होने वाले प्रदूषण पर कौन कार्रवाई करेगा?

आखिर क्यूं केंद्र सरकार हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से आ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए कदम नहीं उठा रही है और दिल्ली वालों को जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर कर रही है।

आतिशी ने कहा कि दिल्ली की हवा में जो जहर घुला रहता है, जिसमें हम सब दिल्ली वालों को सांस लेना पड़ता है। इसकी वजह से हम सभी दिल्ली वासियों को अनेकों स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का भी समाधान करना पड़ता है।

यह एक ऐसा मुद्दा है, जिससे साल दर साल दिल्ली वाले जूझते रहते हैं। अगर आप दिल्ली के प्रदूषण को समझने की कोशिश करें, तो यह समझ में आता है कि दिल्ली में प्रदूषण के दो प्रमुख स्रोत हैं। एक, दिल्ली शहर के अंदर होने वाला प्रदूषण और दूसरा, जो बहुत सारा प्रदूषण दिल्ली के बाहर से आता है।

टेरी की दो साल पहले की एक रिपोर्ट भी यह बताती है कि दिल्ली में होने वाला 60 प्रतिशत से ज्यादा प्रदूषण दिल्ली के बाहर से आ रहा है। इसकी चर्चा भी हम कई सालों से कह रहे हैं। खासकर अक्टूबर और नवंबर के महीने में, जब पंजाब और हरियाणा में पराली जलनी शुरू होती है, तब दिल्ली में लोगों का दम घुटने लगता है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

आतिश ने कहा कि पिछले कई साल से दिल्ली सरकार अपने स्तर पर कई प्रयास कर रही है, ताकि दिल्ली से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके और उसका असर भी हुआ है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट ने खुद कहा है कि दिल्ली में 25 प्रतिशत प्रदूषण कम हुआ है।

इसमें कई सारे प्रयास हैं, जो दिल्ली सरकार ने किए हैं। चाहे दिल्ली वालों को 24 घंटे बिजली देना हो, जिसकी वजह से दिल्ली में जनरेटर का धुंआ कम हुआ है। दिल्ली में सारी इंडस्ट्री को क्लीन फ्यूल पर शिफ्ट किया गया है। हाल ही में दिल्ली में बहुत प्रोग्रेसिव इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की पॉलिसी लाई गई है और इलेक्ट्रिकल व्हीकल्स पर सब्सिडी दी जा रही है।

पूरी दिल्ली में चार्जिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं। दिल्ली में आने वाले सभी थर्मल पावर प्लांट को बंद कर दिया गया है। पूरे देश में सिर्फ इकलौता दिल्ली राज्य है, जिसने अपने सारे थर्मल पावर प्लांट बंद कर दिया है। इस साल पराली भी न जलाई जाए, उसके लिए दिल्ली ने पूसा इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर बायो डी-कंपोजर का प्रयोग किया।

दिल्ली में जहां-जहां खेती-किसानी हो रही है, वहां पर किसानों को फ्री में बायो डी-कंपोजर दिया गया। उसी तरह, ग्रीन दिल्ली एप पर चाहे धूल प्रदूषण हो या कूड़े के ढेर का जलना हो, उस पर नियंत्रण किया जा रहा है। हमारा सवाल हमेशा से केंद्र सरकार से रहा है कि जो दिल्ली के बाहर से प्रदूषण आ रहा है, उसके लिए केंद्र सरकार क्या कर रही है?

क्यूं केंद्र सरकार हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों से प्रदूषण आ रहा है, उस पर कदम क्यों नहीं उठाती है? क्यों दिल्ली वालों को दम घुटने वाली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर किया जाता है?

बार-बार दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार को लिखा है, केंद्र से एक कोआर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग की, केंद्र से अन्य राज्यों पर सख्त कार्रवाई की मांग की, लेकिन कोई भी कार्रवाई नहीं की गई।

आतिशी ने कहा कि पर्यावरणविद् आदित्य दुबे ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से कहा कि पराली जलाए जाने पर तुरंत कार्रवाई की जाए। जब वह याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची, उसके जवाब में केंद्र सरकार ने नवंबर 2020 में एक अध्यादेश के माध्यम से नेशनल एयर क्वालिटी कमीशन का गठन किया।

कमिशन की जिम्मेदारी दिल्ली-एनसीआर में होने वाले प्रदूषण और जो अलग-अलग राज्यों से प्रदूषण में योगदान करने वाले कारक हैं, उन सभी कारकों के खिलाफ कार्रवाई करना था। उस अध्यादेश में कमीशन को काफी अधिकार भी दिए गए।

कमीशन को अधिकार दिया गया कि अगर कोई उसकी बात नहीं मानता है और फिर भी प्रदूषण फैलाता है तो, कमीशन को अधिकार था कि वह उस व्यक्ति को 5 साल तक जेल भेज सकता है। कागज पर तो केंद्र सरकार कमीशन लेकर आ गई, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को जवाब देना था, लेकिन वास्तविकता में इस एयर क्वालिटी कमीशन को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया।

आतिशी ने कहा कि कुछ महीने पहले मैंने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया था कि जब हमने पर्यावरण मंत्रालय जाकर एयर क्वालिटी कमीशन से संपर्क करने की कोशिश की, तो पता चला कि कमीशन का गठन होने के 2-3 महीने बाद तक कमीशन को एक ऑफिस भी मिला था और न तो एक स्टाफ ही मिला था।

हमें बताया गया कि जब कमीशन के चेयरपर्सन कभी-कभी आते हैं, तो वे किसी कांफ्रेंस रूम में बैठ जाते हैं। हम दिल्ली विधानसभा की पर्यावरण समिति की तरफ से उनसे मिलने भी गए, तब भी पर्यावरण भवन के एक कांफ्रेंस रूम में हमारी बैठक हुई, क्योंकि तब तक भी कमीशन के अपना आॅफिस नहीं थी।

यह दिखाता है कि केंद्र सरकार प्रदूषण जैसे मुद्दों पर कितनी गंभीर है? लेकिन अब पानी सर से ऊपर चला गया है।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार नवंबर में एक अध्यादेश लेकर आई, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को जवाब देना था। संविधान के अनुसार जब अध्यादेश आता है, चूंकि सत्र के बीच कई बार यह कानून पास करने होते हैं, जब भी सत्र पुनः शुरू होता है, उसके 6 हफ्ते के अंदर संसद के पटल पर वह बिल प्रस्तुत करना होता है।

29 जनवरी 2021 को बजट सत्र शुरू हुआ था और 12 मार्च को उसके 6 हफ्ते पूरे हो गए, लेकिन इस 6 हफ्ते में एनसीआर के लिए बनाए गए एयर क्वालिटी कमीशन का कोई भी बिल संसद में प्रस्तुत नहीं किया गया और एयर क्वालिटी कमीशन के अध्यादेश की वैधता समाप्त हो गई।

दिल्ली- एनसीआर में होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने और अन्य राज्यों को भी जवाबदेह ठहराने के लिए, जो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से दिल्ली में प्रदूषण आता है, जिसकी वजह से दिल्ली वालों का दम घुटता है, उस पर कार्रवाई करने के लिए उठाया गया एकमात्र कदम जो केंद्र सरकार ने एयर क्वालिटी कमीशन का गठन करके उठाया था, वह भी बंद कर दिया गया है।

आज दिल्ली वालों के सामने यह बात स्पष्ट है कि जो जहरीली हवा में दिल्ली वाले सांस ले रहे हैं, केंद्र सरकार को उसकी कोई चिंता नहीं है कि दिल्ली वालों की समस्याओं को सुलझाया जाए।

आतिशी ने कहा कि जब एयर क्वालिटी कमीशन खत्म हो गया है, तो मैं आज दिल्ली वालों की तरफ से केंद्र सरकार के सामने चार सवाल रखना चाहती हूं। पहला, यह है कि जो पराली जलती है, जिसके लिए पूसा इंस्टीट्यूट ने कम लागत में बायो डी-कंपोजर बनाया है, पराली जलाने पर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी पर कौन कार्रवाई करने वाला है?

दूसरा सवाल, दिल्ली के 300 किलोमीटर की परिधि में 13 थर्मल पावर प्लांट चलते हैं, जो पुरानी प्रदूषणकारी तकनीक से चलते हैं, जो केंद्र सरकार के ही कई आदेशों के बाद भी इन राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान द्वारा बंद नहीं किए गए हैं, तो इन थर्मल पावर प्लांट्स, जिनसे दिल्ली में प्रदूषण आता है, उस पर कौन कार्रवाई करने वाला है?

तीसरा सवाल यह है कि दिल्ली के बाहर एनसीआर में 5000 से ज्यादा ईंट की भट्ठियां है, जो बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं और अभी भी पुरानी तकनीकी से चलती हैं। अब जब एयर क्वालिटी कमीशन खत्म हो गया है, तो इन 5000 से ज्यादा प्रदूषणकारी ईंट की भट्ठियों पर कौन कार्रवाई करने वाला है?

चौथा सवाल यह है कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सभी इंडस्ट्री पेट कोक से चलती हैं, जो दुनिया का सबसे प्रदूषित ईंधन माना जाता है, ऐसा ईंधन जो सबसे ज्यादा प्रदूषण पैदा करता है।

इन चारों राज्यों में सारे उद्योग पेट कोक का इस्तेमाल करते हैं। अब जब एयर क्वालिटी कमीशन समाप्त हो गया है तो कौन इन इंडस्ट्रीज और इन राज्यों पर कार्रवाई करने वाला है? यह चार सवाल आज मैं दिल्ली वालों की तरफ से केंद्र सरकार से पूछना चाहती हूं,

क्योंकि इतने सालों के बाद जो आपने एक कदम उठाया, चाहे सुप्रीम कोर्ट के जवाब में ही उठाया, वह एयर क्वालिटी कमीशन वाला एक कदम भी खत्म हो गया है। अब दिल्ली वालों को यह स्पष्ट हो गया है कि हमारे स्वास्थ्य की चिंता, हमारे फेफड़ों की चिंता, हमारे बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता केंद्र सरकार को नहीं है।

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