लखनऊ (यूपी) : सात महीने बाद 2 सितंबर को मथुरा जेल से रिहा किए गए 38 वर्षीय डॉ, कफील ने मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचआर का आभार जताया है, यूएनएचआर ने इस साल 26 जून को एक बयान जारी कर मोदी सरकार से उन प्रदर्शनकारियों को रिहा करने की मांग की थी जिन्हें सीएए का विरोध करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
यूपी सरकार ने 29 जनवरी को मुंबई हवाई अड्डे से पकड़ा तो बताया गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 13 दिसंबर को सीएए और एनआरसी के खिलाफ छात्रों की सभा में उन्होंने भड़काऊ और राजद्रोही भाषण दिया था, जिसकी शिकायत अलीगढ़ के डीएम ने की थी, लेकिन हाइकोर्ट ने न सिर्फ इसे बेमानी पाया, बल्कि पुलिस प्रशासन को ऐसा करने से बचने की हिदायत भी दी, आदेश पर उन्हें काफी ना-नुकुर के बाद 1 सितंबर की देर रात मथुरा जेल से रिहा किया गया था.
यूएनएचआर ने अपने बयान में कहा था, ”गिरफ्तार किए गए लोगों में से अधिकांश छात्र हैं, ऐसा लगता है किन इन लोगों को केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया कि वो सीएए का विरोध और निंदा करने के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे थे, इन गिरफ्तारियों के जरिए भारत की सिविल सोसायटी को यह संदेश देने की कोशिश की गई कि सरकार की नीतियों की आलोचना बर्दाश्त नहीं की जाएगी.”
यूएनएचआर ने अपने बयान में मिरान हैदर, गुलफिशा फातिमा, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कालिता, नताशा नरवाल, खालिद सैफी, शिफा उर रहमान, डॉक्टर कफील खान, शरजील इमाम और अखिल गोगोई की गिरफ्तारी का जिक्र किया था, जेल से रिहा होने के एक पखवाड़े बाद डॉक्टर कफील खान ने इस समर्थन के लिए यूएनएचआर का आभार जताया है.
डॉक्टर कफील खान ने लिखा है कि मेरे ऊपर लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को हटाते हुए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए गए डॉक्टर कफील खान के भाषण से कही भी नहीं लगता कि वो नफरत और हिंसा फैलाने वाला है. वह अलीगढ़ की शांति को भंग करने वाला भाषण भी नहीं है, यह भाषण नागरिकों के बीच राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देने वाला है. यह भाषण हर प्रकार की हिंसा का प्रतिकार करने वाला है, उनका कहना है कि अदालत ने कहा है कि ऐसा लगता है कि अलीगढ़ के जिलाधिकारी ने डॉक्टर कफील खान के भाषण का एक हिस्सा उठाकर उसे पेश किया और उन्होंने भाषण की मूल भावना की अनदेखी की.
बकौल कफील, मामला दरअसल उस भाषण का नहीं, बल्कि उनके गृह शहर गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में अगस्त-सितंबर 2017 में ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद होने से 70 से ज्यादा बच्चों की मौत का है, उनके मुताबिक, मुंबई से एसटीएफ वाले दो दिनों तक अज्ञात जगहों पर घुमाते रहे और तरह-तरह की यातना देते रहे और यही कहते रहे कि अब मुंह बंद रखो, तीसरे दिन उन्हें मथुरा जेल में लाया गया और उन पर एनएसए लगा दिया गया, जेल में भी उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया गया, दरअसल, उनके मुताबिक, सत्ता-तंत्र में बैठे लोग नहीं चाहते कि बच्चों की मौत के असली अपराधियों का पर्दाफाश हो, इसलिए उन्हें परेशान किया जा रहा है, वे बीआरडी मेडिकल कॉलेज में उस वारदात के वक्त बाल रोग विभाग के नोडल अफसर थे, उन्हें और आठ अन्य को लापरवाही के आरोप में निलंबित किया गया, लेकिन बाद में उन्हें जांच समितियों ने न केवल क्लीन चिट दी, बल्कि बच्चों को बचाने के लिए उनके प्रयासों की प्रशंसा भी की, उनका कहना है कि हाइकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और सरकार की 13 जांच समितियों से क्लीन चिट मिलने के बावजूद उन्हें बहाल नहीं किया जा रहा है.
ब्यूरो रिपोर्ट, लखनऊ
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