अब्दुल बासित निज़ामी
हिन्दुस्तान का एक जाँबाज़ पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि मॉब लिंचिंग जिसकी शुरुआत अखलाक के कत्ल से शुरू ज़रूर हुई लेकिन दूर तक जा पहुंची। ये एक जुर्म की दस्तक भी थी जो पह्लु खान तब्रेज़ अंसारी व अन्ये दलितो ओर बहुत् सारे बेकसूर लोगो को मौत के आगोश मे ले कर भी नही थमी और दूसरे मासूमो को अपना शिकार बनाने की घटया वहशियाना फिराक मे थी शायद ये जुर्म जिसका रूप अवतार अलग और शेतानी था
लेकिन जो भी था जघन्य व भयावह था। इस अपराध पर कुछ लोगो ने अपनी राये मे कहा था की इसमे गलत क्या ह कोई चौरी करेगा या कोई ओर अपराध करेगा तो भीड खुद ही फैसला करेगी। क्या पाल्घर मे दो मासूम लोगी की बे रह्मी से पीट पीट कर हत्या कर देना सही ह? कोन्से गिर्न्थो का अध्यन करते हैं ये लोग। क्या आप इसकी मज़्म्मत नही करोगे। अब मे इस बात पे आता हू की ये एक किसी एक समुदाय से शुरू ज़रूर हुआ लेकिन मुमकिन था की अगर कोई कानून ना बना तो ये आगे चलकर एक भयानक रूप लेता। सच् से मुह नही फेरा जा सकता।
वही हुआ जिसका डर था याद रखो ये भीड सिर्फ एक शतरंज का पियादा है इसकी चाल किसी दूसरे के हाथ मे मालूम होती है। एक कानून लाकर ओर उसे 100 % ज़मींन पे उतारा जाय तो यक़ीनन इस भीड पर काबो पाया जासकता ह याद रहे इसी कानूंन की मांग पिछ्ले 4 साल से मुसल्सल हो रही है अब पाल्घर के दो निर्दोष सन्त साधुओ की हत्या तक जा पहुंची। क्या एक बे नाम भीड का इकट्ठा होना ओर किसी राहगीर को पकड़कर उसे तबतक मारना जबतक वो खत्म ना होजाये , मारते रहना ।ये हक़ इस भीड को किसने दिया?
गौर करो एक अजीब से कस्म्कश ओर बैचनी सी इस देश मे पैदा की जा रही है कभी सोचा ना था की इन्सान हि इन्सान के खून का प्यासा होजाय्गा। ये अपराधी दरिंदे ना कोई धर्म जानते हैं ओर ना कोई कर्म। इन्सानो का खून बहांना,समाज मे डर का माहौल पैदा करना ओर कुछ निजी मुफाद मात्र के लिये ये घिनोने जुर्म करना ही इनका पहला ओर आखरी मक़सद होता ह । सही कहूँ तो ये मान्न्सिक बीमारी ह ये असल मे इनकी अपने आप मे एक अलग बिरादरी है ना जिसका का कोई चेहरा ह ना कोई जात। महाराष्ट्र के पालघर मे सन्त साधुओआ की हुई पीट पीट कर हुई किरूर हत्या की जित्नी मज़म्ंत की जाये कम है। आखिर ये सब दरिंदगी वैश्या पन कब तक चलेगा। कोई तो इस्का हल होगा। जो इन्हे रोक सके ओर इन् आतंकी भेड्यौ के अपराधो पे लगाम लगा सके। जय हिन्द।