नई दिल्ली: पंजाब में कोरोना वायरस का खौफ और कहर बदस्तूर जारी है, प्रतिदिन संक्रमितों की तादाद में इजाफा हो रहा है, इस बीच एक गौरतलब पहलू यह है कि कोरोना से अधिक मौतें अन्य बीमारियों की वजह से हो रही हैं, दो महीने के भीतर राज्य में कैंसर, हृदय रोग, किडनी फेल होने, लीवर की समस्या आदि के चलते 2000 से ज्यादा लोगों ने जान गवाई, 100 से ज्यादा गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों ने दम तोड़ा, जबकि कोरोना वायरस से अब तक 32 लोग मरे हैं और 1903 पॉजिटिव हैं,
राज्य स्वास्थ्य विभाग से हासिल जानकारी के मुताबिक लुधियाना, अमृतसर और जालंधर जिलों में फिलहाल तक कोरोना से 15 लोगों की मौत हुई है, अन्य बीमारियों से 867 मरीज मरे हैं, लुधियाना में 131 संक्रमितों में से छह ने दम तोड़ा है, अमृतसर में 286 पॉजिटिव हैं और इनमें से तीन की मृत्यु हुई है, जालंधर में 179 संक्रमित हैं और 6 लोगों की जिंदगी सदा के लिए खत्म हुई, इस लिहाज से देखें तो लुधियाना में ‘कोरोना मृत्युदर 4.5 फ़ीसदी, अमृतसर में 1 फ़ीसदी और जालंधर में 2.9 फ़ीसदी है, जबकि लुधियाना में बीते कुछ हफ्तों में सिर्फ कैंसर, दिल, किडनी और लीवर की गंभीर एवं जटिल बीमारियों के चलते 126 लोगों की मौत हुई, जालंधर में 600 और अमृतसर में करीब 150 लोगों ने दम तोड़ा, गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं ने भी दम तोड़ा है,
पंजाब के वरिष्ठ चिकित्सक और विभिन्न चिकित्सा संगठनों के पदाधिकारी डॉक्टर अरुण मित्रा के अनुसार कोरोना के खौफ में बाकी बीमारियों की गंभीरता को ढक लिया है, परहेज और अतिरिक्त सावधानी इस वायरस से यकीनन बचा सकती है, लुधियाना के डॉक्टर गौरव खन्ना कहते हैं कि यह वायरस चूंकि पूरे विश्व में फैला हुआ है, इसलिए दहशत ज्यादा है, यह फ्लू की तरह है, जो अपनी संरचना बदलकर उपजा है, इससे इस कदर भयभीत होने की बजाय बचना ज्यादा आवश्यक है,
कोरोना वायरस के बाद पंजाब का पूरा चिकित्सा जगत और उसके आसरे रहने वाला जनजीवन सिरे से बदला है, आलम यह है कि कड़े सरकारी आदेशों के बावजूद प्राइवेट डॉक्टर मरीजों को हाथ लगाने तक को तैयार नहीं, दूर से ही ‘जांच’ की जा रही है, ब्लड प्रेशर और शुगर मापने वाली मशीनों एवं स्टैथोस्कोप (डॉक्टरी आला) को, मरीज तो क्या मानो डॉक्टर भी एकबारगी एकदम भूल गए हैं, शासन आदेश के बाद भी बहुत कम अस्पतालों में ओपीडी चल रही है, जहां चल रही है, वहां संक्रमण के खतरे के मद्देनजर मरीज को कई फुट की दूरी पर बैठाकर उसका चिकित्सीय ‘परीक्षण’ किया जाता है, जालंधर के सतबीर सिंह आहूजा कहते हैं, “अपनी 80 साल की आयु में ऐसा मंजर मैंने पहली बार देखा है,
मैं हाई ब्लड प्रेशर और शुगर का मरीज हूं, मुझे दोनों के लिए चेक करवाना था लेकिन 8 अस्पतालों में भटकने के बाद आखिरकार एक आरएमपी डॉक्टर ने 400 रुपए लेकर मेरे बीपी और शुगर की जांच की,” पंजाब में डाक्टर नब्ज तक देखने को तैयार नहीं, ऐसे में यक्ष प्रश्न है कि लोग जाएं तो जाएं कहां? सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों के ज्यादातर छोटे-बड़े डॉक्टर कोरोना वायरस से जूझ रहे हैं, दूसरे मरीजों को यहां नाममात्र की तरह देखा जा रहा है, गर्भवती महिलाओं, आंखों और दांत की बीमारियों के मरीजों के लिए भी बहुत बड़ी दिक्कत है, पंजाब के लगभग तमाम ईएनटी और डेंटल अस्पताल फौरी तौर पर बंद हैं, ऐसे में संबंधित मरीजों की बीमारियां और ज्यादा गंभीर हो रही हैं और साफ है कि लॉकडाउन और कर्फ्यू से राहत से पहले इलाज उनकी किस्मत से गायब हो चुका है