पिछले कई साल में छोटे-मोटे क्षेत्रीय संघर्ष में ड्रोन्स के इस्तेमाल ने अपनी उपयोगिता को बखूबी साबित किया है। इसलिए, आज के जमाने में ड्रोन को युद्धक्षेत्र के नए रणनीतिक और प्रभावशाली हथियार के रूप में देखा जा रहा है। दुनियाभर की सेनाएं दुश्मनों के खिलाफ युद्ध के लिए ड्रोन आर्मी को तैनात कर रही हैं।
पिछले साल तुर्की ने दुनिया के सामने अपना बायरकटार टीबी 2 सशस्त्र ड्रोन प्रदर्शित किया था। अमेरिकी MQ-9 की तुलना में तुर्की का TB2 हल्के हथि’यारों से लैस है। इसमें चार लेजर- गाइडेड मिसा’इलें लगाई जा सकती हैं। इस ड्रोन को रेडियो गाइडेड होने के कारण 320 किमी के रेंज में ऑपरेट किया जा सकता है। तकनीकी विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धियों ने सस्ते विकल्प तैयार किए हैं। यही कारण है कि तुर्की को अब उसके ड्रोन के कई खरीदार भी मिल रहे हैं।
अमेरिका-रूस और ब्रिटेन के कई सैन्य अधिकारी तुर्की और चीन में बने ड्रोन्स को लेकर गंभीर चिंता जता चुके हैं। ब्रिटेन के रक्षा सचिव बेन वालेस ने सीरिया में तुर्की के ड्रोन को लेकर काफी सख्त बयान दिया था। उन्होंने तब कहा था कि तुर्की में बने ड्रोन वैश्विक भू-राजनीतिक हालात को बदल रहे हैं।
पिछले साल हुआ था इस्तेमाल
वर्ष 2020 आर्मीनिया-अजरबैजान ने नागोर्नो-काराबाख पर कब्जे को लेकर दो महीने से भी ज्यादा समय तक एक दूसरे से युद्ध लड़ा। इसी युद्ध की एक घटना है- एक सैनिक रूसी टी-72 टैंक के पास खड़ा है। तभी ड्रोन से दागी गई एक मिसाइल आकर उससे टकराती है। पल भर में आग और धुएं का गुबार आसमान को ढक लेता है। जब तस्वीर साफ होती है तो दिखता है कि उस जवान के दोनों पैर उड़ गए हैं, जबकि टैंक आग का गोला बन गया।
इस युद्ध के दौरान अजरबैजान ने तुर्की और इजरायल के ड्रोन्स का भरपूर इस्तेमाल कर युद्ध का रूख ही मोड़ दिया। आर्मीनिया के ऊपर रूस का हाथ होने के बावजूद उसे हार का सामना करना पड़ा। युद्ध में ड्रोन के इस्तेमाल और प्रभाव को देख कर अमेरिका और रूस तक हैरान थे।
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