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कुछ सवाल जो आप के भी मन में जरूर होंगे : किसान आंदोलन

1) किसान क्यों आंदोलित हैं?

पूंजीपतियों की नज़र हमेशा से देश के सबसे बड़े कृषि क्षेत्र पर रही है। दशकों से हर सरकार की कोशिश रही है कि खेती किसानी को कॉरपोरेट के हाथ सौंपा जाए।

पहले की कांग्रेस सरकारों की कोशिश सफल नहीं हुई लेकिन भाजपा ने इन मंसूबों को एक कदम आगे बढ़ा दिया है।

भारत की सबसे बड़ी आबादी आज भी कृषि क्षेत्र पर आश्रित है। नरेंद्र मोदी सरकार की कोशिश है कि इनके कुछ पूंजीपति मित्रों को इस बड़े क्षेत्र पर नियंत्रण मिल जाये। इन तीन कृषि-विरोधी कानूनों का यही परिणाम होगा जिस कारण देश भर के किसान आंदोलित हैं।

2) योगेंद्र यादव की क्या भूमिका है?

इतना बड़ा आंदोलन बिना एकजुटता और समन्वय के संभव नहीं होता। किसानों के बीच लगातार काम कर रहे योगेंद्र यादव ने साल 2015 में लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के वक़्त से ही मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों का जमकर विरोध किया है।

‘जय किसान आंदोलन’ के गठन से लेकर AIKSCC के जरिये सैकड़ों छोटे बड़े संगठनों को एकजुट करने और फिर ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के जरिये और भी व्यापक किसान एकता बनाने का काम योगेंद्र यादव ने किया।

3) मोदी सरकार का योगेंद्र यादव के प्रति क्या रवैय्या रहा है?

योगेंद्र यादव के इसी काम, संघर्ष के जज़्बे और साफ छवि ने भाजपा की नींद हराम कर रखी है। भाजपा की तरफ से लगातार घटिया कोशिशें हो रही है कि कैसे योगेंद्र यादव को बदनाम किया जाए और अलग थलग किया जाए।

इसी कारण बिना किसी ठोस आधार के दिल्ली दंगों में भी उनका नाम उछाला गया। इसी कारण से सरकार को जब किसान संगठनों से वार्ता करने को मजबूर होना पड़ा तो गृह मंत्री अमित शाह ने योगेंद्र यादव को बाहर करने पर जोर लगा दिया।

बचाव में ये उछाला गया कि योगेंद्र एक राजनीतिक पार्टी से हैं जबकि सच ये है कि कई किसान नेता जिनसे सरकार के मंत्रियों ने ग्यारह राउंड वार्ता की वो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं। मतलब आप समझ सकते हैं कि सिर्फ योगेंद्र यादव से भाजपा को दिक्कत थी।

3) तो फिर कांग्रेस को योगेंद्र यादव से क्या परेशानी है  

ये मज़ेदार सवाल है। हर कोई यही समझेगा कि जिस योगेंद्र यादव ने लोकतंत्र और संविधान पर मौजूद खतरे के खिलाफ मोदी सरकार से लोहा लिया है, उससे भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी को क्या दिक्कत होनी चाहिए।

लेकिन कांग्रेस ने कई मौकों पर दिखाया है कि वो न ही खुद आज की भाजपा का मजबूती से सामना कर रही और न ही अपने अलावा किसी और वैकल्पिक आवाज़ को उभरने नहीं देना चाहती।

वो बयान तो आपको याद ही होगा जब 2019 लोकसभा चुनाव के बाद योगेंद्र यादव ने कहा था कि देश की भलाई और कांग्रेस की अपनी भलाई के लिए आज के स्वरूप वाली कांग्रेस को नष्ट हो जाना चाहिए।

मोदी जी भी चाहते हैं कि ये कांग्रेस बची रही ताकि उनका काम आसान रहे और कांग्रेस भी किसी ऐसी सरकार-विरोधी आवाज़ से परेशान हो जाती है जो उनके नियंत्रण में न हो। यही कारण है कि कांग्रेस के नेता आये दिन योगेंद्र यादव के खिलाफ बयानबाज़ी करते रहते हैं।

से यह किसान आंदोलन मजबूत हुआ है, तब से कांग्रेस की तरफ से भी योगेंद्र यादव पर हमलावर होकर बयानबाज़ी हुई है। आप खुद समझिए कि इससे आंदोलन मजबूत होगा या मोदी सरकार का काम आसान होगा।

संसद के अंदर तो कांग्रेस के एक सांसद बिट्टू ने कह दिया कि योगेंद्र यादव ही किसानों को भड़का रहा है इसलिए समाधान नहीं निकल रहा। यही बात तो भाजपा नेता और उनकी ट्रोल आर्मी भी कहती है।

4) खालिस्तानी गुटों और उनसे सहानुभूति रखने वाले योगेंद्र यादव को धमकियां क्यों दे रहे हैं?

26 जनवरी को जब लाल किले की बेअदबी हुई तो योगेंद्र यादव और किसान आंदोलन के सभी नेताओं ने साफ कहा कि इससे संयुक्त किसान मोर्चा के कोई लेना देना नहीं है। यहाँ तक कि मांग हुई कि इस कृत्य को अंजाम देने वालों पर कार्रवाई हो।

शायद इसी कारण से उन खालिस्तानियों को भी योगेंद्र यादव से इतनी परेशानी है जिनके विचारों का किसान आंदोलन ने विरोध किया है।

तो अब सोचने वाली बात यही है कि कुछ तो योगेंद्र यादव सही कर रहे हैं जो भाजपा से लेकर कांग्रेस और खालिस्तानियों सबको उनसे दिक्कत हो रही है। आज हर सच्चे भारतीय को समझना पड़ेगा कि मोदी सरकार किस तरह कृषि क्षेत्र को सुधारने के नाम पर असल में अपने कुछ पूंजीपतियों मित्रों को फायदा पहुंचना चाहती है।

साथ ही ये भी समझना होगा कि इस ऐतिहासिक आंदोलन को कमज़ोर करने में भाजपा ही नहीं बल्कि खालिस्तानियों और कांग्रेस जैसे और भी कई समूह ज़िम्मेदार हैं।

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