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तमिलनाडु: अब आप पढ़िए पुलिस की बर्बरता।

प्रीति नाहर

तमिलनाडु में एक पुलिस हिरासत में एक बाप बेटे ‘जयराज और फेलिक्स’ की हत्या की जाती है। जी हां हत्या की जाती है। लेकिन रिपोर्ट्स में लिखा जाएगा पुलिस हिरासत में दो लोगों की मौत हो गयी। 

मालमा बस इतना था कि lockdown की वजह से तय समय से 10 मिनट ज्यादा एक दुकान खुली रह गयी। पुलिस को ये रास नहीं आया और उस दुकान के मालिक और उसके बेटे को पुलिस ने हड्डी पसलियों के टूट जाने तक बेरहमी से पीटा। इतना ही नहीं, उसके बाद उन्हें पुलिस थाने ले जाकर उन्हें एक ऐसे कमरे में ले जाया गया जहां cctv कैमरा नहीं था। उस जगह पर पुलिस वालों ने उन निर्दोष बाप बेटे के प्राइवेट पार्ट्स में लाठी घुसाकर उनका बलात्कार किया।

पुलिस वालों की बर्बरता यहीं नहीं रुकी तो उन्होंने उनके खून से सने कपड़े उनके घर भेज कर साफ कपड़े मंगवाए और फ़िर वही सब दोहराया। ये लगातार 3 दिन तक चलता रहा। ये लिखते वक्त भी मेरे हाथ कांप रहे है की किस दर्द से गुज़रे होंगे दोनों बाप बेटे। लेकिन पुलिसवालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी अपनी हैवानियत दिखाने में। 

3 दिन बाद जब उन दोनों की मौत हो जाती है तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दिल के दौरे को मौत की वजह बता दी जाती है। तो बताइए क्या पुलिस सुरक्षा कर रही थी?  जैसे कुछ लोग पुलिस की बर्बरता को सुरक्षा कहकर डिफेंड करते हैं। ये सरासर हत्या है पुलिस कस्टडी में हत्या। हालांकि बाद में पुलिस वालों को ससपेंड कर दिया गया मगर हत्या की सज़ा बस निलंबन!

यही है हमारे पुलिस प्रशासन का असली चेहरा। पुलिस रिफार्म की सख्त जरूरत है इस देश को। कितने ही केश आते हैं पुलिस थाने में महिला कैदियों के साथ बलात्कार के। लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं दिल्ली और इसके आस पास पिछले दिनों की घटनाएं ही याद कर लीजिए।

 JNU, AMU, JAMIA, DU और भी देश की तमाम यूनिवर्सिटी के छात्र जब प्रदर्शन करते है तो पुलिस लाठियां बरसाती है। छात्रों, एक्टिविस्टों को जेल में बंद करती है। लाइब्रेरी में घुस कर लाठी बरसाती है तो हमारे आस के लोग क्या कहते नज़र आते है- “पुलिस का काम है पीटना, डर भी तो जरूरी है”.

मैं उनसे पूछना चाहती हूं पुलिस का काम कब से आम निर्दोष लोगों को पीटना हो गया। lockdown में कितने ही वीडियोस सामने आए जिसमे पुलिस बिना वजह लोगों पर, पैदल चलने वालों पर, सब्ज़ी बेचने वालों पर लाठियां बरसा रही थी। क्या वही लाठियां जब नेता लोग ग्रुप lockdown में निकल रहे थे तब बरसाई क्या?

लेकिन उनके पास कोई जवाब नहीं होगा बस यही की जो बदमाशी करेगा तो पिटेगा नहीं क्या! तो पीटना पुलिस का काम कब से हो गया। पुलिस की ट्रेनिंग में पीटना भी सिखाया जाता है क्या?? पीटने की कोई लिमिट है? कोई परिभाषा है?

प्रीति नाहर, पूर्व पत्रकार, राज्यसभा टीवी

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