वामपंथी छात्र नेताओं, युवा संगठनों के लोगों और कई विश्वविद्यालय छात्र संघों के पदाधिकारियों ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि ‘सरकार देश के विश्वविद्यालयों और विद्यार्थियों पर लगातार हमले कर रही है और उन्हें फंसाने के लिए राजनीति से प्रेरित फ़र्जी मुक़दमे बनाये जा रहे हैं।’ मंगलवार को ‘ज़ूम’ के माध्यम से ऑनलाइन हुई एक संयुक्त प्रेस वार्ता में जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्षा आइशी घोष, जामिया यूनिवर्सिटी की सक्रिय छात्रा आयशा रेन्ना एन, आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एन साई बालाजी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष सलमान इम्तियाज़, सीपीआई नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी समेत कुछ अन्य लोग शामिल हुए। प्रेस वार्ता में इन लोगों ने खुलकर बात की और कहा कि ‘जब दुनिया कोरोना वायरस महामारी से लड़ रही है, तब भी मोदी सरकार अपनी ही यूनिवर्सिटियों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर हमले कर रही है।’

जामिया यूनिवर्सिटी से जुड़ीं आयशा रेन्ना ने कहा, “सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन जारी है, और कोरोना संकट के बाद भी जारी रहेगा। सरकार द्वारा किये गए नागरिकता संशोधन को देश स्वीकार नहीं करेगा। पर ऐसा ना हो सके, इसके लिए सरकार कोरोना संकट के दौर में भी सक्रिय छात्रों और कार्यकर्ताओं को यूएपीए जैसे कठोर क़ानूनों के तहत पकड़ रही है।” आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एन साई बालाजी ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि ‘कैसे संविधान की प्रस्तावना पढ़ना इस देश में यूएपीए क़ानून प्रयोग करने लायक जुर्म हो गया?’  उन्होंने कहा, “हमें इसकी दो वजहें समझ आती हैं। एक तो ये कि सरकार इनसे बदला लेना चाहती है, इसलिए गिरफ़्तार कर लो, महामारी के दौर में छात्र इनके समर्थन में सड़कों पर नहीं आ सकेंगे और ना ही कोई क़ानूनी मदद मिलेगी।”

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“दूसरी वजह ये है कि सरकार महामारी की रोकथाम में फ़ेल रही है, रेल सही पटरियों पर नहीं ले जा पा रहे, जिन डॉक्टरों के लिए थालियाँ बजवाईं, उन्हें पीपीई किट नहीं दे पा रहे, तो इसे छिपाने के लिए छात्रों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है।” बालाजी ने कहा, “हर जगह ‘भीमा कोरेगाँव मॉडल’ अपनाया जा रहा है जिसमें हमलावर बचाये जाते हैं और पीड़ितों को ही गुनहगार कहा जाने लगता है।” दरअसल, आयशा रेन्ना और बालाजी, दोनों वक्ताओं का इशारा महिलावादी संगठन ‘पिंजरा तोड़’ की दो महिला कार्यकर्ताओं- देवांगना कलिता (30) और नताशा नरवाल (32) की गिरफ़्तारी की ओर था जिन्हें नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान फ़रवरी के आख़िरी सप्ताह में हुए दंगों के एक मामले में दिल्ली पुलिस ने शनिवार को गिरफ़्तार किया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दोनों को दिल्ली पुलिस द्वारा बनाये गए मामले में रविवार को ज़मानत मिल गई थी, लेकिन क्राइम ब्राँच ने दोनों को दंगों से जुड़े एक अन्य केस में फिर गिरफ़्तार कर लिया और अदालत से उनकी रिमांड भी हासिल कर ली। अब दोनों पर ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) लगने की आशंका है। संयुक्त प्रेस वार्ता में दिल्ली पुलिस की भूमिका और विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किये गए। कई वक्ताओं ने सवाल किया कि ‘नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में भड़काऊ बयानबाज़ी करने वाले कपिल मिश्रा, दिल्ली चुनाव के समय भड़काऊ बयान देने वाले बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर, जेएनयू में हमला करने वाली कोमल शर्मा, जामिया यूनिवर्सिटी कैंपस के पास फ़ायरिंग करने वाले गोपाल शर्मा (रामभक्त गोपाल) का आख़िर क्या हुआ? क्या उनके ख़िलाफ़ भी कार्यवाही कहीं पहुँच पाई है?’

प्रेस वार्ता में सीपीआई नेता और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कहा, “लॉकडाउन के दौरान गिरफ़्तारियाँ क्यों? क्या इनकी टाइमिंग पर सवाल नहीं उठना चाहिए। राज्य सरकारें जघन्य अपराध करने वालों को तो छोड़ रही हैं, उन्हें घर भेजा जा रहा है, दूसरी ओर सरकार से सवाल करने वाले विद्यार्थियों और कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया जा रहा है, उन्हें जेल में डाला जा रहा है।” वे बोले, “सीएए, एनआरसी, एनपीआर के ख़िलाफ़ खड़े लोगों पर बदले की कार्यवाही की जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में कहा था कि आपदा को अवसर की तरह देखना चाहिए, पर उनके कारिंदे इसका मतलब अपने हिसाब से निकाल रहे हैं। वो संसाधनों के बेहतर प्रयोग पर बात नहीं कर रहे, बेरोज़गारी पर बात नहीं कर रहे, श्रमिकों की तकलीफ़ों पर बात नहीं कर रहे, बल्कि इनकी बात करने वालों को निशाना बनाने का अवसर ढूंढ रहे हैं।”

कन्हैया ने कहा, “इस सरकार ने देश से बुलेट ट्रेन का वादा किया था। पर लोगों को साधारण ट्रेन नहीं मिल रही। जिन लोगों ने इनकी बातों पर भरोसा करके वोट भी दिया होगा, वो ट्रेन में चढ़े बिहार जाने के लिए, पहुँच गए ओडिशा। ये आपका वादा है।” कन्हैया की बात को आगे बढ़ाते हुए सामाजिक कार्यकर्ता और जेएनयू में कन्हैया कुमार के सहयोगी रहे उमर ख़ालिद ने कहा कि ‘कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए लॉकडाउन किया गया था, लेकिन इसका इस्तेमाल सरकार कुछ और मंशाओं को पूरा करने के लिए कर रही है।’ प्रेस वार्ता में बतौर गेस्ट जुड़े उमर ख़ालिद ने कहा, “महामारी के लिए दौर में हो रहीं कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारियाँ बताती हैं कि सरकार की प्राथमिकता क्या है और सरकार कैसे इस लॉकडाउन को अवसर मान रही है, उन चीज़ों को पूरा करने का जो वो सामान्य दिनों में आसानी से नहीं कर पा रही थी।”

ख़ालिद ने कहा कि “श्रम क़ानून बदलने के लिए, एयरपोर्ट बेचने के लिए और सरकारी कंपनियों की नीलामी के लिए यह सही समय है।” उन्होंने कहा, “छात्रों से लड़ने वाली ये एक विचित्र सरकार है जो अपने विपक्षियों का बदला भी छात्रों से ले रही है। 2014 से ऐसे हमले हो रहे हैं। चाहे जेएनयू हो या जामिया, इनके ख़िलाफ़ कभी सांप्रदायिक कार्ड चला जाता है, कभी छात्रों की विचारधारा के आधार पर उनके ख़िलाफ़ गुस्सा भड़काने की कोशिश होती है।” इस संयुक्त प्रेस वार्ता के शामिल अन्य लोगों ने कहा कि ‘दिसंबर 2019 में छात्रों के नेतृत्व में ही नए नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिससे सरकार को परेशानी है।’

प्रेस वार्ता के आयोजकों ने कहा कि ‘ये प्रेस कॉन्फ़्रेंस गुलफ़िशां, सफ़ूरा ज़रगर, शोमा सेन, सुधा भारद्वाज, कफ़ील खान, इशरत जहाँ, मीरान हैदर और ख़ालिद सैफ़ी जैसे उन तमाम कार्यकर्ताओं के लिए है जो ना सिर्फ़ सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर, बल्कि सरकार के अन्य जन-विरोधी निर्णयों पर सवाल करते रहे हैं।’ अंत में गुजरात के विधायक और मोदी-शाह की तीखी आलोचना करने वाले जिग्नेश मेवानी ने कहा कि “मोदी सरकार जो कर रही है, उसे वो बहुत गंदी और शर्मनाक राजनीति कहते हैं।”

मेवानी ने कहा, “लोग सड़क पर नहीं उतर पायेंगे, सरकार इसका फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रही है और चुन-चुन कर लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। ये वंचितों की बात करने वाले लोग हैं, निश्चित रूप से ये लोग दक्षिणपंथी सोच के विरोधी हैं और लोगों से जुड़े मुद्दों पर बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं जिससे सरकार को परेशानी है।” उन्होंने कहा, “दिल्ली के दंगों को ‘छात्रों का षडयंत्र’ कहना, अपने आप में ‘भारत सरकार का षड्यंत्र’ है। यही गुजरात मॉडल है।” मेवानी ने कहा, “सब जानते हैं कि अदालत में इन सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों के ख़िलाफ़ ये फ़र्ज़ी मुक़दमें टिक नहीं पायेंगे। पर फ़िलहाल उन्हें बेल नहीं मिलेगी, उन्हें तंग किया जाएगा, ये वक़्त जो वो जेल में गुज़ारेंगे। यही उनकी सज़ा होगी और सरकार यही संदेश देना चाहती है ताकि लोग सरकार के सामने खड़े होने से डरें।”

इस महीने की शुरुआत में भी देशभर की क़रीब 1100 महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से माँग की थी कि ‘लॉकडाउन के दौरान सीएए और एनआरसी का विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं और छात्रों को निशाना ना बनाया जाये।’ नामी सामाजिक कार्यकर्ता एनी राजा, मेधा पाटकर, फ़राह नक़वी, अरुणा रॉय और शबनम हाशमी समेत अन्य महिलाओं ने सरकार से माँग की थी कि ‘शांति-पूर्ण ढंग से सीएए-एनआरसी का विरोध करने वाले लोगों पर से केस हटाये जाएं।’

साभार: BBC

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