हफ़ीज़ किदवई

कोरोनाकाल में लोकडाउन हो या बीमारी की भयावहता, उससे उपजे अविश्वास ने बहुतों को तोड़ कर रख दिया है। एक पूरी पीढ़ी इस अनुभव को ताउम्र याद रखेगी । घरों में क़ैद होकर इस बीमारी से लड़ना और आने जाने वाले से एक दूरी रखने के इस अनुभव को अब भुलाया तो नही जा सकेगा। लेकिन इससे उपजे अकेलापन हो या अवसाद दोनों को आध्यात्म से काबू किया जा सकता है। जब यह दौर खत्म होगा और जब हम सब नए सिरे पर खड़े होंगे तो हमारे तमाम अच्छे बुरे अनुभव हमारी नई ज़िन्दगी के रास्ते तय करेंगे। हमें उस ओर देखने होगा,जिधर हमें अब जाना है । एक शोर जो बाहर था उससे कहीं ज़्यादा अन्दर रहा है, उसे शांत करना होगा । हमें देखना ही होगा कि जब यह समय बीत जाएगा,तब हम कहाँ खड़े होंगे ।

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ऐसे में हमें आध्यात्म की डोर पकड़नी होगी,जो आपको आपके दिल से जोड़ती है । जब यह वक़्त बीतेगा,तब हमारी जो चीज़ सबसे ज़्यादा प्रभावित होगी,वह है विश्वास। हर उस चीज़ पर विश्वास जो हमे लगती थी कि यह हमारी ज़रूरत है, हर उस रिश्ते पर विश्वास,जो हमें लगता था कि सबसे अहम है यह। कोरोनाकाल तमाम आर्थिक और सामाजिक बदलाव तो लाएगा ही,सबसे ज़्यादा यह व्यवहार में बदलाव लाया है, जो हो सकता है स्थायी ही हो,तो हमें इसे जीने की आदत डाल लेनी चाहिए ।

तमाम बीमारियों से हम सामाजिक सहयोग से लड़ लेते थे। बीमार को देखने रिश्तेदारों की कतारें होती थीं। तीमारदारों की लाइन लगती थी और हर ओर से प्रार्थनाएं कि ठीक होकर जल्द घर लौटें मगर इस कोरोनाकाल मे कोरोना जैसी बीमारी ने यह सारे विश्वास ध्वस्त कर दिए हैं। इसने बीमार को इतना अकेला बना दिया है कि इंसान अकेलेपन से ही टूट जाए। यही नही यह बीमारी परिवार पर इस तरह टूट रही जिससे उसका सामाजिक दायरा सिकुड़ कर एक घर भर का ही रह जाए,ऐसे में ज़रूरी होता है कि हम खुद को इसके लिए तैयार करें। पहले भी बीमारी से आपका ही शरीर लड़ता था,आज भी वही लड़ेगा । इसमे घबराने की ज़रूरत ही नही है। मन को शांत रखना होगा,बिना यह देखे कि कौन साथ है और कौन नही, क्योंकि हमारी प्राथमिकता ख़ुद को स्वस्थ्य करने की होनी चाहिए। जब आप ठीक,तो समाज ठीक,इसलिए पहले खुद पर ध्यान दें।

हमारे मस्तिष्क में इतनी शक्ति होती है कि हर विपरीत परिस्थितियों से लड़ जाए,बस एक बार अपने ऊपर विश्वास कीजिये। अपनी आध्यात्मिक शक्ति को जागृत कीजिये। यह बड़ा आसान है, एक बार खुद से बात करना शुरू कीजिए। अपने सवालों के जवाब अपने आप में खोजिए और यह मानिये की आप इस पृथ्वी के लिए बहुत आवश्यक हैं। आपका होना ही इसका होना है। अपने को ज़िन्दा रखने का हर प्रयास कीजिये।

अवसाद हमें तभी तो घेरता है, जब हम मान बैठते हैं कि हमारी आवश्यकता ही क्या है। जब आपके मन के सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं तब मन सवालों के मकड़जाल में उलझकर दम तोड़ने लगता है। जबकि यह एक सच्चाई है कि हर मस्तिष्क के सवाल उत्तर सहित उस ही मस्तिष्क में मौजूद होते हैं। हम बस देख नही पाते हैं। आध्यात्म हमें यह देखने का प्रशिक्षण देता है ।

जब मन में यह प्रश्न आए कि आप अकेले हैं, तो यह भी जानिए कि दुनिया का हर इंसान अकेला ही है। अकेले ही तो उसे चलना है, वह अकेला ही है जिसे दूसरों की ज़िंदगी का अकेलापन दूर करना है । अकेलापन बुरा नही है, बस इसे साधना सीख लीजिये। अकेलेपन से दुनिया खत्म नही होती है, यह जान लीजिए। अकेले एक बीज से पूरा जंगल तैयार किया जा सकता है, ऐसे ही आप एक बीज हैं, मानवता का बीज,जिसे हर हाल में जीवित रहना है।

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