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बिना नोटिस घर तोड़ना, अल्पसंख्यक प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटना संविधान और मौलिक अधिकारों का मज़ाक: रिटायर्ड जजों ने की सुप्रीम कोर्ट से संज्ञान लेने की मांग

बिना नोटिस घर तोड़ना, अल्पसंख्यक प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटना संविधान और मौलिक अधिकारों का मज़ाक: रिटायर्ड जजों ने की सुप्रीम कोर्ट से संज्ञान लेने की मांग

नई दिल्ली। इस समय देश में बुलडोजर चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि पूर्व में सरकार द्वारा बुलडोजर का प्रयोग नहीं किया जाता था। बुलडोजर का प्रयोग होता था, लेकिन उसके लिए बकायदा नोटिस जारी किया जाता था। किंतु वर्तमान में बिना किसी नोटिस के प्रदर्शनकारियों के घरों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। प्रयागराज हिंसा के मुख्य आरोपी मोहम्मद जावेद के घर पर 12 जून को बुलडोजर चलाया गया। प्रशासन ने इस घर को अवैध तरीके से बनाया गया बताया। मोहम्मद जावेद के वकील ने प्रशासन की कार्रवाई को गैरकानूनी बताते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका डाल दी। बुलडोजर द्वारा की जा रही इस प्रकार की कार्यवाही को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अब कुछ रिटायर्ड जजों ने भी इस कार्रवाई को गैरकानूनी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा को पत्र लिखकर बुलडोजर एक्शन और गिरफ्तारियों पर स्वतः संज्ञान लेने की माँग की है। पत्र में लिखा गया है कि हाल में यूपी के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। जिसके बाद बड़े पैमाने पर लोगों को हिरासत में लिया गया। घरों को बुलडोजर से तोड़ दिया गया। राज्य सरकार ने जो कार्रवाई की वो गैरकानूनी और निंदनीय है। राज्य सरकार की कार्रवाई हद से ज्यादा थी और नियम के अनुकूल नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आम जनता से जुड़े मामलों पर पहले भी संज्ञान लिया है। इसलिए इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान ले कर कार्रवाई करनी चाहिए।
लाइव लॉ के मुताबिक, इस लेटर पिटीशन में आरोप लगाया गया है कि प्रदर्शनकारियों का पक्ष सुनने और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की इजाजत देने के बजाय यूपी में प्रशासन उनके खिलाफ हिंसक कार्रवाई कर रहा है। खुद मुख्यमंत्री अधिकारियों को ऐसी कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने कथित रूप से अधिकारियों से कहा है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की ऐसी मिसाल बनाई जाए कि कोई भी अपराध करने या कानून को हाथ में लेने की हिम्मत न कर सके। गैरकानूनी प्रदर्शन करने वालों पर एनएसए, गैंगस्टर कानून जैसे कड़े कानून लगाने का भी निर्देश दिया गया है। उनके ऐसे बयानों से पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से और गैरकानूनी रूप से प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहन मिला है
लेटर में आगे आरोप लगाते हुए कहा गया कि यूपी पुलिस ने प्रदर्शन करने के आरोप 300 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की हैं। कई ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जिनमें पुलिस कस्टडी में नौजवानों को लाठियों से पीटा जा रहा है, प्रदर्शन करने वालों के घर बिना नोटिस दिए तोड़े जा रहे हैं, अल्पसंख्यक समुदाय के प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा जा रहा है। कानून के शासन में ये सब स्वीकार्य नहीं है। संविधान और मौलिक अधिकारों का मजाक बना दिया गया है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी आम जनता से जुड़े मामलों पर संज्ञान लेकर निर्देश दिए हैं।
पत्र लिखने वाले 12 जाने माने लोग हैं जिनमे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस सुदर्शन रेड्डी, जस्टिस गोपाला गौड़ा और जस्टिस ए के गांगुली शामिल हैं।

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