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नज़रियाः मोदी किसी की सुनते नहीं, इसलिए काबिल अर्थशास्त्री इस सरकार से दूर भाग रहे हैं।

कृष्णकांत

डायपर और कच्छा बेचने वाली कंपनियों की भी बिक्री में गिरावट दर्ज की गई है। ‘इनरवियर इंडेक्स’ कहता है कि मंदी आ रही है। लोग पैसा बचा रहे हैं और कच्छा आदि पर कम खर्च कर रहे हैं। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक हो गई है। मीडिया में खबरें हैं कि हेयर ऑयल से लेकर मोटरसाइकिल तक की बिक्री घट रही है। इमामी कंपनी का कहना है कि उसके प्रोडक्ट जैसे तेल, शैम्पू आदि की मांग काफी घट गई है। कारोबार में कंजम्प्शन में कमी का असर पड़ रहा है।

दोपहिया वाहन बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी हीरो मोटोकॉर्प ने शुक्रवार को अपनी उत्पादन इकाई तीन दिन के लिए बंद कर दी। ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनी सुंदरम क्लेटन ने कई सेक्टर्स में आई कमजोरी को कारण बताते हुए तमिलनाडु स्थित अपने कारखाने को बंद किया है। भारतीय रिजर्व बैंक लगातार ब्याज दरों में कटौती कर रहा है। रेपो रेट 9 साल के न्यूनतम स्तर पर है। मगर इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।

जीडीपी 5.8 फ़ीसदी के अपने न्यूनतम स्तर पर है, कमजोर अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी बढ़ने के संकट के चलते लोग खर्च कम कर रहे हैं। जीडीपी की विकास दर घटने से लोगों की आमदनी, खपत, बचत और निवेश, सब पर असर पड़ रहा है। तेजी से लोगों की नौकरियां जा रही हैं। उत्पादन, खपत और निर्यात सब बुरे असर से जूझ रहे हैं। आटो सेक्टर खतरनाक रूप से मंदी की चपेट में आ चुका है। देश की अर्थव्यवस्था में पिछली तीन तिमाहियों में गिरावट दर्ज हुई है। विकास के पूर्वानुमान भी ध्वस्त हैं। औद्योगिक उत्पादन और कोर इंफ्रास्ट्रक्चर में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है।

लाल किले से मोदी ने कहा कि भविष्य में भारत निर्यात हब बनने जा रहा है। कैसे बनेगा यह रहस्य कोई नहीं जानता ​क्योंकि उत्पादन और निर्यात दोनों लगातार घट रहा है। पिछली जनवरी से जुलाई यानी सात महीने के दौरान निर्यात में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 9.7 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। निर्यात घट रहा है क्योंकि विदेशी बाज़ार में भी भारतीय सामानों की बिक्री की संभावना बेहद सीमित रह गई है। जीडीपी में निर्यात का योगदान घट रहा है।

अप्रैल 2019 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 7.3 अरब डॉलर था। मई में यह घट कर 5.1 अरब डॉलर ही रह गया। ​रिज़र्ब बैंक के मुताबिक, देश में आ रहा कुल विदेशी निवेश अप्रैल में 3 अरब डॉलर था। पर, मई महीने में ये घटकर 2.8 अरब डॉलर ही रह गया। अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ रहा है। इसका असर भारत पर भी पड़ रहा है।

हालांकि, इस मंदी के दौर में भी मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी लाभ में हैं। दो दिनों में मुकेश अंबानी की दौलत में 29,000 करोड़ का इजाफा हुआ है। कर्ज में डूबे राफेल वाले अनिल अंबानी समूह का मुनाफा इस वर्ष की पहली तिमाही में चार गुना बढ़ गया है। उनकी कंपनी की कुल आय में भी 31 फीसदी की बढ़त हुई है। मंदी बढ़ रही है, साथ में असमानता बढ़ रही है। निर्माण क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, निर्यात सब में गिरावट है। बैंकों और वित्तीय संस्थानों की हालत खस्ता है। रोजगार का संकट भयावह हो गया है।

जानकारों का मानना है कि अर्थव्यवस्था की यह हालत इसलिए हुई क्योंकि मनमोहन और मोदी ने सुधारों पर ध्यान नहीं दिया। सरकार नीतियों में लगातार नाकाम हो रही है। मोदी सरकार अपने अहंकार में दिशाहीन हो गई है। नोटबंदी और रॉकेट साइंट का कान काट लेने वाली जीएसटी ने संकट को और गहरा कर दिया। मोदी किसी की सुनते नहीं, इसलिए काबिल अर्थशास्त्री इस सरकार से दूर भाग रहे हैं।

मोदी सरकार की मनमानी के चलते रघुराम राजन, उर्जित पटेल, अरविंद पनगढ़िया, इला पटनायक, अरविंद सुब्रमण्यम और विरल आचार्य जैसे अर्थशास्त्री भाग खड़े हुए। पिछले कई दशकों में ऐसा पहली बार है जब वित्त मंत्रालय में ऐसा कोई आईएएस अधिकारी नहीं है, जिसके पास अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हो और जो अर्थव्यवस्था की बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को नीतियां बनाने में मदद कर सके।

(लेखक युवा पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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