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डीटीसी बस घोटाले को मिली सीबीआई जाँच की मंजूरी,चौधरी अनिल ने कहा उम्मीद है ‘छोटे मोदी’ को सजा दिलवायेंगे ‘बड़े मोदी’

डीटीसी बस घोटाले को मिली सीबीआई जाँच की मंजूरी,चौधरी अनिल ने कहा उम्मीद है ‘छोटे मोदी’ को सजा दिलवायेंगे ‘बड़े मोदी’

नई दिल्ली
डीटीसी बस खरीद घोटाले में अरविंद केजरीवाल को करारा झटका लगा है। दिल्ली में 1000 लो फ्लोर बसों की खरीद में कथित गड़बड़ियों के मामले में सीबीआई जांच करेगी। गृह मंत्रालय ने दिल्ली के मुख्य सचिव को ये जानकार दी है। इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुये दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार ने कहा कि सीबीआई और सीवीसी में मेरी शिकायत पर केजरीवाल सरकार द्वारा किए गए 4288 करोड़ के डीटीसी बस घोटाले व भाजपा नेताओं द्वारा केजरीवाल को बचाने तथा मामले को दबाने के खिलाफ की गई सीबीआई जाँच की माँग स्वीकार हो गई है।
उम्मीद है, ‘छोटे मोदी’ को ‘बड़े मोदी’ सीबीआई का केवल डर नहीं बल्कि सजा दिलवाएंगे।


चौधरी अनिल ने कहा कि बस घोटाला उजागर होने के बाद भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को क्लीन चिट देने में लगे रहे। इसमें बीजेपी के लोग भी केजरीवाल का साथ दे रहे थे। भाजपा द्वारा इस मामले की जाँच एसीबी द्वारा कराये जाने की माँग की जा रही थी, जबकि हमने इसकी जाँच सीबीआई एवं सीवीसी से कराने की माँग की थी। एलजी द्वारा गठित कमेटी द्वारा क्लीन चिट मिलने पर अरविंद केजरीवाल सत्यमेव जयते के दावे कर रहे थे। घोटाले की जाँच सीबीआई को मिलने के बाद यह साबित हो गया है कि केजरीवाल सरकार घोटाले को छिपाने की साजिश कर रही थी। मुख्यमंत्री बस खरीद से लेकर चीफ़ सेक्रेटरी के साथ मारपीट तक के मामले में खुद को स्वयं ही क्लीन चिट दे देते हैं और सत्यमेव जयते का नारा लगाते हैं। चौधरी अनिल कुमार ने कहा कि अरविंद केजरीवाल को सत्मेव जयते का नारा लगाना बन्द कर देना चाहिए।
आपको बता दें कि डीटीसी की एक हजार लो फ्लोर बसों की खरीद और उसके रखरखाव के टेंडर में गड़बड़ी को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी ने 3,413 करोड़ के टेंडर में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इसकी जांच सीबीआई व केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) से कराने की मांग की थी। बस निर्माता कंपनियों द्वारा तीन वर्षों तक बसों के रखरखाव की वांरटी दिए जाने के बावजूद दिल्ली सरकार ने 3,413 करोड़ का अलग टेंडर निकाला। उनका सवाल था कि बस खरीद और रखरखाव पर अलग-अलग टेंडर क्यों निकाले गए, वह भी तब जबकि केवल दो ही कंपनियों ने टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा लेना था।

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