Header advertisement

स्क्रोल वेबसाइट की पत्रकार सुप्रिया के ख़िलाफ़ वाराणसी में FIR दर्ज, PM मोदी के गोद लिए गांव पर की थी स्टोरी

नई दिल्ली: स्क्रोल वेबसाइट की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा के ख़िलाफ़ यूपी के वाराणसी पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की है, सुप्रिया ने पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उनके द्वारा गोद लिए गए गांव में लॉकडाउन के दौरान क्या हालात हैं, इस पर एक स्टोरी की थी, सुप्रिया के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम, 1989 के तहत मुक़दमा दर्ज किया है, एफ़आईआर वाराणसी के रामनगर पुलिस स्टेशन में 13 जून को दर्ज की गई है, एफ़आईआर के मुताबिक़, पुलिस ने सुप्रिया के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 501 और 269 के तहत भी मुक़दमा दर्ज किया है,

एफ़आईआर वाराणसी के डोमरी गांव की रहने वाली माला देवी की शिकायत पर दर्ज की गई है, सुप्रिया ने लॉकडाउन के दौरान वाराणसी जिले में कई लोगों का इंटरव्यू किया था और इस दौरान उन्होंने माला देवी से भी बातचीत की थी, डोमरी गांव को मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया है, इंटरव्यू के दौरान माला ने बताया था कि वह घरों में काम करती हैं और लॉकडाउन के दौरान उन्हें भोजन की किल्लत हो रही है और उनके पास राशन कार्ड भी नहीं है,

लेकिन एफ़आईआर में लिखा है कि माला देवी ने अपनी शिकायत में पुलिस से कहा कि सुप्रिया शर्मा ने उनके बयान और उनकी पहचान को ग़लत तरीक़े से पेश किया, माला देवी ने एफ़आईआर में दावा किया है कि वह घरों में काम नहीं करती हैं बल्कि आउटसोर्सिंग के तहत वाराणसी नगर निगम में काम करती हैं, एफ़आईआर में माला देवी के बयान के आधार पर लिखा गया है कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें और उनके परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हुई, माला देवी की शिकायत पर आगे लिखा गया है, ‘ऐसा कहकर कि मैं और मेरे बच्चे भूखे रह गए, सुप्रिया शर्मा ने मेरी ग़रीबी और जाति का मजाक उड़ाया है,’

सुप्रिया ने माला देवी का यह इंटरव्यू 5 जून, 2020 को किया था, scroll.in ने कहा है कि उसने माला देवी का बयान जैसा उन्होंने कहा था, बिलकुल वैसा ही छापा है, माला देवी का बयान मोदी द्वारा गोद लिए गए वाराणसी के गाँव में लॉकडाउन के दौरान लोग भूखे रह गए’ शीर्षक वाली ख़बर में छपा था, एफ़आईआर दर्ज होने के बाद scroll.in ने कहा है कि वह अपनी इस ख़बर पर क़ायम है, न्यूज़ वेबसाइट ने कहा है कि यह एफ़आईआर लॉकडाउन के दौरान ग़रीबों के हालात के बारे में समाज को बताने वालों को धमकाने और स्वतंत्र पत्रकारिता करने वालों की आवाज़ को दबाने की कोशिश है

No Comments:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *