जितेंद्र चौधरी
जनता भी गदगद है कि
एक भाषण फिर मिला है त्याग पर, बलिदान पर।
आत्मनिर्भर विकास पर और आत्मनिर्भर राम पर।
त्याग भी तुम ही करो, विकास भी तुम ही करो।
लो छोड़ दिया है तुमको फिर तुम्हारे ही हाल पर।
इस बार प्रधानमंत्री अपने चिर परिचित अंदाज में नहीं आए और उन्होंने भाइयों और बहनों व मित्रों वाला प्रलाप नहीं अलापा बल्कि एक प्रेम पत्र लिखा भारत की महान जनता के नाम।
दूसरे दिन उन्होंने मन की बात कही। 6 साल का शासन पूरे होने पर पांच बड़ी बड़ी उपलब्धियों का जिक्र किया और परंतु कुछ महान उपलब्धियों का जिक्र नहीं किया। जिनका उन्होंने जिक्र किया उनकी बात बाद में करते हैं पहले उन उपलब्धियों की बात करते हैं जिनका प्रधानमंत्री जी ने जिक्र नहीं किया।
प्रधानमंत्री की चिट्ठी में अच्छे दिनों का कोई जिक्र नहीं था। प्रधानमंत्री की चिट्ठी में विकास की कोई चर्चा नहीं थी। नोटबंदी की सफलता (?) पर कोई शब्द नहीं था और जीएसटी पर भी सब कुछ नदारद था। महंगाई, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी पर भी कुछ नहीं था। मजदूरों के लिए क्या हुआ यह तो मजदूर ही जानते हैं, परंतु प्रधानमंत्री ने दुख जरूर प्रकट किया।
प्रिय स्नेहीजनों को उन्होंने भविष्य की कोई योजना भी नहीं बताई कि कोरोना से देश कैसे निपटेगा? प्रिय स्नेहीजनों को योग का पाठ पढ़ाया परंतु रोटी के भूगोल में उलझे किसान और मजदूर को उनकी बात पसंद आई है नहीं आई है मुझे नहीं पता।
प्रिय स्नेहीजनों को यह भी नहीं बताया की चाइना के साथ मामला क्या चल रहा है ? प्रधानमंत्री ने प्रिय स्नेहीजनों को कोई तरीका नहीं बताया जिससे रुपए की कीमत बढ़ जाए हालांकि प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके भाषणों में रुपए पर बड़ी-बड़ी बातें होती थी। उनके अनुसार सरकार और रुपए में होड़ लगी हुई है कौन ज्यादा गिरता है।
प्रिय स्नेहीजनों को यह भी नहीं बताया कितने हवाई चप्पल वाले हवाई जहाज में यात्रा कर रहे हैं।
चौकीदार ने स्नेहीजनों को यह भी नहीं बताया कि कितना काला धन वापस आ गया और यह भी नहीं बताया कि एनपीए कितना कम हुआ। यह भी नहीं बताया कि कितने लोग देश का पैसा लेकर भाग गए और यह भी नहीं बताया कि कितने लोग पिछले 6 साल में वापस लाये गए हैं जो देश का पैसा लूट कर भाग गए थे। और भी बहुत सी बातें थी जिन पर प्रधानसेवक ने मास्क लगा लिया।
अब बात करते हैं उन पांच उपलब्धियों की जिनका जिक्र प्रधानसेवक ने अपने प्रेम पत्र में किया; धारा 370 का हटना, राम मंदिर निर्माण, नागरिकता कानून 2019, ट्रिपल तलाक और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति।
देश के चौकीदार से सवाल तो पूछना बनता है कि इन पांचों फैसलों में से कौन सा ऐसा फैसला है जिससे आम आदमी के जीवन पर कोई भी सकारात्मक फर्क पड़ता हो? ऐसा कौन सा फैसला है जिससे उसके जीवन में खुशियां आती हो? इनमें से ऐसा कौन सा फैसला है जिससे गरीब आदमी को और मजदूर को रोटी मिलती हो? इनमें ऐसा कौन सा फैसला है जिससे बैंक और साहूकारों से छुटकारा मिलता हो?
इनमें ऐसा कौन सा फैसला है जिससे बेघरों को घर मिलता हो?
इनमें से कौन सा ऐसा फैसला है जो बहन बेटियों के साथ हो रहे बलात्कारों को रोकता हो? इनमें से कौन सा ऐसा फैसला है जिससे किसी भी नागरिक का कुछ भी भला होता हो?
इनमें से ऐसा कौन सा फैसला है जिससे देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलती हो अथवा देश की जीडीपी बढ़ती हो और एक देश के रूप में भारत का कुछ भी भला होता हो? इनमें से कौन सा ऐसा फैसला है जिससे अच्छे दिन आएंगे और भारत विकसित देश बनेगा ?
उत्तर है, ‘कोई नहीं’
यह सारे फैसले ऐसे हैं जिनसे किसी गरीब और मजदूर का कुछ भी भला नहीं होना है ना ही हुआ है।
हां, इन पांच फैसलों में एक चीज कॉमन है, वह है ‘हिंदू मुस्लिम विभाजन’।
प्रधानमंत्री न तो काल्पनिक राम को स्वीकार सकते हैं न हीं नकार सकते हैं। वह सारे काम इशारों में करते हैं।
जवाहरलाल नेहरु में कम से कम सच कहने की हिम्मत तो थी। उन्होंने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में लिखा था ‘रामायण और महाभारत में इंडो आर्यन जमाने की बातें, उनकी जीत और गृहयुद्ध के बारे में लिखा गया है। मुझे नहीं लगता है कि मैंने कभी इन कहानियों को सच समझ कर इनको कोई महत्व दिया और यहां तक कि मैंने इनमें वर्णित जादुई और अलौकिक बातों की आलोचना भी की है। पर मेरे लिए इनकी बातें अरेबियन नाइट और पंचतंत्र की काल्पनिक कहानियों जितनी ही सच्ची थीं।’
रोजी, रोटी, व्यापार और नौकरी आपकी भी चौपट होगी अगर आप भी सब कुछ अनदेखा करते रहे। सरकार से सवाल पूछने की आदत डाल लें अन्यथा सरकार आपको हिंदू मुस्लिम के पलड़े में तोलकर मलाई खाती रहेगी। देश गर्त में चला जाए, अगर आपको यह स्वीकार्य है तो फिर मर्जी है आपकी।
लेखक विशाल इंडिया समाचारपत्र केे प्रधान संपादक
हैं
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