ख़ुर्शीद अह़मद अंसारी
आज जब देश मे कोरोना के 8 लाख अस्सी हज़ार से ज़्यादा संक्रमित ,कहते हैं 5 लाख से अधिक ठीक हुए, और 15 हज़ार से ज़्यादा लोग अपनी जान गंवा बैठे है कई राज्यों ने मिनी लॉक डाउन जैसे नियम लगाए हैं जो संक्रमण के रोकने का प्रयास है जो शायद अब संभव नही लगता क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने ही बताए हुए दिशानिर्देश आये दिन बदल रहा है और देश मे सम्बद संस्थाएं अब पत्रकार वार्ता बंद कर चुकी हैं और पत्रकारिता नेपाल से बदला लेने पर उतारू ही नही है बल्कि अधोन्मुख है उन्ही परिस्थियों में हम सब यह भी जनतें हैं कि मनोरंजन की दुनिया बेहद विस्तृत है जहां नायक ईश्वरीय अवतार की तरह समाज के बुरे लोगो का अंत अपने हाथों में क़ानून लिए करता हुआ लाखों लाखों सामाजिक और राजतांत्रिक व्यवस्था से त्रस्त लोगो के लिए कुंठा शांत करने वाला क्षणिक कारक बन कर उभरता है।
उसके नायकत्व से आदर्श की उम्मीद करना यूँ तो व्यर्थ ही है लेकिन अपेक्षा की ही जाती है कि वो कभी जनता के मूलभूत समस्याओं पर मुखर हो कर तंत्र से प्रश्न करेगा लेकिन दुर्भाग्य से आम चूस के खाने या काट के खाने के सवालों में उलझाए हुए, नेतृत्व से स्वयं के भ्रष्टाचार में लिप्तता के भय और चिंता से उसी सुर में बात करता है जिस तरह ध्वस्त होता चौथा स्तंभ चीन को परास्त करते हुए 15 लाख से भी अधिक चली गयी नौकरियों पर मुंह सिल लेता है। वो
नायक, महानायक कैसे हो सकता है।नायक तो वो पत्रकार है जो मिड डे मील में नमक रोटी की कहानी सुनाता है, महानायक तो वो है जो समाज मे इस कारण बहिष्कृत है कि वो डॉक्टर होने के कारण अपने शपथ की लाज रखता है और कोविड 19 के क्रिटिकल रोगियों का इलाज करता है। महानायक तो वो है धर्म, आस्था, जाति सम्प्रदाय से उठ कर मजबूरों मज़दूरों की हर संभव सहायता करने में पिछले 5 महीनों से लगातार प्रयास कर रहा है और इन महानायकों में कई पुलिस कर्मी, कई डॉक्टर, कई स्वास्थ्य कर्मी कई सामाजिक कार्यकर्ता अपनी जान गंवा चुके है कोविड 19 से।अंशिका यादव यमुना एक्सप्रेसवे से यू पी परिवहन की बस से ख़ाली सर्दी, ज़ुकाम खांसी आने से कोरोना संक्रमित होने के शक में चलती बस से फेंक दी गई और उसकी दुःखद मृत्यु पर हम सब चुप्पी साध चुके है तो कैसे हम सब जीवित होने का जश्न मना रहे हैं या क्यों इस पर करोङो रुपये व्यर्थ में गंवा रहे हैं “याद रखिये हमे कोरोना से लड़ना है कोरोना से पीड़ित से नही”।
देश मे बढ़ती बेरोज़गारी, चिकित्सा सेवाओँ की अपंगता और असुलभता, शिक्षा की चरमराई हुई व्यस्था और देश के युवाओं की शिक्षा और उनके कौशल भविष्य पर घोर प्रश्नचिन्ह और संकट, सांस्थानिक क्षरण और उनके अस्तित्व संकट, पूंजीवाद का बढ़ता नियंत्रण ,निजीकरण को विकास की परिभाषा में फिट करने की ज़िद, रोज़ पेट्रोल डीज़ल की कीमतों में वृद्धि पर यदि चुप्पी है तो फिर काहे के महानायक हुए हम सब, और क्या आपने कभी महानायकों को कोई सवाल पूछते सुना है ? पैसों के लिए नून, लकड़ी, साबुन ,तेल बेचना और जनता के द्वारा महानायक बना दिया जाना और होना दो अलग अलग चीज़ें हैं।
चौथे स्तंभ के समाप्त होते नायकत्व की चिंता से ग्रस्त जिसका जनसामान्य की समस्याओं को सरकार को अवगत करना ज़िम्मेदारी और धर्म दोनों था आज इतना गिरा हुआ है कि शायद उसका उबर पाना असंभव सा लगता है, उसका आचरण कि”उनकी तबियत ठीक है, उन्होंने नाश्ता भी किया, रेखा भी कोरोना पॉज़िटिव ,परिवार में महानायक के कई पॉज़िटिव देश मे स्वास्थ्य कामना के लिए होते यज्ञ” पर फ़ोकस कर रहा हो तो समझ लें कि नागरिक की नागरिकता और अधिक सिमट रही है।
बस सुबह कितनी देर में मल विसर्जन हुआ और सुगमता से हुआ, इसकी ख़बर बाक़ी है वरना तो सचिन पायलट को तोड़ते हुए मास्टरस्ट्रोक तो देख ही चुके हैं जैसे कि कमलनाथ की सरकार मध्य प्रदेश में मास्टरस्ट्रोक की ग्रास बनी थी। व्यक्ति पूजा की पराकाष्ठा ने खैर हमारे तार्किकता को छीनते हुए हमे सोचने पर विवश किया है कि अनामा पनामा के आर्थिक अपराध जैसी कोई बात परेशान करने वाली नही है और न ही कनाडा के नागरिकता को स्वीकार करते हुए भारतीय होने का प्रमाणपत्र समर्पण करने के बावजूद भी हम राष्ट्रवादी महानायक और नायक के उपाधियों से सुशोभित रह सकते हैं क्योंकि हम ऐसे लोग हैं जो दिखते तो हैं “दीये” के साथ लेकिन दर असल हैं “हवा”के साथ!!!!!
जय हिंद
( इन तस्वीरों को पहचानते तो नही होंगे थोड़ा मेहनत करिए शायद यह तस्वीरे नही एक कहानी है, जीवन की और उसके निरन्तरता की)