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क्रिकेटर के अंगूठे की चोट से दुःखी होने वाले प्रधानमन्त्री दानिश सिद्दीक़ी को श्रद्धांजलि भी नहीं दे पातेः मोहम्मद जाबिर

क्रिकेटर के अंगूठे की चोट से दुःखी होने वाले प्रधानमन्त्री दानिश सिद्दीक़ी को श्रद्धांजलि भी नहीं दे पातेः मोहम्मद जाबिर

नई दिल्ली
पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता भारतीय फ़ोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीक़ी शुक्रवार को अफ़ग़ान सेना और तालिबान के बीच जारी संघर्ष को कवर करते हुए मारे गए। बताया गया कि अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान से लगी सीमा के पास उनकी मौत हुई। उनके निधन पर भारत के विपक्षी दलों के लगभग तमाम नेताओं ने दानिश सिद्दीक़ी को श्रद्धांजलि दी है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दानिश सिद्दीक़ी को श्रद्धांजलि नहीं दी। इस पर विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा है।
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि एक जाँबाज़ फ़ोटो जर्नलिस्ट आतंकवाद का शिकार हो गया, पूरी दुनिया ने उसकी शहादत पर श्रधांजलि दी लेकिन हमारे प्रधानमंत्री की सोच कितनी ओछी और संवेदनहीन है कि आतंकवाद से लड़ने वाले पत्रकार के लिए अफ़सोस का एक शब्द नही लिख पाए। क्या आतंकवाद के समर्थक हैं मोदी? उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि मोदी जी आप तालिबानी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ बोलने से डरते क्यों हैं?

दानिश सिद्दीकी


दानिश सिद्दीक़ी जामिया नगर के गफ़्फार मंज़िल क्षेत्र के रहने वाले थे। उनकी मौत से इलाक़े में भी शोक की लहर है। ओखला के जाने माने समाजसेवी और आम आदमी पार्टी वार्ड 102-एस के अध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने दुःख प्रकट करने के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी से भी सवाल किया है। इंजीनियर जाबिर ने कहा कि प्रधानमंत्री ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का दंभ भरते हैं। लेकिन यह दावा उतना ही बड़ा झूठा है जितना इस ज़मीन पर हिमालय का वजूद, वरना क्या कारण है कि एक क्रिकेटर के अंगूठे मे चोट लगने पर दुःखी हो जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी दानिश सिद्दीक़ी के निधन पर श्रद्धांजली तक भी नही दे सकते।
रवीश कुमार ने दानिश सिद्दीक़ी को शहीद करार दिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय पत्रकारिता को एक साहसिक मुक़ाम पर ले जाने वाले दानिश सिद्दीक़ी आपको सलाम। अलविदा। आपने हमेशा मुश्किल मोर्चा चुना। मोर्चे पर आप शहीद हुए हैं।
रवीश कुमार ने लिखा कि पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी आपने मोर्चों का चुनाव नहीं छोड़ा। बंदूक़ से निकली उस गोली को हज़ार लानतें भेज रहा हूँ, जिसने एक बहादुर की ज़िंदगी ले ली। जामिया से मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर फ़ोटोग्राफ़ी को अपना करियर बनाया। भारत का मीडिया घर बैठ कर अफ़ग़ानिस्तान की रिपोर्टिंग कर रहा है। किसी को पता भी नहीं होगा कि भारत का एक दानिश दोनों तरफ़ से चल रही गोलियों के बीच खड़ा तस्वीरें ले रहा है।

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