नई दिल्ली : पीएम मोदी की लोकप्रियता नोटबंदी, जीएसटी, आर्थिक मंदी और कोरोना में भी घटती नहीं दिखी थी उनके साथ अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि पीएम के ‘मन की बात’ कार्यक्रम को यूट्यूब पर पसंद करने वालों से कई गुना ज़्यादा लोगों ने नापसंद किया ? रविवार को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम इसी बात को लेकर चर्चा में है, ये असामान्य बात है, कि दूरदर्शन, PIB, BJP व PM मोदी के यूट्यूब चैनलों पर इस कार्यक्रम को नापसंद करने वालों की संख्या काफ़ी ज़्यादा रही, BJP के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर जहाँ 86 हज़ार लोगों ने पसंद किया वहीं 5 लाख 74 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने इसे नापसंद किया, इसी तरह ख़ुद पीएम मोदी के यूट्वयूब चैनल पर 54 हज़ार लोगों ने कार्यक्रम को पसंद किया तो 1 लाख 57 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने इसे नापसंद किया, पीआईबी के पेज पर 4.4 हज़ार बार पसंद किया गया तो 13 हज़ार बार नापसंद किया गया, दूरदर्शन पर भी 4.4 हज़ार बार पसंद किया गया तो 9.8 हज़ार बार इसे नापसंद किया गया.
पीएम का यह कार्यक्रम काफ़ी प्रसिद्ध है और सामान्य तौर पर बीजेपी के यूट्यूब चैनल पर पसंद करने वाले लोगों की संख्या औसत रूप से 3-4 हज़ार रही है और नापसंद करने वालों की संख्या क़रीब डेढ़ हज़ार रही है, हालाँकि जुलाई महीने में नापसंद करने वालों की संख्या मामूली रूप से ज़्यादा थी, मोदी के यूट्यूब चैनल पर इस कार्यक्रम को सामान्य तौर पर पसंद करने वालों की संख्या 30-50 हज़ार के आसपास रही है और नापसंद करने वालों की संख्या 2-3 हज़ार से लेकर 13 हज़ार तक रही है, जिस तरह से पॉपुलरिटी मापने के लिए कुछ एजेंसियाँ सर्वे करती हैं यदि उसके आधार पर तुलना की जाए तो साफ़ है कि लोगों ने 30 अगस्त के कार्यक्रम से नाराज़गी ज़ाहिर की है, सर्वे एजेंसियाँ तो कुछ हज़ार लोगों की राय लेती हैं, लेकिन इन यूट्यूब चैनलों पर लाखों की संख्या में लोगों ने इसे देखा है, मिसाल के तौर पर बीजेपी के यूट्यूब चैनल पर उस कार्यक्रम को 22 लाख से ज़्यादा लोगों ने देखा और इस तरह कहा जाए तो इसमें से 86 हज़ार लोगों ने इस कार्यक्रम को अच्छा कहा और 5 लाख 74 हज़ार लोगों ने ख़राब कहा, बाक़ी लोगों ने न तो इसे पसंद किया और न ही नापसंद,
हाल ही के आए सर्वे में पीएम मोदी को काफ़ी ज़्यादा पॉपुलरिटी दिखाई गई थी, पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल के एक साल पूरे होने पर आज तक के लिए कार्वी इनसाइट्स लिमिटेड ने एक सर्वे किया था, इसी महीने उस सर्वे की रिपोर्ट जारी की गई थी, सर्वे के नतीजों में कहा गया था कि देश में 78 फ़ीसदी लोग मोदी के कामकाज को या तो बहुत अच्छा या फिर अच्छा मानते हैं, इस सर्वे में दावा किया गया था कि 12 हज़ार 21 लोगों से बात की गई, 19 राज्यों की कुल 97 लोकसभा और 194 विधानसभा सीटों के लोग सर्वे में शामिल किए गए, आज तक की रिपोर्ट में कहा गया कि अगस्त 2016 में पीएम की लोकप्रियता 53 फ़ीसदी थी जो लगातार बढ़ते हुए अगस्त 2020 में यह 78 फ़ीसदी पर पहुँच गई.
पीएम की लोकप्रियता तब भी बढ़ती रही जब नोटबंदी और जीएसटी के कार्यान्वयन को असफल बताया जाता रहा, बाद में अर्थव्यवस्था रसातल में जाती रही तब भी सर्वे में लोकप्रियता बढ़ती रही,भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के बावजूद उनकी लोकप्रियता को बढ़ते बताया गया, और अब कोरोना संकट के मामले में भारत तीसरे सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है और जल्द ही इसके दूसरे स्थान पर पहुँच जाने की आशंका है, आशंका तो यह भी जताई जा रही है कि भारत कहीं अमेरिका से आगे न निकल जाए, भारत में हर रोज़ संक्रमण के मामले अब 75 हज़ार से ज़्यादा आने लगे हैं और दुनिया में यह सबसे ज़्यादा है.
तो सवाल वही है कि आख़िर पीएम मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम को इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने नापसंद क्यों किया? क्या युवा पीएम से नाराज़ हैं, हाल के दिनों में कोरोना संकट और बाढ़ के हालात के बीच NEET, JEE जैसी परीक्षाओं का जिस तरह से छात्रों ने विरोध किया है, क्या उसी का यह नतीजा है? यूट्यूब वीडियो के कई कमेंट में कई लोगों ने इस पर कमेंट भी किया है, तो क्या छात्र पीएम से चाहते थे कि इस परीक्षा को लेकर वह ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बोलते ? ये वे सवाल हैं जिन पर कयास लगाए जा सकते हैं लेकिन साफ़ तौर पर कहना मुश्किल है कि असल वजह क्या है? मोदी ने इस बार ओणम त्योहार की बात की और भारतीय उद्यमियों को खिलौनों के क़ारोबार में संभावनाएँ तलाशने का सुझाव दिया, इस पर उन्होंने काफ़ी ज़ोर दिया, उन्होंने कहा कि इतने बड़े क़ारोबार में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है, उन्होंने यह भी कहा कि भारत में कंप्यूटर गेम्स बनाए जाने चाहिए, पीएम मोदी ने कहा कि हमारे देश में आइडियाज़ और कॉन्सेप्ट हैं, वर्चुअल गेम्स और खिलौनों के सेक्टर में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है.
रिपोर्ट सोर्स, पीटीआई
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