कृष्णकांत
संघ परिवार के छात्र संगठन एबीवीपी का कहना है कि भगत सिंह सावरकर से प्रेरणा लेते थे। अगर भगत सिंह 5 बार अंग्रेजों से माफी मांगने वाले सावरकर से प्रेरणा लेते तो वे अंग्रेज सरकार से यह न कहते कि मुझे छोड़ने की जगह मेरे साथ राजनीतिक बंदी जैसा व्यवहार किया जाए और मुझे तोप से उड़ा दिया जाए।
अगर भगत सिंह ने सावरकर से प्रेरणा ली होती तो वे अदालत में यह न कहते कि लड़ाई छिड़ चुकी है और तब तक जारी रहेगी जब तक साम्राज्यवाद का अंत नहीं हो जाता। वे यह भी न कबूल करते कि हमने असेम्बली में बम फेंका लेकिन किसी को मारने के लिए नहीं। हम मानवता से बेपनाह मुहब्बत करते हैं। हमने इसलिए धमाका किया क्योंकि बहरी सरकार को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत थी। भगत सिंह जो सजा माफ करने की बात पर अपने पिता तक से नाराज हो गए थे, उनके प्रेरणास्रोत सावरकर नहीं हो सकते।
अब रही बात सावरकर और भगत सिंह के बलिदान की तुलना की तो तुरंत जनता में यह बात उठती है कि ‘सूरदास प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै’? बलिदान सिर्फ और सिर्फ बलिदान है जो भगत सिंह और उनके साथियों ने दिया। सावरकर एक बार जेल गए और माफी मांगकर बाहर आ गए। एक ने प्राण दिया और एक ने माफी मांग ली। इसके बाद सावरकर ताउम्र आज़ादी आंदोलन से दूर रहे। बाद में गांधी की हत्या में जरूर उनका नाम आया, हालांकि सबूतों के अभाव में छूट गए।
एक थे श्याम प्रसाद मुखर्जी, 1942 के ‘अंतिम युद्ध’ के समय अंग्रेजों के साथ मिलकर आंदोलन कुचलने की रणनीति बना रहे थे और अंग्रेजी फौज में भारतीय युवाओं को भर्ती करने के लिए कैम्प लगा रहे थे। संघ की आधिकारिक रणनीति यही थी कि आजादी आंदोलन में संघ शामिल नहीं होगा। कोई स्वयंसेवक चाहे तो शामिल हो, यह ऐच्छिक होगा।
अटल बिहारी वाजपेयी अभी पिछले साल दिवंगत हुए जो बलवे के दौरान पकड़े गए तो अपने साथियों के नाम पुलिस को बताकर छूट गए थे। सावरकर संघ के संस्थापक नहीं थे। वे हिन्दू महासभा से जरूर जुड़े थे। उनके अलावा संघ परिवार का कोई व्यक्ति आज़ादी आंदोलन में नाखून भी कटवाने नहीं गया। जिसने जान दी और जिसने ताकतवर अंग्रेजों की मुखबिरी की, उनको आप एक पलड़े में भी नहीं रख सकते। बड़ा बताने की कोशिश तो सूरज को दिया दिखाना है।
संघ परिवार का असली मकसद सावरकर को स्थापित नहीं है, बल्कि पूरे आज़ादी आंदोलन को कलंकित करना और नकारना है। यह पहले से स्थापित है कि सावरकर आज़ादी आंदोलन की शुरुआत में इसमें शामिल रहे और उन्हें काला पानी की सज़ा मिली थी। यह भी ध्यान रखने की बात है कि गांधी और अन्य नेता उनकी रिहाई की पैरवी कर रहे थे, लेकिन तब तक वे माफी मांग कर बाहर आ गए।
ये सब अनर्गल बातें करने वालों का असली मकसद है भगत सिंह, गांधी, नेहरू आदि को खारिज करके सावरकर, गोलवलकर, श्याम प्रसाद मुखर्जी को स्थापित करना। इसी मकसद से पटेल को नेहरू के खिलाफ, भगत को सावरकर के साथ, गांधी को हिंदुओं, संघ और गोडसे के खिलाफ खड़ा करते रहते हैं। अब कोई यह बताए कि हिंदू धर्म संघ की बपौती कब से हो गया? अगर सनातन हिंदू धर्म को कोई खतरा है तो 40 साल पुरानी पार्टी और 90 साल पुराना संगठन कैसे बचा लेगा? ऐसा सोचना हजारों साल पुराने सनातन धर्म का अपमान करना है।
ऐसा करके संघ गांधी, भगत, नेहरू, पटेल के साथ उन सावरकर का भी अपमान करता है जो आज़ादी आंदोलन में काला पानी की सजा काटने गए थे। माफी मांगना और भाग खड़े होना उनका चुनाव था, तमाम रजवाड़े और एलीट भी तो आंदोलन के साथ नहीं थे। संघ ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसने 1947 में मिली आज़ादी को झूठा बताया। तिरंगा, संविधान, लोकतंत्र सबको नकार दिया। आज वे पूरे आज़ादी आंदोलन को कलंकित करना चाहते हैं।
लेकिन ऐसा करके वे सनातन हिंदू धर्म को राजनीति का विषय बनाकर हिंदुत्व की थ्योरी देने वाले सावरकर के योगदान का भी अपमान करते हैं। हम आप आज़ादी आंदोलन के समय पैदा तो नहीं हुए लेकिन आज उस विरासत का कम से कम सम्मान कर सकते हैं। आज़ादी आंदोलन के नेताओं और इतिहास के साथ खेल करना भी गद्दारी की श्रेणी में आएगा।
(लेखक युवा पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)
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