शगुफ़्ता कौसर और शफ़क़त इमैनुएल

पाकिस्तानः ईसाई दंपति की फाँसी माफ़, पैग़ंबर मोहम्मद की तौहीन का मामला

पाकिस्तान की एक अदालत ने एक ईसाई पति-पत्नी को ईशनिंदा के जुर्म में सुनाई गई मौत की सज़ा से बरी कर दिया है. सुबूतों के अभाव में कोर्ट ने इस फ़ैसला पलट दिया.

शगुफ़्ता कौसर और उनके पति शफ़क़त इमैनुअल को 2014 में पैगंबर मोहम्मद के अपमान के जुर्म में सज़ा सुनाई गई थी.

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इस दंपति के वकील सैफ़ अल मलूक ने गुरुवार को बताया कि लाहौर हाईकोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया है.

वहीं अभियोजन पक्ष ने न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इस फ़ैसले को आगे चुनौती दी जाएगी.

पाकिस्तान में ईशनिंदा के जुर्म में मौत की सज़ा तक हो सकती है. हालांकि, आज तक किसी को इस जुर्म में फांसी नहीं दी गई है, लेकिन ईशनिंदा का आरोप लगने के बाद दर्जनों लोग भीड़ के हाथों हत्या के शिकार हुए हैं.

मलूक ने न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी से बात करते हुए कहा, ‘मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि हम उस जोड़े को रिहा कराने में कामयाब हुए हैं, जो हमारे समाज के कुछ सबसे असहाय लोगों में से एक हैं.’

उन्होंने उम्मीद जताई है कि अगले हफ़्ते कोर्ट का आदेश जारी होने पर ये लोग रिहा हो जाएंगे.

मानवाधिकार संगठनों ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया के डेप्युटी डायरेक्टर दिनुसिका दिसानायके ने अपने एक बयान में कहा, “इस फ़ैसले ने सात साल के अग्निपरीक्षा दे रहे इस जोड़े के संघर्ष पर विराम लगा दिया है. इस जोड़े को पिछली अदालत में ही मौत की सज़ा नहीं होनी चाहिए थी.”

क्या था आरोप?

पाकिस्तान में ईसाइयों की तादाद 1.6 फ़ीसदी है

इस शादीशुदा जोड़े को 2014 में ईशनिंदा के जुर्म में मौत की सज़ा सुनाई गई थी. इन पर आरोप था कि इन्होंने एक स्थानीय इमाम को फ़ोन पर पैगंबर मोहम्मद के बारे में अपमानजनक संदेश भेजा था. जिस नंबर से मेसेज भेजा गया था, वो कौसर के नाम पर दर्ज था.

कौसर ने भाई ने पिछले साल बीबीसी से बातचीत में कहा था कि ये जोड़ा बेक़ुसूर है. उन्होंने इस जोड़े के इतना पढ़े-लिखे होने पर संदेह जताया था कि वो एक अपमानजनक मेसेज लिखकर भेज सकें.

कौसर एक ईसाई स्कूल में देखभाल का काम करती हैं. उनके पति आंशिक रूप से लकवाग्रस्त हैं.

मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि पाकिस्तान में आपसी रंज़िश के मामलों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए ईशनिंदा के ख़ूब आरोप लगाए जाते हैं.

इस जोड़े के वकील ने पिछले साल बीबीसी को बताया था कि मुक़द्दमे में उन्होंने ये दलील पेश की थी कि इस जोड़े का एक ईसाई पड़ोसी के साथ कुछ विवाद था. हो सकता है कि उन्होंने कौसर के नाम पर एक सिमकार्ड ख़रीदकर उन्हें फंसाने के लिए उस नंबर से ईशनिंदा का मेसेज भेजा हो.

अप्रैल में यूरोपीय संसद ने धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने के मुद्दे पर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ निंदा-प्रस्ताव पारित किया था. इस प्रस्ताव के केंद्र में कौसर और इमैनुअल का मामला था

पाकिस्तान में ईशनिंदा के जुर्म में सुनाए गए सज़ा के फ़ैसले अक्सर पलट दिए जाते हैं.

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद आसिया बीबी पाकिस्तान छोड़कर चली गई थीं. ईशनिंदा के आरोप में उन्हें एक दशक से ज़्यादा वक़्त तक जेल में रहना पड़ा था. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का तमाम कट्टरपंथी संगठनों ने हिंसक विरोध किया था.

पाकिस्तान में ईसाई

मुस्लिम बहुल आबादी वाले पाकिस्तान में ईसाइयों की तादाद 1.6 फ़ीसदी है.

इनमें से ज़्यादातर उन हिंदुओं के वंशज हैं, जिन्होंने ब्रितानी शासन के दौरान ईसाई धर्म कुबूल कर लिया था.

इनमें से कई वो लोग थे, जो अपने कथित निचले दर्जे से उबरने के लिए ईसाई बन गए. इनमें से कई पाकिस्तान में सबसे ग़रीब तबके से आते हैं.

अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी जंग की वजह से भी ईसाइयों के प्रति ग़ुस्से और ईशनिंदा क़ानून के तहत उन पर शिकंजा कसने के मामले बढ़े हैं.

साभार बीबीसी

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