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बेबी कंसीव नही हो रहा? कहीं ये गलती तो नही कर रहे आप

अक्सर महिलाओं में ये आम बात सुनने को मिलती है कि शादी के महीनों बाद भी बेबी कंसीव नही हो पा रहा है। उन्हें लगने लगता है कि उनमें या उनके पार्टनर में कोई कमी है और कपल हीन भावना का शिकार होने लगते हैं। लेकिन रुकिए, ज़रूरी नही कि ऐसा ही हो। हो सकता है बच्चे के लिए आपका प्रयत्न सही दिशा में न हो रहा हो। क्या आप जानते हैं कि महिला के मासिक चक्र के सिर्फ कुछ खास दिन ही बच्चा कंसीव हो सकता है? अगर नही तो पूरा लेख ज़रूर पढ़िए-

महिलाओं का मासिक चक्र औसतन 28 से 30 दिनों का होता है जिसमे बीच के 7 दिन यानी पीरियड के 10वें दिन से लेकर 16वें दिन तक का समय मोस्ट फर्टाइल डेज़ कहलाता है और सिर्फ इन दिनों ही महिला गर्भवती हो सकती है

पीरियड की तारीख के 14वें दिन ओव्यूलेशन की प्रक्रिया होती है यानी महिला की ओवरी में एग रिलीज़ होता है ताकि स्पर्म के मेल से गर्भ ठहर सके। ये एग लगभग 12-24 घंटे तक एक्टिव रहता है। अगर ये एग फैलोपियन ट्यूब में किसी शुक्राणु (स्पर्म) से नहीं मिलता तो फर्टिलाइज नहीं होता और टूट जाता है। फिर पीरियड्स के दौरान यूट्राइन लाइनिंग गिरने लगती है।

पुरुषों का स्पर्म महिला के शरीर मे 5 से 7 दिन तक जिंदा रह सकता है इसलिए बेबी कंसीव करने के लिए ज़रूरी है कि फर्टाइल दिनों में संबंध बनाए जाएं।

ओव्यूलेशन के कुछ खास लक्षण

  • इन दिनों महिलाओं के पेट के निचले हिस्से में क्रैंप पड़ते हैं। कई बार हल्का-हल्का दर्द भी होता है और ओव्यूलेशन के बाद खत्म हो जाता है।
  • इन दिनों में आम दिनों से थोड़ा अलग व्हाइट डिस्चार्ज होता है। जो अंडे की सफेदी जैसा पारदर्शी दिखता है।
  • ओव्यूलेशन के टाइम महिलाओं को ब्रेस्ट में हल्का दर्द या फिर कड़ापन भी महसूस होता है।
  • इस दौरान महिलाओं में सेक्स की इच्छा बढ़ जाती है क्योंकि इस टाइम बॉडी में सेक्स हार्मोन सबसे ज़्यादा एक्टिव रहते हैं।
  • इसके अलावा मार्केट में ओव्यूलेशन चेक करने की टेस्ट किट आती है जिससे आसानी से पता लगाया जा सकता हैं कि महिला को ओव्यूलेशन हो रहा है या नही।

बेबी प्लान करने से पहले एक बार डॉक्टर से ज़रूर मिलें

हेल्थी बच्चे का सपना हर महिला देखती है और बच्चा तभी स्वस्थ होगा जब मां स्वस्थ होगी। इसलिए जरूरी है कि बच्चे के गर्भ में ठहरने से पहले महिला की बॉडी का भी परीक्षण हो। गर्भधारण से पहले डॉक्टर कुछ टेस्ट करते हैं ताकि ये पता लगाया जा सके कि गर्भ में बच्चा पालने के लिए मां का शरीर अनुकूल है या नही। इन टेस्ट में डायबिटीज, थायरॉइड, हेपेटाइटिस, HIV व हीमोग्लोबिन टेस्ट होते हैं। अगर माँ में कोई बीमारी हो तो शिशु को उस बीमारी सुरक्षित रखा जा सकता ताकी उसमें कोई जन्म विकार न हो।

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