Header advertisement

तब्लीगी जमात को बदनाम करने का मामला, हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं, लेकिन नकारात्मक रिपोर्टिंग संविधान के विरुद्ध : मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली : जब फ्रीडम ही पूर्ण (Absolute) नहीं है तो फ्रीडम ऑफ स्पीच पूर्ण (Absolute) कैसे हो सकती है। फ्रीडम ऑफ स्पीच का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप किसी पर अनाप-शनाप टिप्पणी करें। किसी की निष्ठा पर प्रहार करें। शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने तबलीगी जमात के लोगों को मीडिया के एक धड़े के जरिए करोना फैलाने का जिम्मेदार ठहराने और समाज में तबलीगी जमात के तईं ज़हर बोने के मामले में देर से ही सही लेकिन मौलाना सैयद अरशद मदनी के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका पर केंद्र सरकार को आज फटकार लगाई। अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि हाल के दिनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा दुरूपयोग हुआ है।

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे पर भी सख्त टिप्पणी की और उसे अधूरा बताया। ज्ञात रहे कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने एक जूनियर अधिकारी के माध्यम से उस याचिका पर हलफनामा दिया था जिस में मीडिया के एक धड़े पर देश में नफरत का माहौल बनाने और तबलीगी जमात के लोगों को समाज का दुश्मन बताने का आरोप था। चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया बोबडे ने कहा कि आप इस अदालत के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते। जूनियर अधिकारी ने जो हलफनामा दाखिल किया है वह गोलमोल है।  चीफ जस्टिस ने कहा कि हलफनामे में याचिकाकर्ताओं द्वारा कुछ टीवी चैनलों का नाम लेकर उन पर आरोप लगाए गए हैं। आरोपों पर हलफनामे में कोई प्रतिक्रिया नहीं है। सुप्रीम कोर्ट इस हद तक नाराज हुआ कि उसने नया हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दे दिया और हिदायत दी कि उस में अनावश्यक बकवास नहीं होना चाहिए और सुनवाई 2 हफ्ते के लिए टाल दी।

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को केंद्र सरकार को सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि लोगों को कानून और व्यवस्था के मुद्दों को भड़काने ना दें। यह वह चीजें हैं जो बाद में कानून और व्यवस्था का मुद्दा बनती है। न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया का पक्ष सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने रखा। ज्ञात रहे कि इस मामले की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए से हुई जिसके दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे के सहयोग के लिए एडवोकेट एजाज मकबूल (ऑन रिकॉर्ड) और उनके अन्य साथी अधिवक्ता मौजूद थे।

आज की सुनवाई पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मौलाना सैयद अरशद मदनी (अध्यक्ष जमीयत उलेमा ए हिन्द) ने कहा कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एस ए बोबडे ने आज की सुनवाई के दौरान जो बातें कहीं हैं और जिन बातों का उन्होंने संज्ञान लिया है उससे हमारे मत का समर्थन होता है। मौलाना मदनी ने न्यायालय में भारत सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इससे स्पष्ट है कि हुकूमत की नियत में खोट है और वह तथाकथित उन मीडिया वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहती है जो समाज में नफरत के बीज हो रहे हैं। जमीयत के अध्यक्ष मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा हिंद ने अपनी याचिका में जिन तथ्यों को न्यायालय के सामने पेश किया है सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया उसको गलत ढंग से पेश करना चाह रहे हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि जिस तरह न्यायालय में सरकार की ओर से यह कहा गया कि याचिकाकर्ता अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगाने की बात कर रहे हैं जो कि सच्चाई से बिल्कुल विपरीत है। मौलाना मदनी ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप किसी पर अनाप-शनाप टिप्पणी करें, जिसका कोई आधार ना हो। किसी के खिलाफ मीडिया ट्रायल की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

ज्ञात रहे कि इस पूरे मामले में जमीअत उलमा हिंद की ओर से गुलजार आजमी याचिकाकर्ता हैं, जिसमें न्यायालय का ध्यान उन डेढ़ सौ न्यूज़ चैनलों और अखबारों की ओर दिलाया गया है जिन्होंने पत्रकारिता के उसूलों को चकनाचूर करते हुए भारत के संविधान से खुद को ऊपर समझ कर समाज के एक धड़े यानी मुसलमानों के तईं समाज में नफरत का बीज बोने और भारत की गंगा जमुनी सभ्यता को दूषित करने का काम किया है। न्यायालय से मांग है कि न्यायालय इनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्यवाही करे, ताकि भारत की एकता और अखंडता को खंडित करने वालों को सही समय पर सही सबक मिल सके। अब देखना यह है कि न्यायालय इस पूरे मामले में अगली सुनवाई में क्या फैसला लेती है, लेकिन आज की सुनवाई से यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायालय इस मुद्दे को लेकर के गंभीर है और वह किसी भी सूरत में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर लोगों को बदनाम करने या उनको समाज का दुश्मन बनाने की अनुमति नहीं देने वाली है। 

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *