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क्या वाक़ई आप ईमानदारी के रास्ते पर लड़ रहे हैं या मक्कारी के- हफीज किदवई

हफीज किदवई

हिम्मत हो तो पढ़ियेगा, पढ़ने के बाद आईना देखिएगा।अगर चेहरा लाल दिखाई दे तो गिरेहबान में देखिएगा कि क्या वाक़ई आप ईमानदारी के रास्ते पर लड़ रहे हैं या मक्कारी के। आप जोड़ रहे हैं या तोड़ रहे हैं। छोड़ दीजिये हमे हमारे हाल पर।आप हमसे हमदर्दी मत रखिये।हम हैं ही बुरे और मलेक्ष। यह सच है हममे हज़ारो कमियां हैं। जिस तरह खूबसूरत घर में भी नालियाँ होती हैं, जब वह बजबजाने लगें तो उसकी सफाई की ज़िम्मेदारी मकान मालिक की है। हम गन्दी नालियों के लिए खूबसूरत दीवारों को गन्दा करने का घिनौना खेल नही खेला करते। आपकी झूठी सहानुभूति की भी ज़रूरत नही। अब यह नही कहियेगा कि हम आपको नही कह रहे थे। हम तो फलाना ढिमाका को कह रहे थे। सर काटें वो आतंकी और नज़रें झुके हमारी,हरगिज़ नही।

आपको एक अरब लोग शराफत से कुरान पढ़ते, नमाज़ पढ़ते लोगो में इस्लाम नही दिखेगा।आप को कुछ लाख में आतंकियो में इस्लाम खूब दिखाई देगा। मेरे मुँह से निकली आयते फ़र्ज़ी लगेंगी और आतंकी के मुँह से निकली अरबी आपको सच्ची लगेगी। हमारा आपके साथ ज़ुल्म से लड़ना ढकोसला लगेगा और डोनाल्ड ट्रम्प के बयान सच्चे लगेंगे। मैं दावे से कहता हूँ कि आपका ईमान हम पर नही आतंकियो पर है। आप उन आतंकियो के ज़्यादा करीब हो क्योंकि आपको उनकी बातें सच्ची लगती हैं।

मैंने अपने बेहद करीब के लोगो को देखा है कि जब कोई घटना हो तो वह मुझे देखते हैं कि मैं इसकी भत्सर्ना कैसे करता हूँ

 उन्हें रत्ती भर शर्म नही आती मेरी तरफ निगाह करने में। जिस क़ुरान और जिस रसूल और जिस इस्लाम को आप पानी पी पी कर कोस रहे हैं, वही इस्लाम डेढ़ दो अरब लोगो को इंसान बनाए हुए है। वही इस्लाम इन्हें समन्दर के किनारे महीनो भूखे प्यासे रहने की ताक़त दे रहा है। वही इस्लाम हमारे बच्चों के लोथड़े रख कर नमाज़ पढ़ने की हिम्मत दे रहा है। न हम आतंकियो के आगे झुके हैं और न ही आपकी ज़हरीली ज़बान के आगे झुकेंगे। ढाका में जो फ़राज़ ने किया वह करने की हिम्मत दिखाना,तुम्हे अपने दोस्तों के लिए जान देने वाले फ़राज़ में इस्लाम नही दिखेगा तुम्हे आतंकियो में इस्लाम दिखेगा तुम्हे अमरीकन क्लब में गोली चलाने वाले में इस्लाम दिखेगा मगर वहीं साठ लोगों को बचाने वाले लड़के में इस्लाम नही दिखेगा। तुम झूठे लोग हो,मैं तुम पर यक़ीन ही नही करता। यह मेरा घर है मैं इसे साफ़ करूँगा खुद।

अब यह मत कहना कि आतंक का धर्म नही होता,यह तो तुम्हारे मुँह से और झूठा लग रहा। जिस दिन दिल कहेगा उस दिन आँख में आँख डाल कर कह लेना। तुम्हारी वजह से यह लड़ाई हमेशा कमज़ोर हुई है।तुम पोरस के हाथी हो। जब हम इस्लाम के नाम पर इन आतंकियो से निपटते,इन्हें रुसवा करते तब तुम इस्लाम को ही रुसवा करने लगते हो। जो करोड़ो हाथ इस्लाम को मटियामेट करने वालो को तहस नहस करते,तुम उन हाथों को ज़लील कर रहे हो। तुम वह झूठे फरेबी लोग हो जो लड़ना नही बदबू फैलाना ज़यादा जानते हैं।

जब हम हर मोर्चे पर आतँक से निपट रहे हैं, तब तुम हमारे ही वजूद पर अपने बेहया सवाल उठा रहे हो। तुम क़ुरान की आयतों, गीता के श्लोकों का मज़ाक उड़ा सकते हो,जानते हो

क्यों,क्योंकि तुमसे एक लाइन नही लिखी जा सकती जिसे दो लोग दिल और माथे से लगा सके। तुमसे एक किरदार नही पैदा होता जिसको देख के अंगुलिमाल जैसे हथियार छोड़ दें। तुम तो सिर्फ बजबजाती हुई ज़बान हो। वैसे भी तुम्हारे दिल में न राम हैं, न ईसा हैं और न बुद्ध हैं तो मोहम्मद कहाँ से आ सकते हैं। वह तो और चुभेंगे। मैं अपने इन आदर्शो के साथ हर नफ़रत से निपटने को तैयार हूँ।

मैं अपने मुल्क़ के लिए खुद काफी हूँ,मुझे किसी दोहरे दिमाग वाले की ज़रूरत नही। आप अपनी ज़हरीली ज़बान से मज़हब के नाम पर और ज़हर छिड़कते रहिये। एक बीमार दिमाग से इससे ज़्यादा की तवक़्क़ो नही। हम आतंक से लड़ते हैं आप मज़हब से लड़िये,देखते हैं कौन सही दिशा में है।आप और आपके आतंकियो वाला मज़हब आपको मुबारक।

मेरा इस्लाम मुझमे ज़िंदा है और वही इस्लाम है। इन जेहादी इब्लीस की औलादों से तो हम निपट ही रहें हैं। इन खबीसों से निपटने के लिए किसी मज़हब पर गन्दी छींटे डालने के सिवा भी रास्ते हैं लड़ने के। आप AK47 वाले इस्लाम का रोना रोइये हम अपने अमनपसंद,जूझने वाले,बराबरी,हमदर्दी,इंसानियत,मोहब्बत वाले इस्लाम के साथ अकेले लड़ लेंगे।

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