हबीब मियां की रिहाई पर मीडिया की चुप्पी पर बोले अरशद मदनी,मीडिया का पक्षपाती रवैया चिंताजनक
नई दिल्ली
किसी भी आतंकी घटना के बाद उससे जुड़े नाम को लगातार उछाला जाता है। उसमें गिरफ़्तार हर शख़्स के नाम से अख़बारों की बड़ी-बड़ी हेडलाइन बनती हैं। समाचार चैनलों पर डीबेट होती है। उसकी सात पुश्तों की जानकारी बढ़ा-चढ़ा कर जनता तक पहुँचाई जाती है। उस व्यक्ति के परिवार एवं मेलजोल वालों को सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ता है। उनका मान-मर्दन किया जाता है। यह सब तब भी होता है जब उस शख़्स पर दोष सिद्ध न हुआ हो। कुछ समय बाद वही शख़्स बेगुनाह साबित होकर जेल से बाहर आता है तो किसी अख़बार/चैनल पर उसकी ख़बर नही चलती। कोई अख़बार/चैनल पूर्व में किये गये अपने कृत्य पर माफ़ी नही माँगता। होना तो यह चाहिए था कि बेगुनाह साबित होने के बाद उस शख़्स को ऐसे ही सम्मानित किया जाता,जैसे उसे अपमानित किया था। लेकिन मीडिया को टीआरपी सिर्फ अपमानित करने पर मिलती है, सम्मानित करने में नही।
मीडिया का यह पक्षपाती रवैया हबीब मियां के बरी होने के बाद भी देखने को मिल रहा है। यह वही हबीब मियां हैं,जिन्हें 2005 को बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में हुये हमले के लगभग 12 साल बाद आतंकियों की मदद करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। इनकी गिरफ़्तारी के समय जिस मीडिया ने बहुत शोर मचाया था,आज वही मीडिया ख़ामोश है। मीडिया की इस चुप्पी से नाराज़ जमीयत उलमा ए हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरशद मदनी जमकर बरसे हैं।
अरशद मदनी ने कहा कि चार साल बाद 14 जून को आतंकवाद के आरोपों से बरी होकर 17 जून को अपने गृहनगर पहुंचे, हबीब मियां ने बताया कि उन्हें और उनके परिवार को उनके कारावास के कारण जिस मानसिक और शारीरिक यातना का सामना करना पड़ा, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। मदनी ने कहा कि मुसलमानों के प्रति मीडिया का पक्षपाती रवैया चिंताजनक है। उनकी गिरफ्तारी की खबरें हर जगह फैलाई जा रही थीं, जबकि उनके बरी होने की खबर का मीडिया में कोई स्थान नहीं है।
आपको बता दें कि 28 दिसम्बर 2005 को आतंकियों ने बेंगलुरु स्थित विज्ञान संस्थान में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेकर बाहर निकल रहे प्रतिनिधियों पर गोलियां बरसाई थीं। आईआईएस में हुए आतंकी हमले में गणित के रिटायर्ड प्रोफेसर मुनीष चंद्र पुरी की मौत हुई थी जबकि एक महिला समेत चार अन्य गंभीर रूप से घायल हुए थे। उस वक्त प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा था कि हमला एक बंदूकधारी ने किया था। जिसने एके-47 राइफल और हथगोलों का प्रयोग किया था। देश की आइटी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलूरु में यह पहली बड़ी आतंकी वारदात थी। इसके बाद दक्षिण भारत के सभी राज्यों को हाई अलर्ट कर दिया गया था।
हमले के लगभग 12 साल बाद मार्च 2017 में एक गुप्त सूचना के आधार पर कर्नाटक एटीएस और त्रिपुरा पुलिस ने संयुक्त अभियान में उस समय 37 साल के हबीब मियां को अगरतला के बाहरी इलाके जोगेंद्रनगर से गिरफ्तार किया था।
हबीब मियां पर आतंकी हमले के मुख्य आरोपी सबाउद्दीन अहमद की मदद का आरोप था। उसने दो बार भारत-बांग्लादेश सीमा पार की थी।
पुलिस के अनुसार हबीब मियां ने बांग्लादेशी आतंकियों की टीम को अगरतला आने के लिए रास्तों का नक्शा बनाकर दिया था। वह सक्रिय रूप से लश्कर ए तैयबा के आतंकियों के साथ था। सबाउद्दीन के कबूलनामे के आधार पर उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और परमानेंट वॉरंट जारी किया गया था।
तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) एस.रवि ने बताया था कि मियां ने स्वीकार किया है कि वह अगरतला की एक मस्जिद में तीन दिनों तक सबाहुद्दीन से मिला। उसने यह भी कहा है कि सबाहुद्दीन को सीमा पार कर बांग्लादेश पहुंचाने के लिए मदद करने के बदले उसे 800 रुपये मिले थे।