रवीश कुमार का लेख….
UPA के समय के तेल-बॉन्ड के कारण पेट्रोल 110 रुपया लीटर नहीं हुआ है
निर्मला सीतारमण ने साफ-साफ कह दिया है कि केंद्र पेट्रोल और डीज़ल पर लगने वाले टैक्स में कमी नहीं करेगा, अगर राज्य उपभोक्ता को राहत देना चाहते हैं तो टैक्स में कटौती कर सकते हैं। इस बयान का मतलब है कि वित्त मंत्री की नज़र में उपभोक्ता को राहत देने केंद्र सरकार का काम नहीं है और केंद्र पेट्रोल डीज़ल के दाम कम नहीं करेगा। निर्मला सीतारमण ने यह बात 16 अगस्त को कही है। कितनी आसानी से वित्त मंत्री कहानी बना गई, आगे की कहानी से आपको समझ आ जाए।
राज्य सरकारों ने वित्त मंत्री के इस बयान पर एतराज़ जताया है। राज्यों का कहना है कि केंद्र सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रही है। राज्यों की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। जीएसटी का हिस्सा भी पूरा नहीं मिल रहा है। तमिलनाडू ने पेट्रोल पर लगने वाले टैक्स में तीन रुपये की कमी की है लेकिन पड़ोस के कर्नाटक में बीजेपी की सरकार के नए मुख्यमंत्री ने साफ साफ मना कर दिया है। पेट्रोल की कीमतों को कम नहीं करने को लेकर बीजेपी और मोदी सरकार का आत्मविश्वास काबिले तारीफ़ है। किसी पार्टी के राज में 110 रुपये लीटर पेट्रोल मिल रहा हो और जनता स्वीकार कर रही हो, ऐसी किस्मत किसी भी दल के सरकार को कभी भी नहीं मिलेगी। यह बात विपक्ष नहीं समझ रहा है कि जनता क्यों 110 रुपये लीटर पेट्रोल ख़रीद रही है और उफ़्फ़ तक नहीं कर रही है।
16 अगस्त को वित्त मंत्री ने कहा UPA सरकार ने तेल के दाम घटाने के लिए 1.44 लाख करोड़ का तेल बॉन्ड ख़रीदा ताकि घटी हुई कीमतों के बदले तेल कंपनियों को सब्सिडी दे सके। वित्त मंत्री का कहना है कि यूपीए की इस चालाकी का बोझ NDA सरकार पर आ गया है। अगर उनके पास पैसे होते तो बॉन्ड का पैसा चुका कर पेट्रोल और डीज़ल के दाम कम कर देती। निर्मला सीतारमण ने कहा है कि पिछले पांच साल में सरकार अभी तक 70,195 करोड़ ब्याज के तौर पर दे चुकी है। वित्त वर्ष 2026 तक सरकार को 37,340 करोड़ रुपये और चुकाने हैं।
वित्त मंत्री के कहने से पहले यह तर्क व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में घर-घर पहुंचा दिया गया है कि तेल के दाम बढ़ने के लिए मनमोहन सिंह की सरकार ज़िम्मेदार है। सत्ता में सात साल बिता चुकने के बाद मोदी सरकार तेल के दाम के लिए मनमोहन सिंह की सरकार को ज़िम्मेदार बता रही है। यह प्रोपेगैंडा ग़ज़ब तो है ही, उससे भी ज़्यादा अजब है कि जनता ने स्वीकार कर लिया है।
बिज़नेस की ख़बरों से जुड़ी वेबसाइट ब्लूमबर्ग क्विट के निशांत शर्मा ने इस पर रिपोर्ट की है।निशांत ने बताया है कि तेल बॉन्ड का बकाया 1 लाख 30 हज़ार करोड़ ही है लेकिन लेकिन मोदी सरकार पर कुल कर्ज़ा 116 लाख करोड़ का हो चुका है। इस साल मोदी सरकार 12 लाख करोड़ कर्ज़ लेने वाली है। तेल बॉन्ड पर वार्षिय ब्याज करीब 10 हज़ार करोड़ है। इस वित्त वर्ष में मोदी सरकार पर जो कुल कर्ज़ है उसी का ब्याज़ करीब 7 लाख करोड़ है। वित्त वर्ष 2022 में यह बढ़ कर 8 लाख करोड़ से भी अधिक हो जाएगा।
सरकार ने लोक सभा में बताया है कि वित्त वर्ष 2021 में अभी तक सरकार पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स से पौने चार लाख करोड़ वसूल चुकी है। निशांत लिखते हैं कि CAG के आंकड़ों से टैक्स के रुप में वसूली गई राशि करीब 4 करोड़ है। तो इस हिसाब से 10,000 करोड़ का ब्याज तो बहुत मामूली हुआ। सरकार आराम से ब्याज देकर पेट्रोल और डीज़ल के दाम सस्ते कर सकती थी और टैक्स घंटा सकती थी।
आर्थिक मामलों के पत्रकार विवेक कॉल(vivekkaul.com) को पढ़ा कीजिए। विवेक का कहना है कि पेट्रोल और डीज़ल के टैक्स इसलिए ज़्यादा हैं क्योंकि कोरपोरेट से मिलने वाला टैक्स कम हो गया है। कारपोरेट को ख़ुश करने के लिए जनता अपनी जेब से पैसे दे रही है। जबकि कोरपोरेट टैक्स यह कह कर कम किया गया था कि वे निवेश करेंगे और नौकरियां आएंगी। नौकरी की क्या हालत है, आप जानते हैं।
2017 में में GDP में कारपोरेट टैक्स का हिस्सा 3.34 प्रतिशत था लेकिन 2020-21 में घट कर 2.32 प्रतिशत पर आ गया है।2019-20 में कोरपोरेट टैक्स से सरकार को 5.57 लाख करोड़ मिले थे। 2020-21 में 4.57 लाख करोड़ ही मिले। करीब एक लाख करोड़ की कमी आ गई। यह कमी तब आई जब लिस्टेड कंपनियों का मुनाफ़ा काफी बढ़ा है। कंपनी का मुनाफ़ा बढ़ रहा है और टैक्स कम हो रहा है। क्या ऐसा आपके साथ होता है? आपकी कमाई घट रही है और टैक्स बढ़ रहा है। आपको 100-110 रुपये लीटर पेट्रोल डीज़ल ख़रीदना पड़ रहा है।
सरकार को एक लाख करोड़ की भरपाई करनी है तो उसने पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स बढ़ा दिए। इसलिए 2012 में यूपीए के समय ख़रीदा गया तेल-बॉन्ड कारण नहीं है। बाकी आप यकीन उसी पर करें जो व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी का फार्वर्ड मैसेज करता है और सरकार से मांग करें कि पेट्रोल का दाम 220 रुपया कर दे।