रवीश कुमार

यह तीसरा महीना है जब तेलंगाना सरकार अपने कर्मचारियों का वेतन काटेगी। अखिल भारतीय सेवाओं यानि IAS IPS की सैलरी में 60 प्रतिशत की कटौती की गई है। राज्य सरकार के कर्मचारियों की सैलरी में 50 प्रतिशत की कटौती की गई है। पेंशनधारियों की पेंशन में 25 प्रतिशत की और निर्वाचित प्रतिनिधियों की सैलरी में 75 प्रतिशत। कोविड-19 और बिना किसी तैयारी के तालाबंदी के फ़ैसले ने एक राज्य को यहाँ तक पहुँचा दिया। दूसरे राज्यों में स्थिति कोई बेहतर नहीं है लेकिन ग़नीमत है कि वहाँ इस तरह से सैलरी काटने की नौबत नहीं आई है। सरकारी नौकरी वाले भी मिडिल क्लास बनाते हैं। 

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लोकतंत्र को चुप्पीतंत्र में बदलने में इस तबके का भी सहयोग और समर्थन रहा है। आज प्राइवेट नौकरियों में काम करने की स्थिति पहले से ख़राब ही हुई है। अनगिनत लोगों की नौकरी गई और सैलरी में कटौती की गई है। वैसे जश्न मनाना शुरू कर दें। जिस रेल मंत्री की रेल नब्बे घंटे में यात्रा पूरी कर रही है उस रेल मंत्री ने वाणिज्य मंत्री के तौर पर कहा है कि बुरा ख़त्म हो गया है। चीज़ें बदल रही हैं। हवा में बदलाव है। देख लीजिएगा कहीं ये बदलाव उनकी ट्रेन की तरह नब्बे साल बाद न आए । 

वक्त बड़ा जानलेवा है। इस वक्त में लोगों को अवसाद से एक ही चीज़ बचा सकती है बल्कि बचा रही है, वो है मीम। अफ़ीम का डिजिटल रूप। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी का मीम लोगों को उम्मीद और विश्वास का टॉनिक दे रहा है। तरक़्क़ी के फ़र्ज़ी दावों और सांप्रदायिक चासनी में लपेट कर पेश किए गए मीम ने वाक़ई देश सेवा की है। लोगों का बड़ा तबका मदमस्त है। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के सभी सिलेबस इस वक्त कामयाब साबित हो रहे हैं। इनके ज़रिए मिडिल क्लास की नागरिक चेतना शून्य हो चुकी है। एनिस्थिसिया का असर पैदा कर रहा है। शरीर में कई जगह पर ऑपरेशन हो चुका है मगर मिडिल क्लास मीठे दर्द की कराह में मीम देखकर ख़ुश हो जाता है। 

राजनीतिक चेतना में आर्थिक संकट की भूमिका शून्य होती है। नोटबंदी के बाद तालाबंदी के दौर में मिडिल क्लास ने साबित किया है। तीन महीने की उसकी चुप्पी बता रही है कि उसकी निष्ठा कहाँ है। किसके प्रति है। वह चुपके से काम वाली बाई की सैलरी काट लेता है। फिर अपनी सैलरी कटने पर ख़ुश हो जाता है। जो उसके साथ हुआ वो दूसरों के साथ भी कर सकता है। इस वक्त वो गरीब मज़दूरों से नफ़रत कर आश्वस्त है कि जो भी संकट है वो मज़दूरों के कारण है। बाक़ी ठीक है। 

यह वो क्लास है जिसने अपने बच्चों का भी साथ नहीं दिया। जिनके पढ़ने की जगह यूनिवर्सिटियाँ कबाड़ में बदल दी गईं। जिनके सरकारी भर्तियों में शामिल होकर जीवन बनाने की हर संभावना समाप्त हो गई। इसके बाद भी मिडिल क्लास चुप रहा। जब वह अपने बच्चों का नहीं हुआ तो मज़दूरों और किसानों का कैसे हो जाएगा। उनके बच्चे भी उसी राजनीति के प्रति निष्ठावान है जहां मामूली प्रश्न करना नौकरी और जान गँवाने की शर्त बन जाती है। नौजवान छात्र मुक़दमे में फँसाए जा रहे हैं। मिडिल क्लास चुप है। जबकि वे उन्ही के घरों के बच्चे हैं। सरकारी भर्ती के सताए नौजवान भी अपने हिस्से के नौजवानों के साथ हो रहे इस अन्याय के प्रति  चुप हैं। इसलिए नौकरी खोज रहे करोड़ों युवाओं से कहता हूँ। वे जो मैसेज हज़ारों की संख्या में मुझे भेजते हैं , हर दिन अपने माता पिता और रिश्तेदारों को भेजा करें। अपने दोस्तों को भेजा करें। 

प्रेस के ख़त्म कर दिए जाने की आम सहमति मिडिल क्लास ने बनाई। पत्रकारों को गाली देने के वातावरण के निर्माण में मिडिल क्लास खूब सक्रिय रहा। अब उसके सामने जो प्रेस है वह सिर्फ़ प्रेस की लाश है। सरकार से किए गए प्रश्नों से वह किनारा कर लेता है। धूल की तरह झाड़ देता है। मिडिल क्लास के लिए विपक्ष पाप है। सत्ता पुण्य है। इसलिए प्रश्नों की गूंज सुनाई देनी बंद हो गई है। मिडिल क्लास इस सच्चाई को जानता है। वह चुप है। इसलिए नहीं कि कुछ सोच रहा है। वह चुप है। इसलिए कि वह सोचने के लायक़ ही नहीं रहा। वह अपने अधर्म को धर्म समझने लगा है।धर्म के मूल उद्देश्यों से भागने लगा है।

मिडिल क्लास के लिए मीम उपलब्ध रहना चाहिए। मीम की कभी कमी न हो। मीम में जो भी लिखा आएगा मिडिल क्लास मान जाएगा। इसे सिर्फ़ मीम चाहिए। न अस्पताल, न कालेज, न नौकरी न सैलरी, न निष्पक्ष न्यायपालिका, न पुलिस। मैं सरकार से माँग करता हूँ कि मिडिल क्लास को कुछ नहीं तो कम से कम गुडमार्निंग मैसेज भेज दिया करे। आगे वह जानता है कि दिन भर में किस किस को फार्वर्ड करना है। मैं मिडिल क्लास को मीम क्लास की उपाधि देता हूँ।

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