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ग़ालिब जयंती पर बोले कुमार विश्वास, ‘ऐसे शायर सदियों में एक होते हैं जिनका तख़ल्लुस ही शायरी का उनवान हो जाए’

नई दिल्लीः मशहूर शायर मिर्ज़ा असदुल्लाह ग़ालिब का आज जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर लोगों ने उन्हें अपने अपने तरीक़े से याद किया है। इसी क्रम में कवि सम्मेलन एंव मुशायरों के मंचों पर अपनी धाक जमाने वाले कुमार विश्वास ने ग़ालिब को अनोखे अंदाज़ में याद किया है। कुमार ने कहा कि शब्द संसार में ऐसी धाक बहुत कम सुखनवरों को नसीब हुई है।

डॉ कुमार विश्वास ने कहा कि ऐसे शायर सदियों में एक होते हैं जिनका तख़ल्लुस ही शायरी का उनवान हो जाए और जिनकी पहचान ही ख़ुद में पूरा दीवान समेटे हुए ग़ज़ल का पर्याय बन जाए। आज इंटरनेट की आभासी दुनिया में ग़ालिब की स्वीकार्यता का आलम यह है कि लोग अपनी ऊल-जलूल तुकबंदियो को भी स्वीकार्य बनाने के लिए उनके नीचे ग़ालिब का नाम लिख देते हैं। शब्द संसार में ऐसी धाक बहुत कम सुखनवरों को नसीब होती है जिसके प्रभाव में लोग अपनी पंक्तियाँ भी आपके हवाले करने लगे। उर्दू शायरी के ऐसे अज़ीम बादशाह मिर्ज़ा असदुल्ला खां ‘ग़ालिब’ के जन्मदिवस पर उन्हें हम शायरी के दीवानों की तरफ़ से सादर प्रणाम।

ऊधम सिंह को भी किया याद

कुमार विश्वास ने बीते रोज़ 26 दिसंबर अमर शहीद उधम सिंह  के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए कहा कि  भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में अग्रगण्य, धैर्य और वीरता की समग्रता के पर्याय उधम सिंह जी ने भारतीय क्रांति-ज्वाला की तपिश ब्रिटिश हूकूमत के नाक के नीचे लंदन में अँगरेज़ गवर्नर माइकल ओ’ ड्वायर को गोली मार कर दर्ज कराई थी। कहते हैं कि जलियॉंवाला बाग हत्याकांड के बाद निर्दोष भारतीयों की निर्मम हत्या का बदला लेने के लिए 21 वर्ष तक अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करने के बाद जब निर्भीक उधम सिंह जी ने डायर को गोली मारी तो उसके बाद भागने के बजाए वहीं खड़े रहे ताकि उनकी आवाज़ अंग्रेजी हुकूमत से ले कर भारतीय क्रांतिकारियों तक, हर ओर पहुँच सके। इस घटना के बाद उधमसिंह तो फाँसी चढ़ गए पर अपनी अमर शहादत से अंग्रेज़ों के गले में भी एक फाँस छोड़ गए। भारत माता के इस निडर अमर पुत्र शहीद उधम सिंह को नमन।

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