आरफ़ा ख़ानम
मेरी एक दोस्त दिल्ली के उत्तम नगर में रहती, उसने मुझे बताया कि कई दूसरे राज्यों से लड़कियां, छोटी बच्चियां लाकर दिल्ली के बदनाम इलाक़े जीबी रोड पर बेच दी जाती हैं। उसी ने मुझे बताया कि हाल ही में राजस्थान से लाई गई 14 वर्षीय बच्ची शालू (काल्पनिक नाम) को बेचा गया है। उस बच्ची की तलाश में हम लोग जीबी रोड पहुंचे, वह बच्ची तो हमें नहीं मिली, लेकिन उन ‘कोठो’ की दीवारों पर हमें ऐसे सवाल मिले जो सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा मारते हैं, और उसकी जिम्मेदारी को झंझोड़ते हैं।
मैने वहां देखा कि सड़क के दोनों ओर दुकानों के शटर लगे हुए थे, इन दुकानों के बीच से ही सीढ़ी ऊपर की ओर जाती हैं और सीढ़ियों की दीवारों पर लिखे नंबर कोठे की पहचान कराते हैं। फिल्मों में अक्सर देखे गए कोठे इनकी तरह ही थे, लोग हमें हैरानी भरी नजरों से घूर रहे हैं, हमने तय किया कि पहले कोठा नंबर 64 में जाएंगे।
जब मैं ऊपर पहुंची
साथ आई टीम के साथ फटाफट सीढ़ियां चढ़ते हुए मैं ऊपर पहुंची, वहां इस तरह भीड़ थी जैसे त्योहारों पर रहती है, हर धर्म का पोस्टर दीवारों पर था, हम सब देख रही थे कि अचानक हमें वहां एक महिला के सवालो ने घेर लिया। उस महिला ने हमसे घूरते हुए सवाल किया कि क्या काम है? क्यो आए हो ? हमने कहा हम सर्वे करने आए हैं और देखना चाहते हैं, कुछ लिखना है आपकी ज़िन्दगी के बारे में, इस पर वह कहने लगी निकलो यहां से बहुत आते हैं तुम्हारे जैसे…..
हमने उस महिला से बड़ी मिन्नतें की तो उसने एक दो लड़कियों से बात करने की इजाजत दे दी….. चुपचाप मौका देखकर एक दो लड़कियों से शालू के बारे में या अन्य किसी लड़की के बारे में पूछा तो सबने बताने से साफ इनकार कर दिया वो अलग अलग लड़की की तरफ इशारा करके बोलती रहीं उससे पूछो, उस महिला ने हमसे बताया कि बस अब बहुत बात हो गई धंधे का वक़्त है फिर कभी आना।
हमें कोठा नंबर 64 से कुछ नहीं मिला, फिर हम कोठा 56 और धीरे धीरे अलग अलग कोठों की तरफ गए वहां भी कई सेक्स वर्कर्स से बात करने पर हमें मालूम हुआ कि यहां तो ऐसी लड़कियां आती जाती रहती हैं. यह पूछने पर कि लड़कियां लाता कौन है ? कैसे ये सब तय होता है इसका पता नहीं चल पाया।
और फिर दल दल में धकेल दी जातीं
हमने ऊपर की तरफ देखा वहां तीसरी मंजिल पर एक आदमी कलक्शन के लिए बैठा हुआ था, वह हमें देखते ही चिल्लाया और वहां से निकल जाने को कहा, देश की राजधानी में जीबी रोड पर बने ये कोठे और इनके अंदर होने वाला “धंधा” न जाने कितनी बच्चियों की ज़िंदगी को खत्म कर देता है। यहां नौकरी के नाम पर बच्चियों लाई जातीं हैं, और फिर काम का झांसा देकर कुछ लोग इन मासूमों को इस दलदल में धकेल देते है।
शहर के अंदर है दूसरा शहर
जीबी रोड पर बने कोठों के अंदर आकर पता लगता है कि एक शहर के अंदर कोई और शहर है. जिस्मफरोशी के लिए यहां लाई गई या यहां खुद अपनी मर्जी से पहुंचीं महिलाओं की जिंदगी किसी नर्क से कम नहीं है। शालू (बदला हुआ नाम) तो नहीं मिली लेकिन उसके जैसी और लड़कियां भी हैं जिनको इस नर्क में आने से रोकना है। लेकिन हमें इस बुराई को रोकना होगा, हम इसके लिये प्रयास कर रहे हैं और करते रहेंगे।
(आरफा ख़ानम वकील एंव समाजिक कार्यकर्ता और बढ़ते क़दम NGO की अध्यक्ष हैं )
No Comments: