नई दिल्ली। इतिहास विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने बुधवार को विश्वविद्यालय के एफटीके-सीआईटी हॉल में मुशीरुल हसन एंडोमेंट फंड के तहत दूसरे मुशीरुल हसन मेमोरियल लेक्चर का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जामिया की कुलपति प्रो नजमा अख्तर ने की। कुलपति ने स्पीकर प्रो. शाहिद अमीन और अन्य सम्मानित अतिथियों का स्वागत किया। इस कार्यक्रम में प्रो. जोया हसन, प्रो. नाज़िम हुसैन जाफ़री (रजिस्ट्रार, जेएमआई) और प्रो. एम असदुद्दीन (डीन, जेएमआई) के अलावा अन्य भी मौजूद थे।
कार्यक्रम की शुरुआत जामिया की कुलपति प्रो. नजमा अख्तर के स्वागत भाषण और अध्यक्षीय भाषण से हुई। कुलपति ने कहा प्रोफेसर मुशीरुल हसन भारत की स्वतंत्रता के बाद के सबसे बेहतरीन इतिहासकारों में से एक थे, जो नेहरू, गांधी और कई अन्य लोगों पर अपने कार्यों के लिए जाने जाते हैं। वह भारत में इतिहास लेखन के स्वर को बदलने में अग्रणी थे, जिसके लिए उन्हें याद किया जाता है। एक सफल कुलपति के रूप में उन्होंने विभिन्न अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की और उन्हें जामिया बिरादरी में जामिया के शाहजहां के रूप में जाना जाता है। वार्षिक रूप में आयोजित किया जाने वाला प्रोफेसर मुशीरुल हसन स्मृति व्याख्यान उन्हें और उनकी विरासत के प्रति सम्मान प्रकट करने एक प्रयास है।
प्रो. जोया हसन ने स्वर्गीय प्रो. मुशीरुल हसन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने इतिहास के क्षेत्र में प्रो. हसन के योगदान के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि दिवंगत प्रो. मुशीरुल हसन के पिता प्रो. मोहिबुल हसन जामिया में इतिहास विभाग के संस्थापक प्रोफेसर थे और मुशीरुल हसन के बौद्धिक विकास पर उनका गहरा प्रभाव था। अपने पिता की तरह वह भी एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी थे।
प्रो. फरहत नसरीन, विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, जामिया ने औपचारिक रूप से प्रो. शाहिद अमीन का परिचय कराया।
गांधी एंड पीजेंट्स: ए री-लुक एट चंपारण 1917 पर प्रो. शाहिद अमीन द्वारा व्याख्यान दिया गया, जो हाल ही में जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ए.एम. ख्वाजा चेयर प्रोफेसर के रूप में जुड़े थे। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित इतिहासकारों में से एक प्रोफेसर अमीन ने; चंपारण सत्याग्रह में गांधीजी की भागीदारी के बारे में बात की। गांधीजी ने अपने प्रतिष्ठित वकीलों के समूह के साथ किसानों के अनुभवों को जानने और रिकॉर्ड करने का प्रयास किया। किसान अपने अनुभव भोजपुरी में सुनाते थे, जिनका अनुवाद मौके पर ही कर दिया जाता था। आर्थिक कठिनाइयों के अलावा, किसानों के ये आख्यान उस भेदभाव की भी जानकारी देते हैं जिसका उन्होंने अपने दैनिक जीवन में सामना किया। प्रो. अमीन ने चंपारण में किसानों के साथ गांधीजी की बातचीत का पता लगाने के लिए नए और गैरपारंपरिक स्रोतों का इस्तेमाल किया।
व्याख्यान में अच्छी-खासी भागीदारी रही और बौद्धिक आदान-प्रदान और विद्वानों के बीच हुई चर्चा कार्यक्रम की उपलब्धि रही।
No Comments: