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अरविंद केजरीवाल के दरवाज़े अल्पसंख्यकों के लिए वोट के समय खुलते हैं और दंगे के समय बन्द रहते हैं

शमशाद रज़ा अंसारी

दिल्ली दंगों को लेकर अरविंद केजरीवाल की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। अरविंद केजरीवाल का बड़ा वोट बैंक रहा अल्पसंख्यक समाज दिल्ली दंगों में अरविंद केजरीवाल की भूमिका के बाद छिटक रहा है। कांग्रेस भी दिल्ली दंगों को लेकर अल्पसंख्यक समाज की अरविंद केजरीवाल से चल रही नाराज़गी को भुनाने का प्रयास कर रही है। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार ने सोशल मीडिया पर दर्शकों से संवाद करते हुये अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाना सीधा।

क्या बोले अनिल कुमार

अनिल कुमार ने कहा कि दंगों के समय जब अल्पसंख्यकों को मदद की ज़रूरत थी तो अरविंद केजरीवाल मुँह छुपा कर बैठ गये। कांग्रेस ने छह हज़ार लोगों की मदद की। उस समय यह बहुत आवश्यक था। यदि इस तरह के कार्य सरकार में बैठे लोग या सरकार करती तो पीड़ितों को मरहम लगता। लेकिन जब दिल्ली का मुखिया ही घर में छुप कर बैठ जाये और एक शब्द न बोले तो आप समझ सकते हैं कि मुख्यमंत्री की किस तरह की सोच रही होगी। इसलिये सरकारी मदद जिस तरह मिलनी चाहिए थी वो नही मिली। हालाँकि स्वयं सेवी संस्थाओं ने दंगा पीड़ितों की मदद की लेकिन सरकार ने मदद नही की। अरविंद केजरीवाल ने वादे तो बहुत किये लेकिन वो केवल वादे ही बन कर रह गये।

अरविंद केजरीवाल के वक्तव्यों और व्यवहार में जो बदलाव आया है वो देखा जा सकता है। इन दंगों को रोका जा सकता था। याद होगा जब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं। तब विपक्ष ने दिल्ली अव्यवस्थित करने का प्रयास किया। कहा गया कि प्रवीण तोगड़िया यात्रा लेकर के निकलेंगे और दिल्ली में तलवार बांटेंगे। तब शीला दीक्षित ने नारा दिया था कि आप तलवार बाँटिये हम कलम बांटेंगे। दिल्ली को तलवार की नही शिक्षा की आवश्यकता है। ऐसे नारे के संदेश ने दिल्ली को एकजुट किया। तब हम छोटे हुआ करते थे लेकिन तब तनाव करने की कोशिश दिल्ली में की गई। यदि एक सरकार इस तरह के प्रयास करती है और एक मुख्यमंत्री जो अपनी जनता से लगाव रखता है वो कभी ऐसे मसलों को आगे नही बढ़ने देता। लेकिन केजरीवाल निरन्तर चुप रहे। सीएए एनआरसी को लेकर कभी उनका बयान नही आया। जो बच्चे धरने पर थे जो साथी आवाज पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे उस समय उनकी भूमिका को देखिये।

जब दंगे शुरू हुए अल्पसंख्यक परिवार के लोग इन दंगों के डर से इनके घर तक पहुंचे पूरी रात खड़े रहे थे घर के बाहर सूचना देने के लिए मिलने के लिए। लेकिन जो अरविंद केजरीवाल वोट के लिए इनके दरवाज़े खोलते हैं वो इनसे मिले तक नही। कोई सिंगल व्यक्ति नहीं गया था। पूरी रात कम से कम 100 से ज्यादा लोग थे। जो अरविंद केजरीवाल को ये बताने गये थे कि दिल्ली के अंदर यह स्थिति है, इसको संभाला जा सकता है। पर अरविंद केजरीवाल के दरवाजे नहीं खुले। जो अपने आप को बेटा कहते हैं, अभिभावक कहते हैं और यह दावा करते हैं कि सबके लिए दरवाज़े खुले हैं, कभी भी याद कर लीजिए। मैं सीधे तौर पर भूमिका नहीं दावे के साथ कहता हूं कि केजरीवाल चुप रहे, मौन रहे और उन्हें कोई किसी तरह का कोई प्रयास दिल्ली के दंगों की रोकथाम एवं बचाने के लिए नहीं किया, किया होता तो उनका प्रशासन था। लोकल प्रशासन की क्या भूमिका रही। जिस तरह उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग की कमेटी बना कर अपने आप को क्लीन चिट देने की कोशिश की उस पर कांग्रेस पार्टी ने समीक्षा कमेटी भी बनाई थी। हमने सब लोगों के सामने बात रखी थी कि अपने आप को निर्दोष साबित करने का जो प्रयास कर रहे हो वो हो नही सकता है। अल्पसंख्यक आयोग ने भी थर्ड पार्टी को दे दिया कि आप जाकर जांच करें। तब भी हमने प्रेसवार्ता करके इनकी भूमिका पर सवाल उठाया था।

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