सहसवान/बदायूँ (यूपी) : रक्षाबंधन पर्व की यही विशेषता है कि यह धर्म-मज़हब की बंदिशों से परे गंगा-जमुनी तहज़ीब की नुमाइंदगी करता है, हिंदू बहने मुस्लिम भाईयों के राखी बांधती है तो हिंदू बहनों को मुस्लिम भाइयों का स्नेह मिलता है, कई ऐसे भाई-बहन है जो धर्म-मज़हब अलग-अलग होने के बावजूद सालों से इस रवायत को जी रहे हैं. उन में से एक है सहसवान समाजवादी पार्टी के नगर अध्यक्ष शुएब नक़वी आग़ा.
हर साल की तरहा इस साल भी नगर अध्यक्ष शुएब नक़वी आग़ा ने अपनी हिन्दू बहनो के साथ मनाया रक्षा बंधन, गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश कर नगर अध्यक्ष ने शहर के मुस्लिम युवा से अपील कहते हुए कहा कि धर्म-जाति के बंधन से ऊपर उठकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाकर दे हिंदू-मुस्लिम एकता का पैगाम.
इस मौके पर सहसवान समाजवादी पार्टी के नगर अध्यक्ष शुएब नक़वी आग़ा ने कहा कि योगी राज में प्रदेश में बहन-बेटिया व महिलाएं सुरक्षित नही, इसलिए आज हम सब समाजवादी एक क़दम आगे बढ़ाए और रक्षाबंधन के दिन कम से कम 2 बहनों से राखी बंधवाए…, आज के दिन यह वचन ले कि हमको सभी हिन्दू मुस्लिम बहनो के मान सम्मान की भी रक्षा करनी है और मिलजुल कर हर त्योहार को मनाना है.
शुएब नक़वी आग़ा ने आगे कहा कि जब से प्रदेश में डबल इंजन वाली सरकार आई है तब से राज्य में बहन-बेटियो व महिलाओं के साथ अपराध की घटनाए तेजी से बड़ी है, आज प्रदेश के हलात बहुत ज्यादा खराब हो गई है, साथ ही राज्य में भ्रष्टाचार व अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है, लूट, हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएं हो रही हैं और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है, लोग अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इस सरकार में महिलाएं पूरी तरह से असुरक्षित हैं, कोरोना जैसी महामारी में सरकार मरीजों का ठीक से इलाज नहीं करा रही है, जांच के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है.
नगर अध्यक्ष शुएब नक़वी आग़ा ने कहा कि महिलाओ के साथ हो रहे अपराधों पर कई मौकों पर सरकार कोई कार्यवाही करने के बजाय बलात्कारियों के साथ खड़ी दिखाई दी, यहां तक कि महिला अपराधों के लिए हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने कई बार योगी सरकार को फटकार लगाई, उन्नाव रेप केस और शाहजहांपुर की घटनाओ ने पूरे प्रदेश को झकजोर कर रख दिया और रामराज्य के रास्ते पर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का दावा करने वाली योगी सरकार नाकाम साबित हुई, अपराध रोकने और अपराधियों में डर महसूस कराने में असफल रही.
योगी सरकार पर दुष्यंत कुमार की पंक्तियां फलीभूत होती दिखाई देती हैं.
‘कहां तो तय था चारांगां हर एक घर के लिये’
‘कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए’ !
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