कर्नाटक। हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया है। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि स्कूल की वर्दी का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है, जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकती हैं। आदेश में कहा गया है, ‘हमारी राय है कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।’ पांच फरवरी 2022 के सरकारी आदेश को जारी करने का अधिकार है और इसे अवैध ठहराने का कोई मामला नहीं बनता है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद नेताओं से लेकर उलेमाओं तक के बयान आने शुरू हो गए हैं। इस मामले में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करके कहा कि ‘मैं हिजाब पर कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से असहमत हूँ। फैसले से असहमत होना मेरा अधिकार है और मुझे उम्मीद है कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील करेंगे। उन्होंने अगले ट्वीट में कहा कि ओवैसी ने अगले ट्वीट में लिखा कि मुझे उम्मीद है कि न सिर्फ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बल्कि बाकी संगठन भी इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे।
मामले पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का भी बयान आया है। उन्होंने कहा है कि बच्चों के फायदे के लिए सभी को कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहिए। यह हमारे बच्चों के भाग्य और शिक्षा का सवाल है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक प्रबन्ध किए गए हैं।
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को निराशाजनक बताया है। मुफ्ती ने कहा कि एक ओर हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं, तो दूसरी ओर हमने उनकी साधारण पसंद के अधिकार को नकार रहे हैं। यह सिर्फ धर्म का मामला नहीं है, बल्कि चुनने की आजादी का भी मामला है।
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने इस बारे में कहा कि कोर्ट की इस टिप्पणी से हम इत्तेफाक नहीं रखते कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। कोर्ट के आदेश का सम्मान होगा। लेकिन इस्लाम में भी हिजाब और पर्दा या चादर पहनने का जिक्र किया गया है जो महिला का अधिकार है।
दारुल उलूम फिरंगी महली के प्रवक्ता मौलाना सुफियान निजामी ने कहा, कर्नाटक हाई कोर्ट ने जो फैसला किया है, हिंदुस्तानी नागरिक के नाते हम उसका सम्मान करते हैं। जिस तरीके से हाईकोर्ट ने कहा है कि हिजाब और पर्दा इस्लाम का जरूरी अंग नहीं है हमें इससे आपत्ति है। पहले भी जिस तरीके से कहा गया कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं और फिर तीन तलाक के लिए कहा गया कि इस्लाम का हिस्सा नहीं है, इस तरीके के जजमेंट कहीं ना कहीं समझ से परे हैं। लेकिन जाहिर है कि मजहब ए इस्लाम ने पर्दे और हिजाब पर जो बात कहीं हैं कोर्ट को इन बातों पर भी गौर करने की जरूरत है।
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