नई दिल्ली : संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आज दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम कहा कि गांधी जी ने कहा था, हिन्दुत्व सत्य के सतत अनुसंधान का नाम है.

ये काम करते करते आज हिन्दू समाज थक गया है, सो गया है, परन्तु जब जागेगा, पहले से अधिक ऊर्जा लेकर जागेगा और सारी दुनिया को प्रकाशित कर देगा,

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भागवत ने कहा पहले आक्रामक शक्तियां सम्पत्ति के लिए भारत आईं, शक हूण कुषाण आए, लेकिन वो सभी हमारे भीतर समाहित हो गए, बाद में इस्लाम अलग स्वरूप में आया, उसका भाव यही था कि जो हमारे जैसा है वही रहेगा और जो हमारे जैसे नहीं है उसे रहने का अधिकार नहीं.

इसके लिए हमारे सांस्कृतिक प्रतीक तोड़े गए, श्रद्धाओं का निकन्दन किया, लंबे समय तक लड़ाई चली, मगर लड़ाई भी एक संबंध का कारण होता ही है, नतीजा यह हुआ कि आक्रांता भी भारतीय सांस्कृतिक परम्परा से प्रभावित होने लगे, समरसता आने की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें दाराशिकोह जैसे लोग भी हुए, जिन्होंने वेदों को पढ़ा, जाना, उनका अनुवाद किया.

भागवत ने कहा कि ये आक्रांता प्रवृत्ति के लोगों को हजम नहीं हुआ, औरंगजेब ने जो किया वो मुसलमानों के साथ एकता स्थापित होने की प्रक्रिया को विस्थापित करने की ही प्रक्रिया थी.

भागवत ने कहा कि आज भारत में विदेशी कोई नहीं, भारत में सभी हिन्दू पूर्वजों के ही वंशज हैं, कोई हमको बदल देगा ऐसा भय नहीं है, बस डर यही है कि कहीं हम भूल न जाएं, उन्होंने कहा कि हिटलर खुद को आर्य क्यों कहता था? क्योंकि आर्य सम्मानित शब्द था, संबंध नहीं था, लेकिन राजनीतिक हित के लिए खींच तानकर जोड़ने का प्रयास किया.

भागवत ने कहा कि खेती के हमारे ही पुराने तरीके अंतरराष्ट्रीय बनाकर वापस लाए जा रहे हैं, हमारे यहां जैविक खेती, मिट्टी में पाए जाने वाले कृमि, वनस्पति के इस्तेमाल समेत कई परंपराएं थीं, हमारे यहां कोई मिट्टी के टेस्ट की लेबोरेटरी नहीं थी, किसान ही हमारा वैज्ञानिक था और उसका खेत उसकी लेबोरेट्री था.

भागवत ने कहा कि कभी 8-9 हज़ार धान की प्रजाति थी, दुनिया चुरा कर ले गई, ऐसे में आज भी यदि किसान पर्याप्त उद्यम करे, तो उच्च जीवन व्यतीत कर सकता है, इसके उदाहरण हैं, आत्मनिर्भर भारत के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी आत्मा को देखें, उससे साक्षात्कार करें.

मोहन भागवत ने कहा कि सारी दुनिया को भारत बनाने का संघर्ष जारी है, भारत किसी देश पर राज नहीं करेगा, हम किसी देश में सेना या मल्टीनेशनल कम्पनी लेकर नहीं जाएंगे, बल्कि अपने ज्ञान और अनुभव से प्रभावित करेंगे.

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