रंजीत कुमार

पूर्वी लद्दाख में सैन्य तनातनी के चरम पर पहुंचने के बाद भारत और चीन की सरकारों ने एक-दूसरे पर द्विपक्षीय संधियों (1993, 1996, 2003 और 2013) को तोड़ने और सैन्य कमांडरों के बीच 6 और 22 जून को हुई सहमतियों को भंग करने के आरोप लगाए हैं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव और चीनी राजदूत सुन वेंई तुंग ने तनाव भड़काने के लिए एक-दूसरे के इलाक़ों में घुसपैठ को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन चीनी राजदूत के आरोपों में पहली बार चीन की ओर से की जा रही यह पेशकश छिपी है कि वह भारत के साथ आधे पर समझौता करने को तैयार है, जैसा कि चीन की रणनीति के बारे में पहले चर्चा की गई है कि वह चार कदम आगे बढ़कर दो कदम पीछे हटने को सम्मानजनक समझौते की संज्ञा देता है, इसी के अनुरुप हमें नई दिल्ली में चीनी राजदूत द्वारा समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में इस बयान को देखना होगा कि we hope the Indian side meet the Chinese side half way यानी चीन चाहता है कि दोनों सेनाएं आधे-आधे पर समझौता कर लें,

देश दुनिया की अहम खबरें अब सीधे आप के स्मार्टफोन पर TheHindNews Android App

चीनी राजदूत के बयान के व्यावहारिक मायने ये हैं कि गलवान घाटी, देपसांग और हॉट स्प्रिंग से पीछे हटने की पेशकश कर चीन पेंगोंग त्सो झील के फिंगर-4 और फिंगर-8 पर अपना कब्जा वैध कर ले, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता और चीनी राजदूत द्वारा भारत पर आरोप लगाने के पीछे यही मंशा छिपी है कि भारत को चीनी हमले का भय दिखाया जाए और आधे पर समझौता करने पर मजबूर किया जाए, पड़ोसी देशों के साथ चीन की दीर्घकाल से यही रणनीति रही है, चीन के प्राचीन रणनीतिकार और विचारक सुन चू के सुझावों के मुताबिक़ ही चीनी राजदूत ने भारत से आधे पर समझौता कर लेने की पेशकश की है, यानी चीन पहले किसी इलाके पर कब्जा करे और जब दूसरा पक्ष इस पर एतराज करे तो उस पर दबाव बनाने के लिए किसी और इलाके पर कब्जा कर ले और फिर इसे इस शर्त पर खाली किया जाए कि वह पहले किए गए कब्जे को खाली नहीं करेगा,

चीन ने पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील इलाके में अपनी मौजूदगी इसी इरादे से बनाई है कि इस इलाके को खाली नहीं करने के दबाव को इस पेशकश से झेल सके कि वह कब्जे के बाकी  इलाकों को छोड़ देगा, इसी रणनीति के तहत चीन पहले पैंगोंग त्सो झील इलाके की फिंगर-4 पर्वतीय चोटी पर बैठ गया हालांकि वह यहां से 8 किलोमीटर दूर स्थित फिंगर-8 चोटी तक ही सीमित रहा है, भारतीय सैनिक 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से ही फिंगर-8 तक गश्त करते रहे हैं जबकि फिंगर-4 चोटी पर उनका शिविर रहा है, फिंगर-4 से फिंगर-8 की दूरी आठ किलोमीटर है, हालांकि यह इलाका पथरीला बंजर है और यहां कोई आबादी नहीं रह सकती लेकिन इस इलाके की सामरिक अहमियत हाल में इसलिए बढ़ गई है क्योंकि इसके नीचे भारत ने 255 किलोमीटर लम्बी  श्योक दौलतबेग ओल्डी सड़क बनाई है,

इस दुर्गम इलाके में इस सड़क का निर्माण पिछले 20 सालों से भारत का सीमा सड़क संगठन कर रहा था और इसके बन जाने से भारत को यह सामरिक लाभ मिलेगा कि यह मार्ग चीन के कराकोरम राजमार्ग के दस किलोमीटर पहले ख़त्म होता है और यहां से इस राजमार्ग को निशाना बनाया जा सकता है, चीन की नजर इस सड़क पर इसलिए और गहरी हो गई थी क्योंकि यहां से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के भीतर चीन-पाक आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) गुजरता है जिसे भी इस सड़क से बाधित किया जा सकता है, सैन्य सूत्रों का कहना है कि चीन ने पैंगोंग त्सो झील इलाके पर कब्जा जमाने के लिए ही गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग और देपसांग इलाके में अपनी सैन्य बढ़त बनाकर भारतीय इलाके में अतिक्रमण किया है,

दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच जब लम्बी सौदेबाजी हुई तो भारतीय पक्ष ने किसी भी  भारतीय इलाके पर चीनी आधिपत्य को स्वीकार करने से मना कर दिया, 22 जून को भारत की ओर से जारी बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष टकराव के इलाकों से सैन्य तनातनी दूर करने को सहमत हो गए हैं, इसी सहमति के अनुरुप ताजा रिपोर्ट यह है कि चीनी सैनिक एक-दो किलोमीटर पीछे हटे हैं लेकिन पैंगोंग त्सो झील को छोड़ने की बात तो दूर चीनी सेना वहां अपना सैन्य जमावड़ा बढ़ाते ही जा रही है, चीन ने फिंगर-4 से फिंगर-8 चोटी के बीच बंकर और अन्य स्थायी सुविधाएं बना ली हैं, जहां सैनिक दिन-रात ठहर कर अपने कब्जे के इलाके की चौकसी और रक्षा कर सकते हैं, 27 जून तक की ताजा रिपोर्ट है कि चीनी सेना फिंगर -4 से नीचे फिंगर-3 तक भी कदम बढ़ा चुकी है,

चीनी रणनीतिकारों को भारतीय बयानों से यह इशारा मिला कि भारत संघर्ष टालना चाहता है, इसलिए लड़ाई के तेवर दिखाकर चीनी सेना ने हाल में कब्जा किए इलाकों पर तेजी से सैन्य ढांचे बना लिए जिसे हटाना अब उसकी नाक का सवाल बन जाएगा, चीन की इस कुटिल रणनीति ने भारत पर ही  दबाव बढ़ा दिया है, लेकिन भारत के लिए भी यह नाक का सवाल है कि चीन से पांच मई के पहले की यथास्थिति बहाल करवाए, लेकिन चीन यदि  बाकी इलाकों यानी देपसांग, गलवान और हॉट स्प्रिंग को छोड़ भी दे तो वह पैंगोंग त्सो झील के इलाके पर अपना सैन्य प्रभुत्व बनाए रखने की जिद करेगा, भारत के रणनीतिकारों की यह अग्नि परीक्षा होगी कि वह किस तरह पैंगोंग त्सो झील इलाके से चीनी सेना को वापस जाने को मजबूर करें,

भारत के लिए इस इलाके पर चीन का कब्जा मान लेना 1962 का वह इतिहास दोहराने जैसा होगा जब चीनी सेना ने लद्दाख के अक्साई चिन इलाके पर चुपचाप अपना कब्जा जमा लिया था और बाद में चीन ने वहां कराकोरम राजमार्ग बना लिया, जब तक पैंगोंग त्सो झील के फिंगर-4 से फिंगर-8 के इलाके पर चीन का कब्जा बना रहता है तब तक भारत को कोई भी समझौता मान्य नहीं हो सकता

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here