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विज्ञान और तर्क को नकार, जाति और धर्म में उलझा भारत कभी विश्व गुरु नहीं बन सकता।

जितेंद्र चौधरी

शकील जमाली का एक शेर वर्तमान हालात पर बिल्कुल मुफ़ीद बैठता है;

तबाह कर दिया अहबाब को सियासत ने।
मगर मकान से झंडा नहीं उतरता है।

किसी देश को महान बनने के लिए उसके नागरिकों का प्रगतिशील होना बहुत जरूरी है। आडंबर, पाखंड और अंधभक्ति किसी भी देश को गर्त में पहुंचाने के लिए काफी है। जहां पर कोरोना भगाने के लिए कोई पुजारी किसी व्यक्ति का सिर काट कर मंदिर में चढ़ा दे, गौ सेवा के लिए बीस लाख का दान जुटाकर पुजारी फरार हो जाए और महिलाओं पर अत्याचार अपने चरम पर हो वहां आप कैसे विकास की बात सोच सकते हैं।
जहां मंदिर के नाम पर सरकारें बनती और बिगड़ती हो वहां पर गतिशीलता कैसे आएगी? शासक की भी मजबूरी है, वह भी जानता है कि मूर्ख लोगों को कैसे मूर्ख बनाया जाएगा। और भारत के हर शासक को तुम्हारी मूर्खता की ही बात करनी पड़ेगी। अगर शासक ने गलती से समझदारी, विज्ञान और प्रगतिशीलता की बात की भी तो तुम उसे नकार दोगे।

जहां पर सारे समाचार चैनल और अखबार अंधविश्वास फैलाने में लगे हुए हों, सब राशिफल बता रहे हों, सब बाबाओं को दिखा रहे हों, जहां समोसे खाने से भी ग्रह की चाल बदलती हो, वहां पर प्रगतिशीलता की बात करना बेमानी सा लगता है। जहां पर अज्ञानता और पाखंड विज्ञान पर भारी हो वहां प्रगतिशीलता कैसे आ सकती है?

जहां समझदार लोग अपना मुंह नहीं खोलते हों और मूर्ख लोग चिल्लाते हों वहां प्रगतिशीलता कैसे संभव है? जहां अंधविश्वास और पाखंड बहुसंख्यक आबादी का शोषण करता हो वहां प्रगतिशीलता कैसे संभव है?

वर्तमान में अमेरिका में नस्लवादी अत्याचार के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं और उन प्रदर्शनों में भारी संख्या में गोरे लोग अश्वेत लोगों का साथ दे रहे हैं। प्रगतिशीलता कोई सस्ती चीज नहीं है बल्कि अपने ही समुदाय के हितों के खिलाफ खड़ा होना पड़ता है। क्या भारत में यह संभव है?

भारत में रोज असंख्य लोगों के साथ अत्याचार होता है। महिलाओं के साथ बलात्कार, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों या अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार, तो क्या इन पीढ़ियों को कभी भी तथाकथित देशभक्तों का साथ मिला?

व्हाइट हाउस के सामने एक श्वेत लड़की ने भीड़ में मौजूद एक अश्वेत लड़के को बचाने के लिए जो किया उससे ही किसी महान राष्ट्र का निर्माण होता है। वही प्रगतिशीलता की निशानी है। वैसे, परिवारवाद से व्यक्तिवाद पर पहुंचे देश में प्रगतिशीलता की बातें बेमानी हैं। चलिए आप कम से कम आत्मनिर्भर तो बनिए। खाना जलाने से नहीं खाने से स्वास्थ्य अच्छा होगा। पत्थरों से आपका भला नहीं होने वाला।

भारत को फिलहाल एक कोरोना मंत्री की बहुत जरूरत है और पीयूष गोयल इसके लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं। हो सकता है रेल की तरह कोरोना भी भटक कर किसी और देश में पहुंच जाए।

अगर देश को सच में विश्व गुरु बनाना है तो ऊंच-नीच, जाति, धर्म, पाखंड, आडम्बर, अंधविश्वास की दीवारों को तोड़कर विज्ञान और प्रगतिशील सामजिक, आर्थिक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। अन्यथा, दिल बहलाने को ग़ालिब, हर ख्याल ही अच्छा है।

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