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लॉकडाउन: ग़ाज़ियाबाद प्रशासन मदद के नाम पर कर रहा है भेदभाव, मुस्लिम बहुल क्षेत्र में नही पहुंची कोई प्रशासनिक मदद

शमशाद रज़ा अंसारी

नई दिल्ली/ग़ाज़ियाबाद: कोरोना वायरस के कारण देश में लगे लॉक डाउन को लगे हुए 22 दिन हो गए हैं। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर प्रशासन लॉक डाउन को सफल बनाने के तमाम प्रयास कर रहा है। शहर में कोई भूखा न रहे इसके लिए जगह जगह पका हुआ खाना बांटा जा रहा है। लेकिन अभी तक मुस्लिम बहुल क्षेत्र कैला भट्ट में प्रशासन की कोई मदद नही पंहुची है। पार्षद ने प्रशासन पर धर्म के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है।

नगर निगम वार्ड 92, 93, 95 में कैला भट्टा, इस्लामनगर, चमन कॉलोनी, गुलज़ार कॉलोनी, अमन कॉलोनी, छोटा कैला आते हैं। इन कॉलोनियों में लगभग दो लाख की आबादी रहती है। इनमें लगभग 50% लोग मजदूर, मैकेनिक, साप्ताहिक बाजार और रेहड़ी पटरी वाले हैं। इनके पास इतनी जमा पूँजी नही होती है कि कुछ दिन भी घर बैठ कर खा सकें। लॉक डाउन लगने के बाद से सबका काम बन्द हो गया है। जिससे इनके सामने खाने तक का संकट पैदा हो गया है। अभी तक कुछ सामजिक संस्थाएं एवं आसपास के लोग इनकी मदद कर रहे हैं जिससे इनके घर का चूल्हा जल रहा है।

लेकिन यह मदद भी पर्याप्त नही हो रही है। अभी भी हज़ारों लोग ऐसे हैं जो दाने दाने को मोहताज़ हो रहे हैं। दिन में केवल एक बार रुखा सूखा खाकर किसी तरह पेट भर रहे हैं। छोटे छोटे बच्चे दूध को तरस रहे हैं। प्रशासन की तरफ से कोई मदद मिलना तो दूर की बात है अभी तक कोई प्रशासनिक अधिकारी क्षेत्र में इनकी सुध लेने नही आया है। वार्ड 95 के पार्षद मोहम्मद ज़ाकिर अली सैफी ने तो प्रशासन पर सीधे सीधे धार्मिक आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है। ज़ाकिर सैफी ने कहा कि ऐसा नही है कि प्रशासन द्वारा कोई मदद नही की जा रही,प्रशासन द्वारा मदद की जा रही है लेकिन वहाँ की जा रही है जहाँ इसकी आवश्यकता कम है। प्रशासन तथा नगर निगम द्वारा खाना बांटा तो जा रहा है

लेकिन वो बीजेपी के वार्डों राजनगर, शास्त्रीनगर, कविनगर, नेहरूनगर जैसे पॉश इलाकों में बांटा जा रहा है। मुस्लिम बहुल क्षेत्र कैला भट्टा तथा इसके आसपास की कॉलोनियों की प्रशासन द्वारा पूरी तरह अनदेखी की जा रही है। वार्ड 92 के पार्षद मरगूब अहमद ने कहा कि मेरे यहाँ प्रतिदिन लोग मदद के लिए आते हैं। जितनी मुझसे मदद हो सकती है उतनी मैं कर देता हूँ। लोगों की हालत देखी नही जाती है। प्रशासन की तरफ से अभी तक हमसे मदद के लिए किसी तरह का कोई सम्पर्क नही किया गया है।

स्थानीय निवासी समाजसेवी शाहरुख़ सैफी, शैज़ी खान, उस्मान सैफी, निसार अहमद, डॉक्टर शहज़ाद अंसारी, अख़लाक़ चौधरी और एडवोकेट दिलशाद चौधरी ने बताया कि हमारी जानकारी के अनुसार क्षेत्र में अभी तक प्रशासन की तरफ से कोई मदद नही आई है। हम सब मिलकर ही लोगों की मदद कर रहे हैं। इस बारे में एडीएम सिटी शिव प्रताप शुक्ला से बात की तो उन्होंने कहा कि प्रशासन कोई भेदभाव नही कर रहा है। हमारे पास इन क्षेत्रों से अभी तक कोई लिस्ट नही आई है। जब हमारे पास लोगों की लिस्ट आजायेगी तो उन्हें खाना मिलना शुरू हो जायेगा। यदि किसी व्यक्ति को खाना नही मिल रहा है तो उसका नाम तथा नम्बर हमें उपलब्ध कराइये प्रशासन उस तक खाना पंहुचायेगा।

बहरहाल इसे कुदरत की मार कहें या मेहनतकश लोगों का नसीब कहें कि जो लोग कड़कड़ाती सर्दी,जलती दोपहरी, बरसते पानी की परवाह किये बिना मेहनत मशक्कत करके इज़्ज़त से अपने परिवार का पेट भरते थे। आज वो  अपने परिवार का पेट भरने के लिए दूसरों का मुंह तक रहे हैं। इनका बस चले तो यह आज भी कड़ी मेहनत करके भूख से बिलबिलाते हुए बच्चों का पेट भर दें। लेकिन इसे बदनसीबी ही कहा जायेगा कि इस समय इनके पास चाह कर भी कोई काम नही है। मार बदनसीबी की हो या बदइंतजामी की,भुगत ग़रीब ही रहा है।

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