बॉलीवुड अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी आज किसी परिचय के मोहताज नही हैं। नवाज़ ने अपने अभिनय से लोगों के दिलों में अलग छाप छोड़ी है। उनके प्रशंसक बड़ी बेसब्री से उनकी फिल्मों का इंतज़ार करते हैं। लेकिन उन्हें यह सफलता रातों रात नही मिली है। इसके लिए उनका कठिन संघर्ष करना पड़ा है। इस संघर्ष के दौरान उन्होंने वो दौर भी देखा है,जब उन्हें दो वक़्त का खाना भी ठीक से नसीब नही होता था। आज नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का जन्मदिन है। आइये जानते हैं उनका अब तक का सफ़र कैसा रहा।
नवाजुद्दीन सिद्दकी का जन्म उ.प्र. के मुजफ्फनगर जिले के बुढ़ाना कस्बे में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता किसान हैं। उनके सात भाई और दो बहनें हैं।
नवाजुद्दीन ने गुरूकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी, हरिद्वार, उतराखंड से विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई पूरी की जिसके बाद वे केमिस्ट के तौर पर एक पेट्रोकेमिकल कंपनी में काम करने लगे। उन्होंने दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से थियेटर में अपना स्नातक पूरा किया है।
नवाज ने दिल्ली में साल 1996 में दस्तक दी जहां उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह किस्मत आजमाने मुंबई चले गए। नवाज को खुद कभी ये उम्मीद नहीं थी कि वे इतने ज्यादा मशहूर हो जाएंगे। नवाज ने एक्टिंग स्कूल में दाखिला तो जैसे तैसे ले लिया था, लेकिन उनके पास रहने को घर नहीं था तो उन्होंने यहां आकर चौकीदार की नौकरी कर ली। नवाज को यह नौकरी मिल तो गई लेकिन शारीरिक रूप से वह काफी कमजोर थे। इसलिए ड्यूटी पर वह अक्सर बैठे ही रहते थे। यही कारण था कि मालिक के देखने के बाद उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा। वहीं, उनको सिक्योरिटी अमाउंट भी रिफंड नहीं किया गया।
इन्होंने बॉलीवुड में अपने अभिनय की शुरुआत 1999 में आमिर खान की मुख्य भूमिका वाली फिल्म, सरफ़रोश से की थी। इसके बाद ये रामगोपाल वर्मा की फिल्म शूल (1999), जंगल (2000) और राजकुमार हिरानी की मुन्ना भाई एमबीबीएस (2003) में भी नजर आए थे। मुम्बई में आने के बाद इन्होंने टीवी धारावाहिकों में काम तलाशने की कोशिश की, पर कुछ खास सफलता नहीं मिली। इन्होंने एक छोटी फिल्म, द बायपास (2003) में इरफ़ान खान के साथ काम किया था। 2002 से लेकर 2005 तक इनके पास ज़्यादातर समय कोई काम नहीं था। इन्हें रहने के लिए चार अन्य लोगों के साथ फ्लैट साझा करना पड़ता था। साल 2004 इनके लिए काफी दिक्कतों वाला था। किराये के पैसे न दे पाने के कारण इन्हें अपने एनएसडी सीनियर से रहने की अनुमति मांगनी पड़ी, और उन्होंने इस शर्त पर गोरेगांव के अपार्टमेंट में रहने की इजाजद दी कि वो उनके लिए भी खाना बनाएँ।
2009 में इन्हें देव-डी के इमोश्नल अत्याचार गाने में एक छोटे से रंगीला नाम के किरदार के रूप में काम मिला। इसी साल ये न्यूयार्क (2009) में भी दिखाई दिये। लेकिन इन्हें एक अभिनेता के रूप में पहचान अनुषा रिजवी की पीपली लाइव (2010) से मिली थी, जिसमें इन्हें एक पत्रकार की भूमिका मिली थी। 2012 में ये प्रशांत भार्गव की पतंग: द काइट (2012) में दिखाई दिये। इस फिल्म को बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सव और ट्रिबेका फिल्म उत्सव में दिखाया गया था। इसमें सिद्दीकी के कार्य को फिल्म समीक्षक रोजर एबर्ट ने काफी सराहा था। इसके बाद ये फिल्म संयुक्त राष्ट्र और कनाडा में भी दिखाई गई और न्यू यॉर्क टाइम्स के समीक्षा से भी लोगों का इन पर काफी ध्यान आकर्षित हुआ। सन् 2012 में ही अनुराग कश्यप की फ़िल्म गैंग्स ऑफ़ वासेपुर के दूसरे भाग में इन्हें प्रमुख भूमिका में लिया गया और इस फिल्म ने इन्हें एक उत्तम अभिनेता के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद नवाज़ ने पीछे मुड़ कर नही देखा।
नवाज़ की पाँच बेहतरीन फ़िल्में
गैंग्स ऑफ वासेपुर
इस फिल्म में वह मनोज वाजपेयी के बेटे फैजल के रोल में नजर आए थे। इस मल्टीस्टार फिल्म में पंकज त्रिपाठी, तिग्मांशु धूलिया और पियूष मिश्रा जैसे मंझे हुये कलाकार थे। इन सबके बीच नवाज़ुद्दीन ने अपनी अलग छाप छोड़ी। नवाज़ द्वारा बोला गया संवाद “सबक़ बदला लेगा तेरा ये फ़ैज़लवा” आज भी लोगों की ज़बान पर है।
किक
सलमान खान की फिल्मों में हमेशा उनका अलग अंदाज होता है। लेकिन, ऐसा कैसे हो सकता है कि नवाज किसी फिल्म में हैं और अपनी छाप ना छोड़ें। फिल्म ‘किक’ में वे विलेन के रोल में नजर आए थे और एक्टिंग के मामले में उन्होंने सलमान खान को भी पीछे छोड़ दिया था। सलमान के साथ उन्हें बजरंगी भाईजान में भी देखा गया था, हालांकि फिल्म में उनका पत्रकार का छोटा सा रोल था। लेकिन यह बहुत लोकप्रिय हुआ था।
बदलापुर
फरवरी 2015 में रिलीज हुई वरुण धवन की बदलापुर को फैंस भूल नहीं सकते। इस फिल्म में वरुण का अलग ही लुक था। वहीं नवाजुद्दीन सिद्दीकी के रोल को काफी सराहा गया था।
लंच बॉक्स
2013 में जब इरफान खान स्टारर लंचबॉक्स फिल्म रिलीज हुई थी तो फिल्म को काफी सराहा गया था। लेकिन इस फिल्म में भी नवाज ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया था। इस फिल्म में वह मस्तमौला की भूमिका में नजर आए थे। इस फिल्म के लिए नवाज को कई अवॉर्ड्स से भी नवाजा गया था।
मॉम
श्रीदेवी की आखिरी फिल्म ‘मॉम’ को फैंस कभी नहीं भूल पाएंगे। मजबूत मां होने के कारण सभी ने श्रीदेवी को पसंद किया। लेकिन इस फिल्म में उन्हें छोड़कर जिसने सबका ध्यान खींचा वह थे नवाजुद्दीन। फिल्म में नवाज एक जासूस की भूमिका में नजर आए थे। खास बात यह है कि उन्होंने फिल्म के लुक पर नए-नए प्रयोग भी किए।
पुरुस्कार
फिल्म लंचबॉक्स के लिये बेस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर के पुरस्कार के साथ ही फिल्म तलाश, कहानी, गैंग्स ऑफ वासेपुर और देख इंडियन सरकस के लिये उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें आईआईएफए अवार्डस, स्क्रीन अवार्ड्स, जी सिने अवार्डस, रेनॉल्ट स्टार गिल्ट अवार्डस और एशिया पैशिफिक स्क्रीन अवार्ड्स से भी सम्मानित किया जा चुका है।
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