आइये जानते हैं इजराइल और फिलिस्तीन के बीच हुई हाल ही में शुरू हुये संघर्ष की वजह
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच शुरू हुआ विवाद अब जंग में तब्दील हो चुका है। बुधवार तक हमास द्वारा इजराइल पर करीब 3 हजार रॉकेट दागे गये हैं। हमास के जवाब में इजराइल ने अपनी थल सेना का इस्तेमाल करने को जगह अपनी बेहद ताकतवर एयरफोर्स के जरिए फिलीस्तीन में भारी तबाही मचाई है। इस जंग में अब तक 6 इजराइली और 53 फिलीस्तीनी नागरिकों की मौत हुई है।इजरायल और हमास के बीच हिंसा पर पूरी दुनिया की नजर है और चिंता भी है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब एर्दोगन ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से कहा कि फलस्तीनियों के प्रति इजराइल के रवैये के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ‘उसे कड़ा और कुछ अलग सबक सिखाना’ चाहिए। एर्दोगन के बयान से इस विवाद के बड़ा रूप लेने की अटकलें तेज हो गई हैं। दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र के मध्यपूर्व के दूत ने हालात के बड़े युद्ध में तब्दील होने की चेतावनी दे दी है। उन्होंने संबंधित नेताओं से तनाव बढ़ने की जिम्मेदारी लेने को कहा है और जो आग लगी है, उसे रोकने की अपील की है।इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष पुराना है, लेकिन पिछले हफ्ते में फिलिस्तीनी संगठन हमास और यरूशलम के बीच हिंसा ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। दोनों ओर से रॉकेट हमले जारी हैं और भारी तबाही का मंजर है। इजरायल के हमले में गाजा की एक बहुमंजिला इमारत जमींदोज हो गई है, तो इसके जवाब में हमास के और ज्यादा रॉकेट गिराने की आशंका खड़ी हो गई है। दोनों में से किसी के भी पीछे हटने की संभावना तो दूर है, बल्कि दोनों ने ही ईंट का जवाब पत्थर से देने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में यहां बड़े युद्ध का डर पैदा हो गया है। पहले भी दोनों के बीच हालात युद्ध की ओर ले जा चुके हैं और एक बार फिर वही नजारे दिख रहे हैं। इस बीच बेगुनाह लोग दोनों ओर अपनी जान की खैर मना रहे हैं।
यूँ तो इजराइल-फिलिस्तीन में संघर्ष एक अरसे से चला आ रहा है। लेकिन हम आपको फिलहाल शुरू हुई लड़ाई की वजह बताते हैं।
यह है मौजूदा लड़ाई की वजह
इसकी वजह जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाकर इसकी जड़ को समझना पड़ेगा। इसकी जड़ में है जेरुसलम शहर का पूर्वी हिस्सा जो ईस्ट जेरूसलम कहलाता है। ये फिलिस्तीनी बसाहट का क्षेत्र है। यहां एक इलाका है- शेख जराह। करीब दो सदी पुरानी बात है। उस समय फिलिस्तीन पर ऑटोमन साम्राज्य का अधिकार था। उसी समय से कुछ यहूदी संगठन फिलिस्तीन में ज़मीन खरीदने लगे थे। इसी क्रम में सन् 1876 में दो यहूदी ट्रस्ट ने कुछ अरब ज़मींदारों से शेख ज़राह में ज़मीनें खरीदीं। 1948 में जब इज़रायल का गठन हुआ, तब युद्ध छिड़ा। इसमें जॉर्डन ने ईस्ट जेरुसलम पर कब्ज़ा कर लिया। इसी दौर में इज़रायल के गठन के बाद उसके इलाकों से भागकर ईस्ट जेरुसलम आए फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिए जॉर्डन ने कई मकान बनाये।
फिर 1967 के युद्ध में इज़रायल ने ईस्ट जरुसलम पर कब्ज़ा कर लिया। अब शेख जराह के वो शरणार्थियों वाले घर का मालिकाना हक़ फिर से यहूदी ट्रस्ट्स को सौंप दिया गया। उन ट्रस्टों ने ज़मीन यहूदी सेटलर्स को बेच दी। इन सेटलर्स ने फिलिस्तीनियों से घर खाली करने को कहा, जिस पर काफ़ी विवाद हुआ। काफी हंगामे के बाद 1982 में इलाके के फिलिस्तीनी निवासियों ने यहूदी सेटलर्स से समझौता किया। इसके तहत फिलिस्तीनियों ने उस ज़मीन पर यहूदी सेटलर्स का मालिकाना हक़ मान लिया। बदले में उन्हें किरायेदार की हैसियत से वहाँ रहने का अधिकार मिला।
लेकिन यह समझौता अधिक दिन तक नही चल सका। आगे चलकर फिलिस्तीनियों ने कहा कि उनके साथ चालाकी हुई है, इसीलिए वो ये समझौता नहीं मानेंगे।
आप सोच रहे होंगे कि हाल के विवाद के लिए इतना पीछे जाने की क्या ज़रूरत है? तो आपको बताते हैं कि इसी विवाद से जुड़ा एक प्रकरण मौजूदा तनाव की जड़ है। ये मामला जुड़ा है, शेख जराह में रह रहे छह फिलिस्तीनी परिवारों से। यहूदी सेटलर्स पुराने समझौते का हवाला देकर उनका घर खाली करवाना चाहते थे। मगर इन परिवारों ने कहा कि वो प्रॉपर्टी क्यों खाली करें, जब ज़मीन पुश्तैनी तौर पर उनकी है। इस दावे के समर्थन में ये लोग ऑटोमन काल के कुछ भूमि दस्तावेज़ ले आए।
जब मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट में यहूदियों ने कहा कि ये ज़मीन तो प्राचीन काल से ही यहूदियों की है। इस पर यहूदियों का सनातन अधिकार है। कोर्ट ने इस केस में यहूदी सेटलर्स के दावे को माना। फिलिस्तीनी परिवारों से घर खाली करने को कहा गया। बस, यहीं से चिंगारी भड़क उठी। एक तरफ इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई तो दूसरी तरफ़ फिलिस्तीनी अपनी दावेदारी को बल देने के लिए एकजुट हो गये।
छह परिवारों के लिए फिलीस्तीनियों के एकजुट होने की वजह भी जान लेते हैं। इस झगड़े की ज़मीन कई दशकों से तैयार हो रही थी। 1967 के युद्ध में जीत के बाद से ही इस इलाके में इज़रायली सेटलर्स की संख्या बढ़ने लगी थी। इज़रायली कहते थे कि ये इलाका एक प्राचीन यहूदी पुजारी के मकबरे के पास बसा था। ये उनके लिए पवित्र है, उनका इलाका है। इजरायलियों ने यहां रहने वाले फिलिस्तीनियों को अतिक्रमणकारी कहना शुरू किया। यहूदियों द्वारा पेश किए गए इस नरेटिव के चलते ईस्ट जेरुसलम का इलाका दोनों पक्षों के आपसी तनाव का एक बड़ा केंद्र बन गया। फिलिस्तीनियों का आरोप है कि यहूदी जेरुसलम शहर के पुराने हिस्सों पर कब्ज़ा करने में लगे हैं। इसीलिए अरबों को जबरन अपनी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है। उनके नस्लीय सफ़ाये की कोशिश हो रही है।
यही वजह है कि उन छह परिवारों के एविक्शन को फिलिस्तीनियों ने अपने अस्तित्व और हक़ की लड़ाई माना। 10 मई को सुप्रीम कोर्ट में इस केस की फाइनल सुनवाई होनी थी। इससे पहले दोनों पक्षों की सरगर्मियां बढ़ गईं। यहूदी कट्टरपंथी ‘अरब मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हुए जेरुसलम के फिलिस्तीनी आबादी वाले इलाकों में रैलियां निकालने लगे। उन्होंने फिलिस्तीनी घरों और दुकानों को भी नुकसान पहुंचाया। जवाब में फिलिस्तीनी भी पीछे नहीं रहे।
पिछले करीब एक हफ़्ते से सैकड़ों फिलिस्तीनी हर रात शेख जराह में जमा होते, वहीं सड़क पर इफ़्तार करते, नाचते, गाते, नारे लगाते। इस दौरान इज़रायली फोर्सेज़ से साथ भी उनकी झड़पें होती रहीं। इजरायली फोर्सेज़ ने कभी बल प्रयोग करके प्रोटेस्टर्स को खदेड़ा। तो कभी उनपर ‘स्कंक वॉटर’ की बौछार की। स्कंक वॉटर के बारे में बताते चलें कि ये लिक्विड पानी और बेकिंग पाउडर को मिलाकर बनाया जाता है। ये इतना बदबूदार होता है कि अगर चमड़ी पर पड़े, तो कई दिनों तक बदबू नहीं जाती।
ये संघर्ष पीक पर पहुंचा 10 मई को। इस रोज़ इज़रायल के लोग ‘जेरुसलम डे’ मनाते हैं। ये 1967 के युद्ध में जेरुसलम पर इज़रायली कब्ज़े के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस मौके पर इज़रायली शहर के अलग-अलग हिस्सों में रैलियां निकालते हैं। फिलिस्तीनियों को आशंका थी कि कहीं यहूदी टेम्पल माउंट में घुसने की कोशिश ना करें। इसी आशंका को देखते हुये फिलिस्तीनी प्रोटेस्टर्स 10 मई की सुबह से ही अल-अक्सा मस्ज़िद में मौजूद थे।
सुबह के तकरीबन आठ बजे की बात है। इजरायली फोर्स मस्ज़िद कंपाउंड में घुस गई। फिलिस्तीनी पत्थरबाज़ी कर रहे थे और इजरायली फोर्स उनपर स्टन ग्रेनेड्स और रबड़ बुलेट्स दाग रही थी। संघर्ष की शुरुआत को लेकर दोनों पक्षों के अपने दावे हैं। फिलिस्तीनियों का आरोप है कि इजरायली पुलिस ने मस्ज़िद के भीतर स्टन ग्रेनेड्स और रबड़ बुलेट्स दागीं, आंसू गैस छोड़ा। वहीं इजरायली पुलिस का आरोप है कि वो मस्ज़िद के पास वाली सड़क पर थे, जब मस्ज़िद के भीतर से उनके ऊपर पत्थर फेंके गए। उनके मुताबिक, इसके बाद वो कंपाउंड में दाखिल हुए। फिलिस्तीन के मुताबिक, इस हिंसा में उनके 300 से ज़्यादा लोग घायल हुए। इज़रायली पुलिस के अनुसार, हिंसा में उसके भी नौ अधिकारी जख़्मी हुए हैं।
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच शुरू हुआ विवाद अब जंग में तब्दील हो चुका है। बुधवार तक हमास द्वारा इजराइल पर करीब 3 हजार रॉकेट दागे गये हैं। हमास के जवाब में इजराइल ने अपनी थल सेना का इस्तेमाल करने को जगह अपनी बेहद ताकतवर एयरफोर्स के जरिए फिलीस्तीन में भारी तबाही मचाई है। इस जंग में अब तक दोनों के 59 नागरिकों की मौत हुई है।
इजरायल और हमास के बीच हिंसा पर पूरी दुनिया की नजर है और चिंता भी है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब एर्दोगन ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से कहा कि फलस्तीनियों के प्रति इजराइल के रवैये के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ‘उसे कड़ा और कुछ अलग सबक सिखाना’ चाहिए। एर्दोगन के बयान से इस विवाद के बड़ा रूप लेने की अटकलें तेज हो गई हैं। दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र के मध्यपूर्व के दूत ने हालात के बड़े युद्ध में तब्दील होने की चेतावनी दे दी है। उन्होंने संबंधित नेताओं से तनाव बढ़ने की जिम्मेदारी लेने को कहा है और जो आग लगी है, उसे रोकने की अपील की है।