नई दिल्ली: जमीअत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने एक बार फिर भारतीय मुसलमानों से यह अपील की है कि देश में कोरोना वायरस जैसी घातक बीमारी फैलने के बाद पैदा हुई स्थिति में जमीअत उलमा-ए-हिन्द को चंदा न देकर मुसलमान परेशान हाल लोगों और मदरसों की सहायता करें, क्योंकि देश मानवता के आधार पर एक दूसरे की सहायता और शांति एवं न्याय के बिना विकास नहीं कर सकता और आज मज़दूरों, बेबसों, ज़रूरतमंदों और लाॅकडाउन पीड़ितों की मदद करने वाले लोग कपड़ों से पहंचाने जा रहे हैं। मौलाना मदनी ने देश में जारी गंभीर स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सांप्रदायिक और पक्षपाती मीडिया के झांसे में न आकर देश की जनता हिंदू, मुसलमान या सिख, ईसाई नहीं बल्कि एक भारतीय के रूप में एकजुट होकर कोरोना वायरस से मुकाबला करते हुए खुद को देश के विकास के लिए समर्पित कर दें।
उन्होंने इस बात पर गहरा खेद व्यक्त करते हुए कहा कि कोरोना वायरस की वजह से जारी राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन में परेशान हाल लोगों और मज़दूरों की असुविधा में भी देश का मीडिया और कुछ राजनीतिज्ञ देश में नफरत का ज़हर घोल रहे हैं जिसका कई जगह प्रभाव भी नज़र आया। देश की हज़ार वर्षीय गंगा-जमुनी संस्कृति की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इसके कारण देश में घृणा का ज़हर कम फैला और आम लोगों में वह असर नहीं हुआ जिसकी साम्प्रदायिक शक्तियां और कुछ मीडिया आशा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के नाम पर अक्सर इलेक्ट्राॅनिक मीडिया और कुछ राजनेताओं ने देश भर में ज़हर फैलाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए, बल्कि इसके विपरीत परेशान हाल मज़दूरों के संकट ने देश के लोगों को एकजुट कर दिया। इस तरह सांप्रदायिक लोग विफल हो गए और कोराना ने बता दिया कि हम सब एक हैं।
कोरोना वायरस ने मानव की मानवता जीवित करने का काम भी किया है। मौलाना मदनी ने कहा कि सांप्रदायिक तत्व और मीडिया कोरोना और अन्य नामों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर केवल मुसलमानों का नुकसान नहीं कर रहे हैं बल्कि देश का भी नुकसान कर रहे हैं और ऐसा करने वाले लोग देश के ग़द्दार तो हो सकते हैं, देशभक्त कदापि नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि देश के एक बड़े वर्ग को परेशान या उनकी अनदेखी करके या आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक नुकसान पहुंचा कर कोई देश विकास नहीं कर सकता।
इसलिए ऐसे मीडिया और राजनेताओं पर लगाम लगाया जाना अति आवश्यक है अन्यथा विदेश में इससे देश की बदनामी तो होगी ही, देश भी खोखला हो जाएगा, लेकिन अफसोस सरकार चुप रहकर जैसे इसका समर्थन कर रही है। मौलाना मदनी ने खास तौर से जमीअत उलेमा हिंद के सभी सदस्यों से एक विशेष अपील करते हुए कहा कि वे रमज़ान के मुबारक महीने में जमीअत उलमा-ए- हिंद को चंदा न देकर धार्मिक भेदभाव के बिना परेशान हाल लोगों और मदरसों खासकर छोटे मदरसों को चंदा दें। मौलाना ने एक सर्वे के बाद इस बारे में कहा कि पूरे देश में जमीअत उलमा-ए-हिंद की अपील पर जिस तरह मुस्लिम संगठनों और विशेषकर जमीअत उलमा-ए-हिंद के कार्यकर्ताओं ने गरीबों, ज़रूरतमंदों, विधवाओं और परेशान हाल मज़दूरों के लिए काम किया है, वह एक रिकाॅर्ड है और उनकी पहचान कपड़ों से हो गई है।
उन्होंने कहा जमीअत उलमा-ए-हिन्द विभिन्न राज्यों के परेशान हाल मज़दूरों को उनके गांव भेजने के लिए किराए का प्रबंध करने के साथ उनके बीच पूरे देश में खाने-पीने की वस्तुओं बांट रही है। यह सिलसिला लाॅकडाउन से शुरू होकर अब तक जारी है। उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में मुसलमान वही कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए और जिसका आदेश इस्लाम ने दिया है। मानवता की सेवा एक बहुत बड़ा क्र्तव्य है जो इस देश का मुसलमान रोज़े के दिनों में भी भूख और प्यास का एहसास न करते हुए निभा रहा है, यह सब देश का मीडिया नहीं दिखा रहा है लेकिन कुछ इलेक्ट्राॅनिक चैनल इसे दिखा रहे हैं। सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरें देखी जा सकती हैं।
अंत में मौलाना मदनी ने कहा कि हमारा देश सदियों से अनेकता में एकता की मिसाल है, धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता और एक दूसरे का सम्मान इसकी पहचान रही है और यही पहचान देश के संविधान की आत्मा है, मगर अफसोस कि एक ओर जहां संविधान और कानून की सर्वोच्चता को समाप्त किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कुछ सांप्रदायिक और पक्षपाती मीडिया वाले धार्मिक चरमपंथ को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय एकता, सहिष्णुता, समानता और देश के भाईचारे को नष्ट कर देने की साजिशें रच रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि देश का सदियों पुराना इतिहास साक्षी है कि यहां सभी धर्मों के मानने वाले शुरू से शांति और प्रेम के साथ गांव-गांव रहते आए हैं। इसलिए मैं अक्सर यह बात कहता हूं कि देश एक विशेष धर्म और विशेष सिद्धांत के शासन पर नहीं चल सकता बल्कि धार्मिक गैर-जानिबदारी, शांति और धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चल कर ही यह देश विकास कर सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर देश में संविधान की सर्वोच्चता समाप्त हुई और धार्मिक सद्भाव का ताना-बाना टूट गया तो यह बात देश के लिए अत्यंत हानिकारक साबित होगी।
मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद के उद्देश्य की चैथी धारा अंतर्धार्मिक काम करने पर ज़ोर देती है। जमीअत का यह मिशन आज के हालात में और भी ज़रूरी हो गया है। उन्होंने कहा कि आज हमारा देश विकास की जिन ऊंचाइयों पर है, यहां तक इसे पहुंचाने के लिए देश के हर नागरिक ने अपना योगदान दिया है। इसलिए अगर धर्म के आधार पर किसी खास वर्ग के बलिदान और उनकी सेवाओं को पीछे डाल कर देश के मुख्य धारा से अलग-थलग कर देने की कोशिश की जाती है तो इससे किसी वर्ग या व्यक्ति का नुकसान नहीं बल्कि देश का नुकसान है।