डॉ. वेद प्रताप वैदिक
श्रीलंका में हुए संसदीय चुनाव में वहाँ भाई-भाई राज कायम कर हो गया है, अब उस पर मोहर लगा दी है, बड़े भाई महिंदा राजपक्षे तो होंगे प्रधानमंत्री और छोटे भाई गोटाबया राजपक्षे होंगे राष्ट्रपति! इनकी पार्टी का नाम है- ‘श्रीलंका पोदुजन पेरामून’, यह नई पार्टी है, जिन दो बड़ी पार्टियों के नाम हम दशकों से सुनते आ रहे थे— श्रीलंका फ़्रीडम पार्टी और यूनाइटेड नेशनल पार्टी— वे लगभग शून्य हो गई हैं, इन पार्टियों के नेताओं— श्रीमावो भंडारनायके, चंद्रिका कुमारतुंग, जयवर्द्धन, प्रेमदास आदि से मैं कई बार मिलता रहा हूँ, उनके साथ यात्राएँ और प्रीति-भोज भी होते रहे हैं, इनमें से ज़्यादातर दिवंगत हो गए हैं, जो बचे हैं, उन्हें श्रीलंका के लोगों ने घर बिठा दिया है.
पिछली सरकार में राष्ट्रपति थे मैत्रीपाल श्रीसेन और प्रधानमंत्री थे- रनिल विक्रमसिंघे, इन दोनों ने गठबंधन करके सरकार बनाई थी लेकिन दोनों की आपसी खींचातानी और भ्रष्टाचार ने इन्हें सत्ता से हाथ धोने के लिए मजबूर कर दिया, दो साल पहले श्रीलंका के एक गिरजाघर पर हुए आतंकवादी हमले में 250 से ज़्यादा लोग मारे गए थे, उस घटना ने इस सरकार की गुप्तचर व्यवस्था और लापरवाही की पोल खोल कर रख दी थी.
इसीलिए इस संसदीय चुनाव में राजपक्षे की पार्टी को 60 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिले और 225 सदस्यों की संसद में 145 सीटें मिलीं, पाँच सीटों वाली कुछ पार्टियों को मिलाकर 150 सीटों का दो-तिहाई बहुमत बन जाएगा, इस प्रचंड बहुमत का लाभ उठाकर दोनों भाई चाहते हैं, जैसा कि तीसरे भाई बसील राजपक्षे ने कहा है कि उनकी पार्टी अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और भारत की भारतीय जनता पार्टी की तरह श्रीलंका में एकछत्र शासन करेगी, इस प्रचंड बहुमत का इस्तेमाल श्रीलंका के संविधान में हुए संशोधनों को पलटने के लिए भी किया जाएगा.
19वें संशोधन द्वारा राष्ट्रपति की अवधि और शक्तियों में जो कटौतियाँ की गई थीं, उनकी वापसी की जाएगी, 13वां संशोधन भारत-श्रीलंका समझौते के बाद किया गया था, उसमें श्रीलंका के तमिलों को संघवादी छूटें दी गई थीं, उन्हें भी ठीक किया जाएगा, यों भी इस चुनाव में तमिल स्वायत्तता के लिए लड़नेवाले ‘तमिल नेशनल एलायंस’ की सीटें 16 से घटकर 10 रह गई हैं, दूसरे शब्दों में श्रीलंका के तमिलों का जीना अब मुहाल हो सकता है,
भारत के साथ श्रीलंका के संबंधों में अब तनाव बढ़ने की पूरी आशंका है, राजपक्षे बंधुओं का चीन-प्रेम पहले काफ़ी उजागर हो चुका है, डर यही है कि श्रीलंका का यह भाई-भाई राज्य कहीं वहाँ के लोकतंत्र के लिए ख़तरा न बन जाए.
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं,)
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