नई दिल्ली : विधायक राघव चड्ढा ने आज दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से मुलाकात की और नारायणा विहार के H-ब्लॉक के सैनिक सदन में रह रहे पूर्व सैनिकों, शहीदों की विधवाओं और उनके परिवारों को घर खाली करने के लिए सितंबर 2019 में उनके घर पर चिपकाए हुए नोटिस के मामले से अवगत कराया और उन्हें इसके लिए आवेदन और जरूरी दस्तावेज सौंपे। राघव चड्ढा ने उपराज्यपाल से अपील की कि राज्य सैनिक बोर्ड द्वारा जारी किए गए इस नोटिस पर वो खुद संज्ञान लेकर शहीदों और पूर्व सैनिकों के परिवारों की परेशानी को दूर करें। उपराज्यपाल अनिल बैजल ने इस मामले पर तुरंत संज्ञान लिया और जल्द से जल्द इस मामले में तुरंत कार्रवाई का भरोसा दिलाया।
राघव चड्ढा ने कहा कि, “सैनिक सदन में रह रहे परिवारों के त्याग और बलिदान की कोई तुलना नहीं की जा सकती। अगर हम उनका ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? ये परिवार सभी तरह के कानूनों का पालन करने वाले और देश के सभ्य नागरिक हैं और ये कानूनी तौर पर दिए गए इन घरों में 5 दशकों से ज्यादा समय से रह रहे हैं। राज्य सैनिक बोर्ड का इन परिवारों के प्रति रवैया काफी दुख पहुंचाने वाला है। मुझे भरोसा है कि उपराज्यपाल का ये भरोसा दिलाना कि वो स्वंय इस मामले को देखेंगे सैनिक सदन में रह रहे इन परिवारों के लिए राहत पहुंचाने वाली खबर होगी।”
क्या है पूरा मामला?
सेना के पूर्व सैनिकों, शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं, जंग में घायल हुए सैनिकों और सम्मानित सैनिकों और उनके परिवारों को दिल्ली के नारायणा विहार के H-ब्लॉक में स्थित सैनिक सदन में 1968 में 24 फ्लैट आवंटित किए गए थे। इन सभी सैनिकों ने 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया था। 1968 में सरकार ने युद्ध में शामिल हुए पूर्व सैनिकों, शहीद हुए सैनिकों और उनके परिवारों के लिए कई तरह की हाउसिंग स्कीम और नौकरियां लॉन्च की। उसी वक्त दिल्ली सरकार और रक्षा मंत्रालय ने नारायणा विहार में सैनिक सदन में सैनिक परिवारों को ये घर दिए। पूर्व सैनिकों और शहीदों का परिवार इन घरों में करीब 50 साल से रह रहे हैं।
इस सदन में फ्लैट्स का निर्माण सैनिकों के पुनर्वास के लिए बनाए गए एक स्पेशल फंड से किया गया था जो फंड आम जनता से मिले डोनेशन से बनता है। 1968 से लेकर 2015 तक पूर्व सैनिक और उनके परिवारों ने नियमित तौर पर इन 24 घरों के लिए मेंटेनेंस फीस जमा की और राज्य सैनिक बोर्ड ने इसे स्वीकार भी किया लेकिन 2015 के लिए राज्य सैनिक बोर्ड ने मेंटेनेंस लेने से इनकार कर दिया और इन सभी फ्लैट्स को खाली करने का नोटिस भी जारी कर दिया।
पहले कब-क्या हुआ?
घर खाली करने का नोटिस मिलने के बाद इन परिवारों ने हाई कोर्ट में अपील की और हायर-परचेज स्कीम को लागू करने की मांग की। राज्य सैनिक बोर्ड के द्वारा 1986 में फैसला किया गया था कि इन फ्लैट्स के लिए हायर-परचेज स्कीम को लागू किया जाएगा और पूर्व-सैनिकों और कानूनी तौर पर उनके उत्तराधिकारी को ये घर इस स्कीम के तहत दिए जाएंगे।
राज्य सैनिक बोर्ड ने जब इस सुझाए गए हायर-परचेज स्कीम को लागू करने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाया तो सैनिक परिवारों ने कोर्ट में आवेदन दिया और इस स्कीम को लागू करने की अपील की। 8 साल की लंबी सुनवाई के बाद मई 2013 में डिवीजन बेंच ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि ‘राज्य सैनिक बोर्ड इन सैनिक परिवारों को घर खाली करने का आदेश नहीं दे सकता’।
कोर्ट के इस आदेश के बावजूद राज्य सैनिक बोर्ड ने घरों को खाली करने का नोटिस जारी किया और ये परवाह भी नहीं की कि पूर्व सैनिक या पूर्व सैनिकों के परिवार में ऐसे बीमार या दिव्यांग लोग भी हैं जिनके पास इस उम्र में रहने के लिए कोई और जगह नहीं है।
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