मौलाना अरशद मदनी की मोहन भागवत से मुलाकात पर पूर्व केंद्रीय मंत्री के. रहमान खान ने उठाए सवाल

मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड निष्क्रिय और संवैधानिक तौर पर कमजोर संस्था है: के. रहमान खान

नई दिल्ली
समाज में हर मसले का हल आपसी बातचीत से निकाला जा सकता है। विरोधाभास दो मुल्कों के बीच हो या दो समुदाय के बीच, अगर बातचीत का दरवाजा बंद कर दिया जाए तो कोई भी मसला हल नहीं किया जा सकता है। इन ख़्यालात का इजहार पूर्व केंद्रीय मंत्री के. रहमान खान ने संवाददाता के साथ बातचीत में किया। पूर्व अल्पसंख्यक केंद्रीय मंत्री के. रहमान खान राजधानी दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में अपनी आने वाली किताब “हिंदुस्तानी मुसलमान और ला’येहा अमल” के संबंध में पत्रकारों के साथ विशेष बातचीत कर रहे थे। बातचीत के दौरान जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की आरएसएस चीफ मोहन भागवत से हुई मुलाकात पर हिन्द न्यूज़ की तरफ से किए गए सवाल के जवाब में कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री के रहमान खान ने कहा कि देश के मौजूदा हालात में बेशक बातचीत की जानी चाहिए। लेकिन इन दोनों की मुलाकात इस तरह गुप्त तरीके से नहीं होनी चाहिए थी। बल्कि पहले मुसलमानों के अहम संस्थानों और व्यक्तियों के साथ संपर्क व अथवा सलाह मशवरा किया जाना जरूरी था। ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह कोई निजी मुलाकात हो। के. रहमान खान ने कहा कि मुस्लिम उलेमाओं की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह मुस्लिम मुद्दों पर भी आपसी तबादला ख्याल को प्राथमिकता नहीं देते,अक्सर उनकी ईगो रुकावट बन जाती है। मोहन भागवत से मौलाना अरशद मदनी की भेंट को भी इसी परिपेक्ष में देखना चाहिए।

ज्ञात हो कि जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अशरद मदनी और राष्ट्रीय स्वयं सेवा संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बीच 30 अगस्त 2019 को मुलाकात हुई थी जिसने देश में अचानक सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया था।
मुसलमानों की सामाजिक आर्थिक स्तिथि का जायजा लेने के लिए कांग्रेस सरकार के समय पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा गठित जस्टिस राजेंद्र सच्चर कमेटी के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील किए जाने पर हिन्द न्यूज़ के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सच्चर कमेटी की संवैधानिक हैसियत और उस पर अमल दरामद को चैलेंज नहीं किया जा सकता है। यह किसी भी सरकार का संवैधानिक अधिकार है, जिसे वह इस्तेमाल करती है। कांग्रेस ने भी वही किया था। के. रहमान खान जिनकी गिनती नरम मिजाज और कूल रहने वाले राजनेताओं में होती है, आज वह मुस्लिम कौम की दयनीय स्थिति पर बातचीत के दौरान सख्त नजर आए। उन्होंने कौम की वर्तमान दयनीय स्थिति के लिए खुद मुस्लिम समुदाय और उसके लीडरों को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि जब भी कोई व्यक्ति कौम के हक में पहल करता है तो कौम के लोग ही उसकी टांग खींचने लगते हैं। इसके लिए उन्होंने खुद अपनी मिसाल देते हुए कहा कि मैंने कौम की आर्थिक स्थिति के लिए कोऑपरेटिव अमानत बैंक शुरू किया, जिसका फायदा कौम को हो रहा था। लेकिन इसके खिलाफ अपनी कौम के लोग ही इकट्ठे हो गए और मुझ पर घोटाले बाजी का इल्जाम लगाकर मुझे बदनाम किया। यहां तक कि बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर ने उस वक्त अपने अंग्रेजी अखबार संडे गार्जियन के प्रथम संस्करण में ही मेरे खिलाफ कवर स्टोरी की और मेरे इस काम को बड़ी हद तक नुकसान पहुंचाने का काम किया। जिसके जवाब में मैंने डॉक्टर मनमोहन सिंह और उस वक्त की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। हालांकि सोनिया गांधी ने मुझसे कहा कि मैं एमजे अकबर के खिलाफ मानहानि केस दायर करूं। के. रहमान खान ने पत्रकारों के साथ लंबी बातचीत के दरमियान और भी कई अहम मुद्दों पर रोशनी डाली। उन्होंने मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए और उसे निष्क्रिय और संवैधानिक तौर पर कमजोर संस्था करार दिया। राजधानी दिल्ली में डिस्प्यूटेड 123 वक्त प्रॉपर्टी या उनमें बंद मसाजिद के संबंध में एक सवाल के जवाब में कहा कि इन मस्जिदों की पैरवी के लिए मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की तरफ से बनाई गई कमेटी ने हमसे कोई संपर्क ही नहीं किया और ना ही यह कमेटी सरकार की तरफ से गठित की गई थी। इसके बावजूद हम सरकारी स्तर पर इस सिलसिले में संजीदा कोशिश कर रहे थे। अगर 2014 में हमारी सरकार ना गई होती तो यकीनन हम इस कोशिश में कामयाब हो जाते। हमारा कहना था कि भले ही यह मसाजिद अराकाईलॉजिकल विभाग के तहत आएं, लेकिन देशभर की तमाम ऐसी मस्जिदें नमाजियों के लिए खोली जानी चाहिएं। क्योंकि मस्जिदों का असल मकसद वहां नमाज पढ़ा जाना है, जो हर हाल में पूरा होना चाहिए। ज्ञात हो कि के. रहमान खान की अंग्रेजी पुस्तक Indian Muslims the way forward का उर्दू संस्करण “हिंदुस्तानी मुसलमान और ला’येहा अमल” का लोकार्पण 16 अगस्त को होना है। जिसके अहम बिंदुओं पर वह मीडिया से बात कर रहे थे। इससे पहले उनकी बायोग्राफी मेरी यादें उर्दू भाषा में साल 2020 में छप चुकी है।

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