आज देश राष्ट्रीय पिता महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें खिराजे अकीदत पेश कर रहा है, बापू को आज ना केवल भारत बल्कि पूरा विश्व याद कर रहा है। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश को आजादी दिलाना और सत्य व अहिंसा का पाठ पढ़ा कर आजाद भारत के भविष्य की मजबूत आधारशिला रखना ऐतिहासिक था। हालांकि आजादी का ये सफर बापू के लिए आसान कतई नहीं था। उन्हें लड़ाई लड़ते हुए अनेकों बार जेल जाना पड़ा और अंग्रेज हुकुमत के जन विरोधी फैसलों के खिलाफ अनशन भी करना पड़ा। लेकिन उनकी प्रतिज्ञा अटल थी, जिसके आगे अंग्रेजी शासन उखड गया था।
गांधी व उनके महान विचार केवल युवाओं के लिए ही प्रेरणास्त्रोत नहीं बल्कि हर वर्ग के लिए भी प्रेरणा देने का कार्य करते हैं। दुनिया भर के बड़े नेता जैसे मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला, जेम्स लॉसन आदि महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हुए थे। उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों जैसे छुआछूत और लिंग भेद के लिए खिलाफ हमेशा आवाज उठाई। गांधी चाहते थे कि भारत में एक समाज का निर्माण हो जहां सभी लोग बराबर हो और लोगों के बीच कोई मतभेद ना हो।
महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान के रूप शुरू किया था। गांधी ने इस मार्च की शुरुआत अपने 78 भरोसेमंद स्वयंसेवकों के साथ की थी। 390 किमी लंबी यात्रा के बाद जब गांधी ने 6 अप्रैल 1930 को सुबह 8:30 बजे ब्रिटिश राज नमक कानूनों को तोड़ा, तो इसने लाखों भारतीयों द्वारा नमक कानूनों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा के कृत्यों को जन्म दिया। गांधी का अहिंसा भरा आंदोलन अंग्रेज हुकूमत की जड़ें हिला चुका था।
लेकिन आज 2022 में आजादी के 75 साल बाद ऐसा लगता है कि गांधी के विचार सत्ता में बैठे राजनैतिक दल और उससे जुडे संगठनों के लिए खास मायने नहीं रखते हैं, नौबत यहां तक आ पहुंची है कि ऐसे दल और संगठन महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करते रहते हैं। पिछले छह सालों से देखने में आ रहा है कि देश में कई सारी बार गोडसे ज्ञानशाला, गोडसे कार्यशाला या गोडसे के नाम पर नाटक आयोजित हुए हैं, ये महिमामंडन की तमाम कोशिशें अपने आप स्वतः स्फूर्त ढंग से नहीं हो रही हैं, यह एक सुनियोजित शाजिस का हिस्सा है, ऐसा प्रतीत होता है। यह एक तरह से ऐसे झुंड की सियासत को महिमामंडित करना है, जो अगर आगे भी फलती फूलती है तो निश्चित रूप से भारत की एकता और अखंडता के लिए ख़तरा बन सकती है। अगर ऐसा हुआ तो गांधी के साथ साथ उनके विचारों को भी मार देने की कोशिश होगी।
शायद यह कहना मुनासिब होगा कि गांधी के प्रति यह गहरा द्वेष और गोडसे के प्रति इस अत्यधिक प्रेम का ही प्रतिबिम्बन है कि तीन साल पहले यूपी के एक शहर में हिंदुत्ववादियों ने बाकायदा गांधी की प्रतिमा पर गोलियां दाग कर उनकी उस ‘मौत को नए सिरे से अभिनीत किया’ वह प्रसंग हम सभी के सामने रहा है, जिसमें ‘महात्मा’ गोडसे के नाम से नारे भी लगे थे और उसकी मूर्ति पर माला भी चढ़ाई गई थी।
आखिर आजादी के 75 साल बाद और महात्मा गांधी की हत्या के 74 साल बाद भी कुछ राजनीति से जुडे संगठनों की गांधी से उतनी नफरत क्यों है जबकि अगर धार्मिक लोगों की जुबां में भी बोले तो कहा जाता है कि मृत्यु के बाद सारे बैर खत्म हो जाते हैं, हर धर्म के लोगों की ये भावना होती है। शायद कुछ दल या फिर चंद दल और संगठन गांधी के विचारों से उतनी ही दूरी आज भी बनाए रखना चाहते हैं जितनी दूरी आजादी की लड़ाई में वो आज़दी के नायकों से बनाए रखते थे।
गांधी जी की जो “काल्पनिक” हत्या की जा रही है वो शायद ‘न्यू इंडिया’ की तस्वीर के तौर पर कुछ गांधी विरोधी दलों व संगठनों द्वारा पेश की जा रही है।आधुनिक भारत के निर्माताओं में शामिल शख्सियतों, गांधी, नेहरू, पटेल, आज़ाद, आंबेडकर आदि- के स्थान पर तरह-तरह की विवादास्पद शख्सियतों को “हीरो” बनाने की कोशिश हो रही है। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो विश्लेषकों का यह भी कहना सै कि वह दिन दूर नहीं जब गोडसे को राष्ट्रीय हीरो के तौर पर पेश किया जाए और गांधी की जयंती या उनकी शहादत का दिन अब महज औपचारिकता बन कर ना रह जाए।
लेकिन इस नकारात्मकता के दौर में एक और गांधी, राहुल गांधी मौजूदा सरकार की जन विरोधी नियत और नीतियों के खिलाफ 3500 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा कर रहे हैं। उनकी भारत जोडो यात्रा एक अच्छी पहल है क्योंकि सत्ता पाने या गवाने से परे होकर अगर सोचा जाए तो आज भारत को जोडने की सख्त जरूरत है। हो सकता है ऐसे प्रयासों से भारत सच में जुड जाए और नफरत फैलाने वालों को करारा जवाब मिल जाए। कांग्रेस के साथ साथ आज सभी दलों के कार्यकर्तओं को राहुल गांधी का समर्थन करना चाहिए ताकि गांधी की “काल्पनिक” हत्या को रोका जा सके।
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